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देश में मीडिया को लेकर बहस नई नहीं है. पहले के मुकाबले अब मीडिया में काफी बदलाव आ गया है. टीवी की बहसों से लेकर सोशल मीडिया तक आजाद आवाज को दबाने की कोशिश की जाती है. अचानक मीडिया को लेकर बहस तेज हो गई है कि इतना बदलाव क्यों और कैसे आया. इसी मुद्दे को लेकर क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने बात की कंज्यूमर बिहेवियर, एडवरटाइजिंग और मीडिया एक्सपर्ट संतोष देसाई से.
संतोष देसाई के मुताबिक, हर चैनल में पूर्वाग्रह हैं और गलतियां छिपाने की कोशिश की जाती है. बिना छानबीन और जांच के नतीजे पर पहुंचना गलत है.
दरअसल, संतोष देसाई ने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में लिखे अपने एक कॉलम में मीडिया के हालात की समीक्षा की है. नीरव मोदी घोटाले पर चैनलों ने जिस तरह की कवरेज की है, उसने देसाई को काफी हैरान किया. देसाई का मानना है कि बिना दांत का मीडिया, उन सरकारों तक के लिए फायदे का सौदा नहीं है जिनकी वकालत करने का वो दम भरता है.
क्विंट हिंदी के साथ खास बातचीत में संतोष देसाई ने बताया, “पिछले कुछ सालों में न्यूज चैनलों में काफी बदलाव आया है. पक्षपात पहले भी होता था और अब भी है लेकिन मौजूदा समय में प्रोपेगेंडा के तहत न्यूज दिखाई जा रही है.
संतोष देसाई के मुताबिक, सोशल मीडिया का इस्तेमाल जोड़ने-तोड़ने के लिए किया जा सकता है. इस दौर में सोशल मीडिया में दूसरी आवाजें भी बुलंद हुई हैं. हर तरह की आवाज को प्लेटफॉर्म मिल रहा है. अब सभी पर कब्जा जमाना आसान नहीं रहा. लेकिन ये भी सच है कि सोशल मीडिया को मैनेज किया जा रहा है. अब सोशल मीडिया फ्री स्पेस नहीं रहा.
(क्विंट और बिटगिविंग ने मिलकर 8 महीने की रेप पीड़ित बच्ची के लिए एक क्राउडफंडिंग कैंपेन लॉन्च किया है. 28 जनवरी 2018 को बच्ची का रेप किया गया था. उसे हमने छुटकी नाम दिया है. जब घर में कोई नहीं था,तब 28 साल के चचेरे भाई ने ही छुटकी के साथ रेप किया. तीन सर्जरी के बाद छुटकी को एम्स से छुट्टी मिल गई है लेकिन उसे अभी और इलाज की जरूरत है ताकि वो पूरी तरह ठीक हो सके. छुटकी के माता-पिता की आमदनी काफी कम है, साथ ही उन्होंने काम पर जाना भी फिलहाल छोड़ रखा है ताकि उसकी देखभाल कर सकें. आप छुटकी के इलाज के खर्च और उसका आने वाला कल संवारने में मदद कर सकते हैं. आपकी छोटी मदद भी बड़ी समझिए. डोनेशन के लिए यहां क्लिक करें.)
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