ब्रेकिंग VIEWS | क्यों हो रहा है विदेशी निवेशकों का EXIT INDIA?

भारतीय बाजार पर विदेशी निवेशकों का भरोसा घटा

संजय पुगलिया
ब्रेकिंग व्यूज
Published:
खतरे में भारत का ‘इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन’ का तमगा?
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खतरे में भारत का ‘इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन’ का तमगा?
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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आपने सुना होगा कि ग्लोबल मंदी के दौर में भी भारत एक उम्मीद की किरण की तरह है. लोग यहां आने और पैसा लगाने को बेताब रहते हैं. लेकिन भारत का 'इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन' का तमगा खतरे में है. हमने आपको कुछ महीने पहले देश के अमीरों के 'भारत छोड़ो' आंदोलन के बारे में बताया था और अब शुरू हुआ है विदेशी निवेशकों का ‘EXIT INDIA’.

विदेशी निवेशकों ने यहां जो पैसा लगाया था वो अब उसे बाहर लेकर जा रहे हैं.

साल 2008 के ग्लोबल आर्थिक संकट के बाद जितना पैसा विदेशी निवेशक यहां से बाहर ले गए थे उससे कहीं ज्यादा पैसा साल 2018 के शुरुआती 5 महीनों में देश से बाहर जा चुका है. ये रकम करीब 32 हजार करोड़ रुपये है.
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आखिर क्यों निवेशकों ने शुरू किया EXIT INDIA?

  1. तेल की कीमतें जिस तरह से बढ़ रही हैं, उससे हो सकता है कि करेंसी रेट पर और दबाव बढ़े. पहले से कमजोर रुपये के और कमजोर हो जाने का खतरा है. ऐसे में निवेशकों में डर है कि उनका रिटर्न कम हो जाएगा, इसलिए वो पैसे बाहर लेकर जा रहे हैं.
  2. ऐसा भी हो सकता है कि आने वाले दिनों में सरकार को MSP देनी पड़े. अगर माॅनसून अच्छा हो जाएगा तो किसानों को एमएसपी देनी होगी. इसके कारण भारत को बाजार से पैसा उठाना पड़ सकता है जिससे लिक्विडिटी में कमी आएगी. इसका सीधा असर निवेशकों पर पड़ेगा.
  3. तीसरा कारण राजनीतिक है. चूंकि ये चुनावी साल है और पहले ऐसा लग रहा था कि एनडीए सरकार दोबारा सत्ता संभालेगी. लेकिन अब इसमें बदलाव की संभावना देखी जा रही है. ऐसे में निवेशकों को राजनीतिक अस्थिरता का माहौल नजर आ रहा है. उन्हें भारत की आर्थिक नीतियों को लेकर अनिश्चितता की फिक्र सता रही है.
  4. अमेरिका में इंट्रेस्ट रेट बढ़ रहा है ऐसे में निवेशक अपने देश में पैसा लगाना बेहतर समझ रहे हैं.

इन तमाम वजहों से निवेशक अपना पैसा बाहर लेकर जा रहे हैं.

इसके अलावा न तो सरकार ने अपने फिस्कल अनुशासन पर कायम रहने के संकेत दिए हैं और न ही आरबीआई ने ऐसी माॅनेटरी पाॅलिसी बनाई है जिससे भारतीय बाजार में लिक्विडिटी  बरकरार रहे. अगर ये संकेत मिल जाते तो शायद निवेशक पैसा रोकते या रखते.
2008 के ग्लोबल क्रैश वाले साल से ज्यादा पैसा 2018 के शुरुआती 5 महीनों में गया बाहर(फोटो: क्विंट)

बता दें, साल 2018 में सबसे ज्यादा पैसा करीब 95% यानी लगभग 30 हजार करोड़ डेट मार्केट से गया है. डेट का पैसा लाॅन्ग टर्म के लिए होता है. ये पैसे विकास के लिए खर्च किए जाते हैं. सरकार ये इसे इस्तेमाल में लाती है और इसके बदले में एक तय ब्याज यानी बाॅन्ड यील्ड देती है.

बाॅन्ड यील्ड और रेपो रेट जो आरबीआई का बेस रेट होता है, इन दोनों के बीच अंतर ज्यादा होता जा है. इस अंतर को लेकर विदेशी निवेशक आश्वस्त नहीं हैं. साथ ही आरबीआई की पाॅलिसी से इकनाॅमी की ग्रोथ को लेकर तस्वीर साफ नहीं है . महंगाई बढ़ने के संकेत जरूर दिख रहे हैं.

इसके साथ सरकारी बैंकों की बुरी हालत चिंता का सबसे बड़ा कारण है. स्टेट डेवलपमेंट लोन भी बैंको को परेशान करेगा. बैंकों को पैसा बाहर रखना पड़ेगा जिसका इस्तेमाल कर्ज बाजार में लेन-देन में नहीं किया जा सकता.

जहां आर्थिक नीतियों में स्थिरता, ग्रोथ और बैंकिंग व्यवस्था को दुरुस्त करने के साफ संकेत मिलने चाहिए थे उसके उलट विदेशी निवेशक अस्थिरता का अनुभव कर रहे हैं. उन्हें भारत में कमाई कम होती दिख रही है. इसीलिए विदेशी निवेशकों का EXIT INDIA जारी है.

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