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वीडियो एडिटर- संदीप सुमन
कैमरापर्सन- शिव कुमार मौर्या
CBSE ने इस साल 12वीं बोर्ड एग्जाम में बैठने वाले लाखों स्टूडेंट्स के साथ गलत किया है. बोर्ड ने एक ऐसे तरीके से मार्क्स बढ़ाए हैं, जिसको लेकर खुद मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर कह चुके हैं कि वो पूरा तरीका ही तर्कहीन और अस्वीकार्य है. उन्होंने तो इस तरीके को खत्म करने तक की बात कही थी.
CBSE, मार्किंग का एक ऐसा तरीका क्यों इस्तेमाल करता रहा, जिसे केंद्र ने खतरा बताया था. CBSE ने स्टूडेंट्स के मार्क्स बढ़ाए. लेकिन दिक्कत ये है कि उसने अलग-अलग स्टूडेंट्स के मार्क्स में अलग-अलग इजाफा किया. बोर्ड ने हर किसी के मार्क्स बढ़ाए हों, ऐसा भी नहीं है.
बिना बराबरी का, बिना आधार का, भेदभाव से भरा हुआ मॉडरेशन.
और CBSE, प्लीज ये झूठ बोलने की तो कोशिश भी मत करना कि आपने गलत तरीके से मार्क्स मॉडरेट नहीं किए. हमारे पास इसका सबूत है. ठोस आंकड़े हैं, जिन्हें आप झूठा नहीं कह सकते. सबसे पहले देखिए,
कितने स्टूडेंट्स ने इस साल मैथ्स में 95 नंबर स्कोर किए हैं?
बिजनेस स्टडीज- फिर से 95 पर पीक
एकाउंटेंसी- एक और 95
ये सबूत है कि CBSE की मॉडरेशन पॉलिसी कितनी गलत है. अगर आप सोच रहे हैं, वो कैसे तो उस पर भी आएंगे, लेकिन उससे पहले थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं. दो साल पहले CNN-News 18 पर मैंने एक खुलासा किया था कि किस तरह CBSE और ISC में गलत तरीके से मार्किंग की जाती है. CBSE को इस रिपोर्ट पर कदम उठाना पड़ा. 13 महीने पहले CBSE और देश के 31 दूसरे स्कूल बोर्ड्स की एक मीटिंग थी, वो भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय में.
मीटिंग के बाद, मानव संसाधन सचिव अनिल स्वरूप ने ट्वीट किया, “हम सभी इस बात पर सहमत हैं कि अब मॉडरेशन के जरिए मार्क्स नहीं बढ़ाए जाएंगे.”
मतलब... अब और मॉडरेशन नहीं. लेकिन जरा ठहरिए, ये अप्रैल 2017 की बात है. कुछ स्टेट बोर्ड्स ने तो पेपर मार्किंग शुरू भी कर दी थी. दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका डाली गई. पूछा गया कि जब दूसरे बोर्ड 2018 में मॉडरेशन रोकने वाले हैं, तो CBSE ये काम 2017 से क्यों करे?
नतीजा ये हुआ कि कोर्ट ने CBSE को कहा कि वो 2017 में मॉडरेशन जारी रख सकते हैं. साफ है कि कोर्ट का आदेश पिछले साल के लिए था और उसका मतलब ये था कि इस साल यानी 2018 से CBSE को मार्क्स को बढ़ाने का काम पूरी तरह रोकना था.
अफसोस, ऐसा हुआ नहीं.
और अब वो सबूत, जिसकी वजह से हम ये दावा कर रहे हैं. क्या आप जानते हैं कि इन ग्राफ पर आपको 95 पर एक जबर्दस्त उछाल क्यों दिख रहा है? क्योंकि 95 वो सबसे ऊंचा अंक है, जहां तक CBSE मार्क्स बढ़ाने का काम करता है. थोड़ा और आसानी से समझते हैं.
मान लीजिए, किसी स्टूडेंट को मैथ्स में 85 नंबर मिले. अब CBSE इसे 10 नंबर बढ़ाकर 95 कर सकता है. लेकिन अगर आपको वाकई में 95 नंबर मिले हैं, तो जाहिर है उसे 105 नहीं किया जा सकता. इसलिए, CBSE का मार्क्स बढ़ाने का ये पूरा सिस्टम 95 पर आकर रुक जाता है.
दो स्टूडेंट हैं- A और B. वो अलग-अलग सब्जेक्ट में कॉलेज में एडमिशन लेना चाहते हैं. सब्जेक्ट 1 में स्टूडेंट ए को 95 मिलते हैं और बी को 85. लेकिन सीबीएसई, बी के मार्क्स बढ़ाकर 95 कर देता है, जबकि ए के वहीं रहते हैं यानी 95 पर. सब्जेक्ट 2 में, स्टूडेंट ए को 95 मिलते हैं और बी को 96.
अब ए के दोनों सब्जेक्ट्स में 95-95 मार्क्स हैं. वहीं बी के 95 और 96. अगर मार्क्स मॉडरेट नहीं किए गए होते तो स्टूडेंट ए बी के मुकाबले 9 मार्क्स आगे होता लेकिन मॉडरेशन का मजाक देखिए कि अब बी को एडमिशन मिल जाएगा लेकिन ए को नहीं.
मजे की बात ये कि मॉडरेशन का ये सिस्टम CBSE, 2008 से चला रहा है. ये ग्राफ अपनी कहानी खुद कह रहे हैं. CBSE के नियम-कायदों में इसका कहीं कोई जिक्र नहीं है. यहां तक कि उस पन्ने पर भी नहीं जिस पर लिखा है- the moderation policy.
प्रिय केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, आपने कहा:
“बीते कई सालों से बोर्ड मार्क्स बढ़ाने का काम कर रहे हैं. मार्क्स बढ़ाने के इस सिस्टम को इजाजत नहीं दी जा सकती. ये एक बेकार का खतरा है."
फिर, CBSE इस 'बेकार के खतरे' को आगे क्यों बढ़ाती रही?
क्या सरकार को पता था कि CBSE इस साल भी मार्क्स मॉडरेट करने वाला है?
और क्या वजह हो सकती है कि CBSE ने HRD minister तक की बात को अनदेखा कर दिया.
CBSE ने स्टू़डेंट्स से झूठ क्यों बोला कि वो मॉडरेशन रोक देंगे?
CBSE को खुद अपने लाखोें स्टूडेंट्स को चीट करने के लिए जवाब देना होगा क्योंकि उसके इस गुनाह का असर बच्चों के कॉलेज एडमिशन पर साफ दिखेगा.
मेरा सवाल है कि----CBSE की जवाबदेही कौन तय करेगा?
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