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टाटा Vs साइरस: देश की सबसे बड़ी कॉरपोरेट कलह का अंत-भूत और भविष्य

ये झगड़ा सबक है कि उत्तराधिकार का समय पर फैसला जरूरी है

संजय पुगलिया
ब्रेकिंग व्यूज
Published:
(फोटो- क्विंट हिंदी/अरूप मिश्रा)
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(फोटो- क्विंट हिंदी/अरूप मिश्रा)

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वीडियो एडिटर: कनिष्क दांगी

भारत की सबसे बड़ी कॉरपोरेट कलह का आज अंत हो गया. सुप्रीम कोर्ट में रतन टाटा, सायरस मिस्त्री के खिलाफ केस जीत गए हैं. NCLAT ने ये फैसला दिया था कि 2016 में टाटा संस के चेयरमैन के पद से सायरस मिस्त्री को हटाना गलत और गैरकानूनी था, इसलिए अब उनको बहाल किया जाए. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने टाटा संस के पक्ष में फैसला दिया है और NCLAT के सारे फैसलों को गलत बताया है. सायरस मिस्त्री का आरोप था कि उन्हें गलत तरीके से हटाया गया.

मिस्त्री ने तब कई आरोप लगाए थे जैसे- कंपनी में कॉर्पोरेट गवर्नेंस नहीं है, माइनॉरिटी शेयर होल्डर के साथ गलत हो रहा है, टाटा संस मैनेजमेंट की जगह मिस-मैनेजमेंट का शिकार है.

इन सारी बातों को सुप्रीम कोर्ट की तीन जज वाली बेंच ने खारिज कर दिया. टाटा संस की तरफ से मुख्य वकील हरीश साल्वे थे और सायरस मिस्त्री की तरफ से सीए सुंदरम, जनक दास और श्याम दीवान वकालत कर रहे थे. ये भारत के कॉर्पोरेट इतिहास की एक बड़ी लड़ाई का फैसला है.

टाटा-मिस्त्री झगड़े का बैकग्राउंड

टाटा-मिस्त्री झगड़े का बैकग्राउंड ये है कि जब से साइरस मिस्त्री ने टाटा ग्रुप की कमान संभाली तब से टाटा ग्रुप की कंपनियों को लेकर उनका नजरिया अलग था और फैसलों में रतन टाटा को शामिल ना करने की वजह से टाटा और मिस्त्री के बीच संवाद काफी बिगड़ गया था. इसलिए अचानक टाटा संस के बोर्ड ने 2016 में ये फैसला किया कि सायरस मिस्त्री को हटा दिया जाए. सायरस मिस्त्री ने तब से एक लंबी कानूनी लड़ाई शुरू की जो 26 मार्च 2021 के दिन खत्म हो रही है.

अब मुद्दा ये कि दोनों का सेपरेशन कैसे हो?

इस पूरे विवाद में आगे मुद्दा ये है कि दोनों का सेपरेशन कैसे हो? सायरस मिस्त्री के पास टाटा संस के करीब 18% शेयर हैं. मिस्त्री का कहना है कि वो कंपनी को ये शेयर बेचना चाहते हैं और वो बाहर हो जाएंगे. लेकिन इसके पहले उन्होंने शेयरों को गिरवी रखने की कोशिश की थी, जिसे टाटा संस ने गैरकानूनी बताया था. आर्टिकल ऑफ असोसिएशंस के तहत एक प्राइवेट होल्डिंग कंपनी से पूछना होता है कि कंपनी इसे खरीदेगी या किसी और को शेयर बेच दिए जाएं. सायरस मिस्त्री इसको गिरवी नहीं रख सकते थे, ना ही वो अब ऐसा कर सकेंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने शेयरों के विवाद पर सुनवाई करने से मना कर दिया और कहा है कि आप लोग आपस में बात करके इसको सुलझा लीजिए.
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मुश्किल में हैं शापोरजी पालोनजी

शापोरजी पालोनजी ग्रुप का मुख्य काम रियल एस्टेट, इंजीनियरिंग और कंस्ट्रक्शन का है. इस वक्त इनकी कंपनी की बैलेंसशीट में बहुत सारा कर्ज है. ग्रुप हाल में ही कई सारी कंपनियां, एसेट बेच चुकी है और कई एसेट बेचना चाहती हैं. उन्हें फिलहाल पैसों की जरूरत है. मिस्त्री का अनुमान था कि टाटा संस की पूरी वैल्युएशन का 18% यानी करीब 1.75 लाख करोड़ रुपये मिल जाएंगे. लेकिन टाटा संस एक प्राइवेट कंपनी है और ये होल्डिंग कंपनी है, जिसमें टाटा ग्रुप की लिस्टेड और अन-लिस्टेड दोनों कंपनियां हैं. शापोरजी पालोनजी ग्रुप की दलील थी कि 18% यानी करीब 1.75 लाख करोड़ रुपये दे दिए जाएं. टाटा ग्रुप का कहना था कि हम ये खरीदने को तैयार हैं लेकिन इस पर नेगोसिएशन होगा.

