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नागरिकता संशोधन कानून: नॉर्थ-ईस्ट को रियायत या सिर्फ सियासत?

जहां कई लोग संशोधन को ‘सेक्युलरिज्म पर हमला’ बता रहे हैं, वहीं नॉर्थ ईस्ट में अलग मुद्दे हैं.

अस्मिता नंदी & कौशिकी कश्यप
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नागरिकता संशोधन कानून: पूर्वोत्तर राज्यों में  लोग डरे हुए हैं कि कहीं उनकी पहचान न खो जाए.
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नागरिकता संशोधन कानून: पूर्वोत्तर राज्यों में लोग डरे हुए हैं कि कहीं उनकी पहचान न खो जाए.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम

कैमरा: मुकुल भंडारी

संसद के दोनों सदनों में जैसे ही नागरिकता संशोधन बिल पारित हुआ, नॉर्थ ईस्ट उबलने लगा. नया कानून बनने के बाद बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को बिना डॉक्यूमेंट के ही नागरिकता मिल जाएगी. जहां कई लोग संशोधन को ‘सेक्युलरिज्म पर हमला’ बता रहे हैं, वहीं नॉर्थ ईस्ट में अलग मुद्दे हैं. भारी संख्या में शरणार्थियों के आने की आशंका से यहां के लोकल लोग डरे हुए हैं कि कहीं उनकी पहचान न खो जाए.

जब जनवरी 2018 में ये बिल पेश किया गया था, तब भी इस क्षेत्र में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. इसे देखते हुए मोदी सरकार ने कई छूट दिए हैं. छठी अनुसूची में शामिल सभी ट्राइबल इलाकों को इस बिल से बाहर रखा गया है. अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड के बड़े हिस्से को भी इससे बाहर रखा गया है जो इनर लाइन परमिट रूल के अंदर आते हैं. यहां तक कि सरकार ने इनर लाइन परमिट रूल को बढ़ाकर इसे मणिपुर और नागालैंड के दीमापुर जिले तक कर दिया है.

फिर भी नॉर्थ ईस्ट के लोग प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं? हम बारी-बारी से एक-एक राज्य को देखते हैं.

असम

असम विरोध प्रदर्शन का केंद्र है. इसके विरोध की वजह ये है कि राज्य के 33 जिलों में सिर्फ 7 ही एक्ट के दायरे से बाहर रहेंगे. असम का बड़ा हिस्सा जो नॉन-ट्राइबल है, अब भी सिटिजनशिप एक्ट से प्रभावित होगा. सालों से अहोम को ये डर रहा है कि बंगाली प्रवासी उनके संसाधनों और नौकरियों पर कब्जा कर लेंगे. इसका लंबा इतिहास है.

1826 में अंग्रेजों ने असम की आधिकारिक भाषा बांग्ला कर दी. 47 साल तक ये स्थिति बनी रही. जब बंटवारा हुआ, तो बड़ी संख्या में बंगाली प्रवासी असम आए और यहां बस गए. इससे लोकल लोगों में गुस्सा और बढ़ गया. अपनी पहचान बचाए रखने के लंबे संघर्ष के बाद 1985 में असम अकॉर्ड साइन हुआ. इसके तहत राज्य में अवैध प्रवासियों को सिटिजनशिप देने के लिए 1971 को कट ऑफ ईयर माना गया.

भारत के दूसरे राज्यों में ये कट ऑफ ईयर 1951 था. सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के जरिए सरकार ने अब इस सीमा को गैर-मुस्लिम प्रवासियों के लिए 31 दिसंबर 2014 तक बढ़ा दिया है. असम में विरोध कर रहे ग्रुपों का कहना है कि ये असम अकॉर्ड का साफ उल्लंघन है और उन्हें आशंका है कि इसके बाद राज्य में शरणार्थियों का हुजूम उमड़ेगा.

इसका एक और पहलू भी है: NRC या National Register of Citizens. NRC के जरिए 19 लाख लोगों की पहचान अवैध प्रवासियों के तौर पर हुई है और उनमें से बहुत सारे हिंदू हैं. ये लोग अब सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के तहत नागरिकता के हकदार हो जाएंगे.

चूंकि अहोम ग्रुप लंबे समय से NRC की मांग कर रहा था, अब वो सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट को धोखे के तौर पर देख रहे हैं.

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बॉर्डर पार से लोगों के आने का डर

CAB पारित होने के बाद मेघालय में भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. प्रदर्शनकारियों ने पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह और रूलिंग पार्टी NPP की अगाथा संगमा के पुतले जलाए, जिन्होंने लोकसभा में CAB के पक्ष में वोट किया था. शिलांग के छोटे हिस्से को छोड़कर मेघालय छठी अनुसूची के जरिए प्रोटेक्टेड है. मगर, यहां डर है कि एक बार बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता मिल गयी तो वे आसानी से मेघालय आ जाएंगे और यहां बस जाएंगे. मेघालय की सीमा का बड़ा हिस्सा बांग्लादेश के साथ-साथ असम से मिलता है.

अब मांग ये है कि मेघालय को भी इनर लाइन परमिट रूल में शामिल किया जाए. लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए राज्य सरकार संशोधित मेघालय रेसिडेंट्स सेफ्टी एंड सिक्योरिटी एक्ट लेकर सामने आयी है. ये एक्ट प्रावधान करता है कि अगर विजिटर्स 24 घंटे से अधिक राज्य में रुकता है तो उसे ऑनलाइन आवेदन देना होगा और इजाजत लेनी होगी.

अरुणाचल प्रदेश में भी वही आशंका है कि लोग आसानी से असम होते हुए यहां आ जाएंगे और राज्य में बस जाएंगे. हालांकि नागालैंड तुलनात्मक रूप से ज्यादा शांत है. लेकिन बिल को लेकर लोग आशंकित हैं.  एक छात्र नेता का कहना है कि आईएलपी अवैध इमिग्रेशन को नियंत्रित कर पाने में फेल रहा है, इसलिए इसका विस्तार पूरे राज्य में करने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

सिटिजनशिप बिल पर उबल पड़ा त्रिपुरा

त्रिपुरा में भी जन-जीवन अस्त-व्यस्त है जहां आदिवासी इलाकों को CAB से बाहर रखा गया है. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि बिल कई संधियों का उल्लंघन करता है जो भारत सरकार ने त्रिपुरा के लोगों के साथ किए हैं जिसमें एटीटीएफ और इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन भी शामिल हैं.

मिजोरम

मिजोरम में सबसे बड़ी चिंता चकमा रिफ्यूजी की मौजूदगी को लेकर है जो बांग्लादेश के चिट्टगांव की पहाड़ियों से आए हैं. लोगों की चिंता ये है कि अगर इन्हें नागरिकता दी गयी तो हिंदू चकमा रिफ्यूजी इस ईसाई बहुल राज्य की डेमोग्राफी बदल देंगे.

पहचान की लड़ाई को लेकर नॉर्थ ईस्ट हमेशा से उबलता रहा है. अब ये एक्ट एक और गलत कदम है जिसने मौजूदा हालात को और खराब किया है

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Published: 14 Dec 2019,01:16 PM IST

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