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मोदी मंत्रिमंडल विस्तार (Modi Cabinet expansion) के बाद सवाल उठ रहा है कि इससे क्या संकेत मिल रहे हैं, तो सबसे बड़ा संकेत यही है कि यह मंत्रिमंडल विस्तार कम और वोटर विस्तार योजना ज्यादा है. बीजेपी ने इसके जरिए 'अगड़ी जाति की पार्टी' की छवि से आगे निकलने की कोशिश की है.
चौथा अहम प्वाइंट है- विस्तार के बहाने से चुनाव पर निशाना साधना. पांचवां बड़ा संकेत यह दिया गया है कि बीजेपी में आओ, और बर्थ पा जाओ.
कैबिनेट विस्तार से ये संकेत भी मिले हैं:
यूपी चुनाव के लिए सोशल इंजीनियरिंग
कोरी, लोधी, दलित, कुर्मी, ओबीसी, ब्राह्मण को मौका
महाराष्ट्र में भी 'सबका साथ अपना विकास'
बंगाल की अहमियत बढ़ी, दलित और पिछड़ों को मौका दिया गया
गुजरात चुनाव का भी रखा गया ख्याल
यह मंत्रिमंडल विस्तार ऐसे वक्त में हुआ है, जब मोदी सरकार कोविड मैनेजमेंट को लेकर आलोचनाओं का सामना कर रही है. हालांकि मेडिकल साइंस के मोर्चे पर नाकाम रहने के बाद इस विस्तार के जरिए पॉलिटिकल साइंस में अच्छा स्कोर करने की कोशिश की गई है.
इस विस्तार और फेरबदल से कुछ और भी सवाल उठ रहे हैं. मसलन रविशंकर प्रसाद, हर्षवर्धन, प्रकाश जावडेकर जैसे मंत्रियों को क्यों हटाया गया है? क्या हर्षवर्धन को 'बलि का बकरा' बनाया गया है?
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