ऐसे मामलों में भारत में प्रचलित नियम ये है कि मार्केट प्राइस के 40-50% पर शेयर होल्डर प्राइवेट होल्डिंग कंपनी को बेचकर, कंपनी से बाहर हो जाता है. सायरस मिस्त्री के अब पास मोल-तोल करने के लिए गुंजाइश कम बची है. अब मिस्त्री को अपने शेयर की वैल्यू लेने के लिए टाटा संस से बात करनी पड़ेगी.

रतन टाटा उत्तराधिकार के मामले में चूक गए

इस झगड़े का इतिहास ये है कि JRD टाटा की अपने भाई से अनबन थी. तो उस वक्त करीब 70 साल पहले उन्होंने ये तय किया कि शापोरजी पालोनजी को ये शेयर दे दिए जाएं. रतन टाटा के सामने जब उत्तराधिकार का प्रश्न आया तो सोच-विचार के बाद उन्होंने शायद सही फैसला नहीं लिया. वो एक भावुक फैसला था. रतन टाटा की ये गलती ही थी कि भावुकता के आधार पर उन्होंने साइरस मिस्त्री को चेयरमैन बनाने की सोची. इसके बाद से दोनों की पटरी नहीं बैठी.

अब इस ग्रुप को एन चंद्रशेखरन लीड करते हैं. जब से वो आए हैं टाटा संस की कंपनियों का वैल्यूएशन करीब डेढ़ से दोगुना बढ़ गया है. कंपनियों के शेयरों के दाम भी इसी हिसाब से बढ़े हैं. मिस्त्री के वक्त भी कंपनियां ठीक-ठाक चल रही थीं, लेकिन मिस्त्री और टाटा की कॉर्पोरेट फिलॉसपी में काफी मतभेद थे.

हाल में सुप्रीम कोर्ट ने बदले NCLAT के कई फैसले

NCLAT के पिछले चेयरमैन एसजे मुखोपाध्याय के कार्यकाल के दौरान NCLAT के कई सारे फैसले सुप्रीम कोर्ट में बदल दिए गए या उनमें संशोधन किया गया. कानून के गलियारों में ये चर्चा चली कि NCLAT के फैसले कानून की कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे हैं. हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट की अपनी दलील में कहा था कि NCLAT ने इसे पब्लिक कंपनी मान लिया, लेकिन ये एक प्राइवेट कंपनी हैं.

सायरस मिस्त्री ने फैसला कि था कि वो केस लड़कर अपना हिस्सा लेगें. लेकिन आमतौर पर कॉर्पोरेट्स बोर्डरूम में आपकी पटरी नहीं बैठ रही है तो, ऐसे में यही निर्णय किया जाना चाहिए कि आप अपने रास्ते अलग-अलग कर लें.

वक्त पर उत्तराधिकार का फैसला जरूरी

भारत में दो तरह की कंपनियां हमने देखी हैं- एक तो परिवार से चलने वाली कंपनियां और दूसरा प्रोफेशनली मैनेज्ड कंपनियां. टाटा संस में रनत टाटा के कंट्रोल में 60-65% शेयर है. लेकिन रतन टाटा ने इस कंपनी को फैमली रन कंपनी की बजाय प्रोफेशनली चलाने की कोशिश की थी.

देश में सैंकड़ों कंपनियों में उत्तराधिकार को लेकर विवाद रहते हैं. कई कंपनियां इसे ठीक से सम्हाल लेती हैं. टाटा जैसा बढ़िया कामकाज करने वाला ग्रुप एक बड़ी समस्या से गुजरा. लेकिन परिवार से चलने वाले बिजनेस जैसे सिंघानिया ग्रुप, मोदी ग्रुप में परिवारों के झगड़े अब तक चल रहे हैं. हिंदूजा ग्रुप में भाई आपस में मिलकर कंपनी को मिलकर चलाते रहे. लेकिन अब वहां भी उत्तराधिकार के मुद्दे पर सुगबुगाहट है. इसमें अच्छे उदाहरण भी हैं. जैसे कि बजाज ग्रुप में उत्तराधिकार का मुद्दा कब आया और चला गया किसी को पता ही नहीं चला. ऐसा देखा गया है कि उत्तराधिकार के मामले में भावुक होकर फैसले लेने के कारण या फिर देरी करने पर गलतियां हो जाती हैं. रतन टाटा ने जो गलती की थी आज उसी गलती की कहानी का क्लाइमैक्स था.

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