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नया संसद भवन: बुलंद इमारत के साथ क्या लोकतंत्र भी होगा बुलंद?

पीएम मोदी ने नई पार्लियामेंट इमारत की आधारशिला रखी

संजय पुगलिया
ब्रेकिंग व्यूज
Published:
पीएम मोदी ने नई पार्लियामेंट इमारत की आधारशिला रखी
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पीएम मोदी ने नई पार्लियामेंट इमारत की आधारशिला रखी
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: कनिष्क दांगी

आज हमें ये मान लेना चाहिए की देश में ‘टू मच डेमोक्रेसी’ आने वाली है क्योंकि पार्लियामेंट की एक नई इमारत बन रही है जिसकी आधारशिला आज रखी गई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भूमि पूजा कर सकते हैं लेकिन किसी तरह के कंस्ट्रक्शन की इजाजत नहीं दी थी.

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सुप्रीम कोर्ट के भूमि पूजन पर रोक नहीं लगाने के बाद विपक्ष और आलोचकों को कहना था कि अभी की इतनी मुसीबतों के बीच सरकारी खजाने का इतना खर्चा क्यों हो रहा है. एक तरह से देखा जाए तो भारत में जिस तरह के बड़े निर्माण होने चाहिए वैसे निर्माण नहीं हुए हैं. इसलिए निर्माण को लेकर एक तरह से आपत्ति नहीं है लेकिन चर्चा इस बात पर होनी चाहिए की नई संसद और सेंट्रल विस्टा के पीछे डेमोक्रेसी का नया आर्टिटेक्चर क्या होने जा रहा है. तैयारी उस बात की होनी चाहिए जबकि विवाद और फोकस पर्यावरण, खर्चे, सार्वजनिक जगह जैसी बातों पर रहा.

हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि 2022 तक संसद का इस नए भवन का निर्माण होगा. जब 2026 में परिसीमन की शुरूआत होगी तो लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों की संख्या बढ़ेगी. 2026 तक आबादी के आधार पर परिसीमन न करने का संविधान संशोधन 1976 में आया था.

2026 के बाद ये जरूरी होगा कि आबादी के आधार पर लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन किया जाए. नियम के मुताबिक 10 लाख पर एक सांसद होगा. इसका परिणाम होगा कि उत्तर के लोगों को ज्यादा सीटें मिलेंगी वहीं दक्षिण के लोगों को कम सीटें मिलेंगी. उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र जैसे राज्यों को इसका फायदा मिलेगा.

source: www.politicalbaaba.com

2031 में होने वाली नई जनगणना के पहले हो सकता है कि सरकार संविधान में संशोधन करे. 2016 के तुरंत बाद परिसीमन की तैयारी हो सकती है और नई लोकसभा में काफी संख्या में सांसद देखने को मिल सकते हैं.

अभी कुछ दिनों पहले जब उत्तर पूर्व के राज्यों में परिसीमन का सवाल आया, उस वक्त भी काफी विवाद हुआ था. वैसे इसपर लोगों के बीच बहस होनी चाहिए. लोगों को जानकारी दी जानी चाहिए.

एक सर्वे के मुताबिक फिलहाल देश में बहुत से लोग वोटर के तौर पंजीकृत भी नहीं है. इसलिए अनुपात के आधार पर जनप्रतिनिधित्व का संतुलन भारत में अभी स्थापित नहीं हो पाया है.

विपक्ष का आरोप है कि बड़ी और बुलंद इमारत से क्या होता है, भारत की लोकतांत्रिक संस्थाएं कितनी मजबूत हो रही हैं ये बड़ा सवाल है. सवाल है कि जब किसानों का आंदोलन, कोरोनावायरस का प्रकोप, आर्थिक हालात अच्छे नहीं है तो ऐसे समय में इस तरह के दिखावे की क्या जरूरत है.

वैसे एक बात की चर्चा जरूर की जानी चाहिए की पीएम मोदी एक तीर से हजार शिकार करने में माहिर हैं. शिलान्यास स्थल पर साउथ इंडियन पुजारी का मौजूद होना, वाद्ययंत्र भी साउथ इंडिया का, रविंद्रनाथ टैगोर का भी जिक्र बहुत कुछ कहता है. बंगाल में चुनाव हैं, साउथ इंडिया में बीजेपी को अपना विस्तार करना है. किसान आंदोलन के बीच पंजाब से जुड़ी चीजें भी प्रमुखता से दिख रही थीं.

अंत में यही कहा जा सकता है कि भारत की वास्तविक प्रगति और प्रतीकात्मक प्रगति में फर्क है. 'टू मच डेमोक्रेसी' के सिंबल तो ठीक हैं लेकिन 'टू मच डेमोक्रेटिक स्पिरिट' ज्यादा जरूरी हैं.

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