advertisement
प्रधानमंत्री मोदी का अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के शताब्दी वर्ष में शामिल होना एक बहुत बड़ा राजनीतिक कदम है. इस बड़े कदम का सबसे बड़ा सबूत ये है कि इसे लेकर सोशल मीडिया पर आग लग जानी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं दिख रहा है. चाहे वो ट्रेंडिग टॉपिक्स में टॉप पर रहने की बात हो या कर्कश बहस की बात हो, इस तरह का कुछ दिख नहीं है. ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि प्रधानमंत्री के इस कदम को अभी उनके समर्थक, आलोचक या निष्पक्ष लोग समझने की कोशिश ही कर रहे हैं कि आखिर किया क्या गया है. आज के ब्रेकिंग व्यूज में इसे ही समझने की कोशिश करते हैं.
सबसे पहले ये देखिए कि पीएम मोदी आखिर गए कहां और इसका संदर्भ क्या है? संदर्भ ये है कि बीजेपी और उनके समर्थक तत्वों में चुनाव के वक्त लगातार हिंदू-मुसलमान, भारत-पाकिस्तान का नैरेटिव चला है. इतना ही नहीं जहां ये यूनिवर्सिटी है यानी यूपी में लव जिहाद, गोरक्षा के नाम पर जो कुछ भी होता है, उसमें मुसलमानों को डिफेंसिव बनाना जैसा नैरेटिव चला है. इस नैरेटिव के बीच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एएमयू के छात्रों को संबोधित करने का फैसला किया है और उन्होंने जो बाते कहीं वो है- 'अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी 'मिनी इंडिया' है, भारत का गौरव है, गौरवशाली इतिहास है, सर सैय्यद अहमद खान ने देश की बहुत सेवा की है, यहां मॉर्डन तालीम होती है, दुनियाभर में इस यूनिवर्सिटी के एलुमनी फैले हुए हैं, वो एक तरह से हमारे ग्लोबल एंबेसडर हैं.'
क्या इससे आशा की जानी चाहिए कि बीजेपी कहें, आरएसएस कहें या हिंदुत्व वाले तत्व कहें, इनके आसपास जो मुस्लिमों के खिलाफ नकारात्मक विमर्श चलता था, अब रुक जाएगा? शायद, ऐसी आशा करना जल्दीबाजी होगी. बंगाल के चुनाव के पहले ये कदम लिया गया है, पीएम मोदी इससे पहले भी कई विश्वविद्यालयों में जाते रहे हैं, लेकिन कट्टर हिंदुत्व वाले तत्वों का सबसे पसंदीदा टारगेट रहे एएमयू के लिए ये कदम चौंकाता है, साथ ही पीएम मोदी की बातें भी चौंकाती हैं.
अब इसपर गौर कीजिए कि एएमयू पहुंचकर पीएम ने क्या कहा- 'मैं बिलकुल वैचारिक मतभेद से आगे बढ़कर देश बनाने की बात करता हूं, आप लोग भी उसमें योगदान दीजिए, आपका भी कर्तव्य है, मैं ये बताना चाहता हूं कि मुस्लिम बेटियों के लिए मेरी सरकार ने कितना काम किया है'' तो एक प्रकार से आप कह सकते हैं कि एएमयू के जरिए ये एक तरह का सबसे बड़ा उनका वोटर आउटरीच था. अभी तक वो ये आउटरीच दूसरे तरीकों से करते रहे हैं, जैसे दाउदी वोहरा समुदाय के जरिए या UAE में जाकर मस्जिद का एक दौरा करने के जरिए. मतलब कि इस तरह के संकेत वो हमेशा से देते रहे हैं लेकिन ये वाला उनका कदम बहुत सारे पॉलिटिकल मतलब निकाल सकता है.
बीजेपी और नरेंद्र मोदी से काफी जुड़े रहने वाले समीक्षक जफर सरेशवाला एक न्यूज चैनल से बातचीत में कहा कि 'ये तमाचा लेफ्ट,लिबरल,सेक्युलर लोगों के लिए नहीं है ये तमाचा उग्र हिंदुत्व वाले तत्वों के लिए है जो लगातार मुस्लिम बैशिंग करते रहे हैं. अब वो क्या कहेंगे, पीएम मोदी के एएमयू में चले जाने के बाद, इस तरह के शिक्षण संस्थानों पर हमले चल रहे थे, क्या इनमें अब कोई बदलाव आता है.'
तो क्या पीएम मोदी सांकेतिक तौर पर कुछ कह रहे हैं या कुछ और मायने हैं? इसपर तरह-तरह की राय आएगी.
पीएम मोदी की ये खास बात ये है कि उनका हर कदम के अलग-अलग मायने होते हैं. एक तीर से हजार निशाने होते हैं. एक तरफ वो अपने आलोचकों का मुंह बंद कराने की कोशिश कर रहे हैं, दूसरी तरफ जो बिलकुल कट्टरता वाला माहौल है उससे थोड़ा बचते नजर आ रहे हैं. हालांकि, हम ऐसा नहीं मानते हैं कि संघ, बीजेपी परिवार में कोई बड़ा मतांतर हो सकता है, जिसके व्यापक परिणाम हों.
क्योंकि पीएम मोदी का अपना अलग चार्म है, जो उन्होंने पॉजिटिव बात कही है वो एएमयू में कही है, जिसे सीधे तौर पर नकार भी नहीं सकते. अब देखना होगा कि आगे क्या होगा, पीएम मोदी इसका फॉलोअप कैसे करते हैं? उग्र हिंदुत्व वाली ताकतें पीछे जाएंगी या नहीं जाएंगी?
लेकिन अभी कुल मिलाकर आज का सोशल मीडिया का सन्नाटा कई लोगों को कंफ्यूज कर रहा है और आगे आने वाले दिनों में इसका मतलब समझने के लिए माथापच्ची करनी होगी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)