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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
प्रोड्यूसर: कौशिकी कश्यप
कैमरापर्सन: मुकुल भंडारी
आर्थिक मोर्चे पर 2 बुरी खबरें आई हैं. GDP 5% तक गिरने का डर और बढ़ी महंगाई दर. लग ये रहा है कि सरकार के हाथ से वक्त रेत की तरह फिसलता जा रहा है. इकनॉमी को संभालने के लिए सरकार ने पिछले महीनों में ताबड़तोड़ कदम उठाए लेकिन स्थिति ऐसी जटिल है कि मन मुताबिक नतीजे नहीं निकल रहे. कुछ अर्थशास्त्रियों की नजर में ये स्लोडाउन है कुछ कहते हैं अब संकुचन शुरू हो चुका है.
हम कोई राय दें उसके पहले सिर्फ कुछ तथ्य और डेटा देख लेते हैं.
इस साल के दूसरे क्वॉर्टर में GDP का अनुमान 4.25% से 4.75% है. कुछ जानकारों के मुताबिक GDP का अनुमान-
असली नंबर इस महीने के अंत में आएगा लेकिन ये अनुमान सही हैं तो मान कर चलिए कि भारत की GDP इस साल 5% के आसपास रहने वाली है. SBI ने तो ये कह भी दिया है कि पहले GDP का जो हमारा अनुमान 6.1% का था,उसे हम घटा कर 5% कर रहे हैं.
आपने काफी चर्चा सुनी कि सरकार बैंकों का रिकैपिटलाइजेशन करेगी. उसने किया भी लेकिन थोड़ा-थोड़ा और धीमे-धीमे. माहौल कितना निराशाजनक है, वो इस आंकड़े से समझ लीजिए.
हालात गजब के हैं जिन सरकारी बैंकों का काम ग्रोथ के लिए कर्ज देने का है, वो खुद अपना पैसा सरकारी सिक्योरिटीज में रख रहे हैं रिजर्व बैंक ने ब्याज की दरें काटी हैं. इस साल अब तक 135 बेसिस पॉइंट करने के बावजूद, ना कारोबारी लोन लेने के लिए लाइन लगा रहे हैं और ना कंज्यूमर. एक के बाद एक खराब डेटा आ रहे हैं तो हमेशा की तरह फिर अब उम्मीद की जा रही है कि RBI दिसंबर में फिर इंटरेस्ट रेट कम कर दे तो ग्रोथ को मदद मिलेगी.
लेकिन हालात अब इतने जटिल हैं कि सिर्फ रेट कट से कुछ नहीं होगा. इन्फ्लेशन के ताजा आंकड़े देख लीजिए. अक्टूबर में रीटेल इन्फ्लेशन बढ़ा है, रफ्तार है 4.62%. फूड इन्फ्लेशन भी ऊपर की तरफ यानी 7.89% है.
RBI के लिए ये माथापच्ची बढ़ जाएगी कि ऐसे में ग्रोथ के लिए इंटरेस्ट रेट घटाएं या इन्फ्लेशन को कंट्रोल करने के लिए रेट स्थिर रखें. पिछले दिनों औद्योगिक उत्पादन के नंबर आए. सितंबर 2019 में इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन 8 साल में सबसे ज्यादा गिरा. 4.3% का कांट्रैक्शन. इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत सभी अहम 8 कोर सेक्टर के आंकड़े काफी खराब थे, ज्यादातर में नेगेटिव ग्रोथ.
अब एक आंकड़े से समझिए की हालात कैसे हैं? अक्टूबर में बिजली की खपत में 13% की गिरावट आई इससे ये पता चलता है कि मांग में गिरावट आई है तो फैक्ट्रियों में उत्पादन कम किया जा रहा है. कैपिटल गुड्स में भी कमी आई है जिसका मतलब है कि नया औद्योगिक निवेश नहीं बढ़ रहा. सरकार ने लिक्विडिटी की कमी को दूर करने के कई कदम उठाए, कॉरपोरेट टैक्स में भारी कटौती की, अब रियल एस्टेट सेक्टर की मदद के लिए पैकेज लाया गया है लेकिन इकनॉमी की हालत इतनी जटिल और खराब है कि ये सारे कदम मिलकर भी अब मंदी को पलट नहीं सकते.
मंदी जैसे हालात में सरकार के लिए बुरी खबर ये है कि टैक्स वसूली में भी भारी गिरावट है. ऐसे में बजट के नंबर गड़बड़ होंगे सरकार फिस्कल डेफिसिट को कैसे काबू करेगी? खर्च काटेगी तो ग्रोथ पर और बुरा असर पड़ेगा. कॉरपोरेट टैक्स कट से जब शेयर बाजार खुश हुआ तो लोग सेंसेक्स में तेजी पर ताली बजाने लगे. अब लोगों को धीरे-धीरे समझ में आ गया है, उस तेजी से इकनॉमी में मंदी नहीं रूकती.
2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की इकनॉमी बनाने का सपना है. इसके लिए हर साल कम से कम 8% की ग्रोथ की जरूरत होगी.
इस इंडेक्स के पीछे का दर्द समझना हो तो वोडाफोन की व्यथा समझिए, उसके CEO ने कह दिया था कि अगर सरकार ने स्पेक्ट्रम और लाइसेन्स फी और ब्याज अदा करने के 2 साल का और वक्त नहीं दिया तो हम भारत में कारोबार बंद कर देंगे. हालांकि अब उनका नया बयान है कि भारत को लेकर उनकी उम्मीद बाकी है.
कंपनी लिक्विडेशन में चली जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों से ये बकाया वसूलने का अचानक एक ऐसा नया फॉर्मूला बना दिया कि वो लागू हुआ तो इन कंपनियों को 90 हजार करोड़ चुकाने पड़ेंगे पहले से ही डूबा हुआ टेलीकॉम सेक्टर पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा. भारत में बिजनेस करना कितना आसान है इसका एक नायाब नमूना आंध्र प्रदेश की जगन रेड्डी सरकार है जिसने अमरावती कैपिटल सिटी के स्मार्ट स्टार्टअप प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया. ये प्रोजेक्ट चंद्रबाबू नायडू के वक्त सिंगापुर के एक कंसोर्शियम के साथ करने का कानूनी करार हुआ था. भारत की इकनॉमी के जो स्टेकहोल्डर हैं वो ऐसी हालात में एक फिक्स डायलॉग देते हैं- ‘Worst Is Over.’
अब ताजा आंकड़ों को देखकर ऐसे कई लोग मान गए हैं कि ‘Worst Is Not Over’ यानी सबसे आशावादी भविष्यवाणी ये हो सकती है कि 2020 में आर्थिक हालात में बदलाव भूल जाइए और 2021 पर उम्मीद लगाइए.
बस इतना याद रखिए कि 1% ग्रोथ बढ़ने या गिरने का मतलब होता है सीधे 30 लाख नई नौकरियों का बनना या खत्म होना.
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