Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बदल रही है कांग्रेस, ताजातरीन दस्तावेज से ये उम्मीद बंधती है

बदल रही है कांग्रेस, ताजातरीन दस्तावेज से ये उम्मीद बंधती है

कांग्रेस अधिवेशन में पारित आर्थिक प्रस्ताव के क्या हैं मायने?  

राघव बहल
वीडियो
Published:
कांग्रेस के आर्थिक प्रस्ताव में झलक रहे हैं नीतियों में बदलाव के नए अंकुर 
i
कांग्रेस के आर्थिक प्रस्ताव में झलक रहे हैं नीतियों में बदलाव के नए अंकुर 
(फोटोः The Quint)

advertisement

मैंने अभी-अभी ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में पारित आर्थिक प्रस्ताव पढ़ा. मुझे इसमें "गरीबी हटाओ", समाजवाद और "गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम" जैसे पुराने कांग्रेसी जुमले कहीं नजर नहीं आए. लिहाजा, मैं इसे एक बार फिर से पढ़ने को मजबूर हुआ ताकि ये पक्का हो जाए कि मुझसे कहीं कुछ छूट तो नहीं गया है.

जी हां! मेरी आंखों ने धोखा नहीं खाया. इस पूरे दस्तावेज में कांग्रेस के पुराने इतिहास से जुड़े इन थके हुए नारों का जिक्र एक बार भी नहीं आया. 12 पन्नों का ये दस्तावेज न सिर्फ बेहद सधी हुई भाषा में लिखा गया है, बल्कि इसकी साज-सज्जा और छपाई भी बेहद साफ-सुथरी है. (इसमें न तो टाइपिंग की गलतियां हैं और न ही टेढ़े-मेढ़े पैराग्राफ! प्रोफेशनलिज्म की ये झलक स्वागत योग्य है.) इसकी शब्दावली में युवावस्था की ताजगी और आधुनिकता की सुगंध है.

कांग्रेस महाधिवेशन के दौरान मंच पर मौजूद नेता(फोटोः PTI)  

"भारत का निजी क्षेत्र व्यापार, मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन और एक्सपोर्ट के जरिए बड़ी संख्या में बेहतर, उत्पादक नौकरियां पैदा कर सकता है...भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत के उद्यमियों के लिए उनकी आर्थिक आजादी को फिर से हासिल करने का संकल्प लेती है...."

"लगातार आर्थिक विकास ही मिडिल-इनकम वाला विकसित देश बनने का सही रास्ता है. यही वो रास्ता है जिस पर चलकर गरीबों को उनकी गरीबी से छुटकारा दिलाया जा सकता है. एकविशाल, जीवंत और उत्पादक मिडिल क्लास तैयार करने की राह भी यही है. यही वो रास्ता है जिस पर चलकर समृद्धि पैदा की जा सकती है..."

निजी क्षेत्र की प्रधानता !

वाह, क्या बात है! नौकरियां पैदा करने के मामले में निजी क्षेत्र को प्रधानता देना और पब्लिक सेक्टर का जिक्र तक न होना, एक ताजगी देने वाली बात है. इसमें ये खामोश स्वीकृति भी छिपी है कि व्यावसायिक गतिविधियों में सरकारी निवेश की उत्पादकता कितनी खराब रही है. एक जीवंत मिडिल क्लास के जरिये समृद्धि पैदा करने पर जोर देने की बात एक मुखर और बुलंद महत्वाकांक्षा की ओर इशारा करती है.

(फोटोः PTI)  कांग्रेस महाधिवेशन में बोलते राहुल गांधी
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

यू-टर्न पर काबू में रहनी चाहिए रफ्तार

फॉर्मूला वन ड्राइवर ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि अगर यू-टर्न को पलटी खाए बिना पार करना है तो आपको स्टियरिंग व्हील को बहुत सावधानी से मोड़ना होगा और गाड़ी की रफ्तार बिलकुल सही समय पर और बड़ी सतर्कता के साथ घटानी-बढ़ानी होगी. और अगर आप लोकतंत्र के रेसिंग ट्रैक पर लेन बदलना चाहते हैं, तो ''यू'' टर्न की गोलाई बहुत ही चौड़ी और घुमावदार, करीब-करीब ''डब्ल्यू'' जैसी होनी चाहिए.

पब्लिक सेक्टर के बारे में: रक्षा उत्पादन, जन परिवहन, प्राकृतिक संसाधन और वित्तीय सेवाओं जैसे कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बिजनेस पर सरकार का मालिकाना हक जरूरी और तर्कसंगत दोनों है.

मेरी राय: यहां इस दस्तावेज में सार्वजनिक क्षेत्र का महिमामंडन करने वाली अलंकारिक भाषा की जगह कामकाजी अंदाज में कम से कम और नपेतुले शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. ये बात भी काफी मायने रखती है कि यहां सिर्फ चार क्षेत्रों का जिक्र किया गया है. क्या इसे इन चार को छोड़कर बाकी क्षेत्रों में पब्लिक सेक्टर के तेज रफ्तार निजीकरण के इरादों का संकेत माना जाए, जिसके लिए यहां फिलहाल हवा का रुख भांपने की कोशिश की जा रही है? मैं ईमानदारी से दुआ करूंगा कि हकीकत में ऐसा ही हो.

बैंकिंग सेक्टर के बारे में: रेगुलेटरी संस्थाओं की संस्थागत ईमानदारी को कमजोर किए जाने और निगरानी व्यवस्था की विफलता के कारण भारत का बैंकिंग सेक्टर गहरे संकट में है...

मेरी राय: शुरुआती दौर में बैंकिंग जैसे संवेदनशील क्षेत्र के स्वामित्व में किसी तरह का बदलाव करना भले ही कुछ ज्यादा मुश्किल लग रहा हो, लेकिन निगरानी व्यवस्था की नाकामी और गहरे संकट को स्वीकार करना क्या सरकारी बैंकों के ढांचे और मैनेजमेंट में आमूलचूल बदलाव के एक बोल्ड ब्लूप्रिंट की दिशा में पहला कदम है? शायद सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण की जगह पर संसद की सीधी निगरानी वाली स्वायत्त होल्डिंग कंपनी स्थापित करना इसका सही उपाय हो सकता है?

आधार के बारे में: मोदी सरकार ने आधार की अवधारणा और इस्तेमाल के साथ खिलवाड़ किया है. इसे सशक्तिकरण का जरिया बनाने की जगह नियंत्रण का ऐसा हथियार बना दिया गया है जो लोगों की जिंदगी में बेवजह हस्तक्षेप करता है और कई मामलों में सबसे गरीब लोगों को लाभ के दायरे से बाहर कर देता है.

मेरी राय: यहां भी, ये प्रस्ताव आम लोगों और सिविल सोसायटी के मौजूदा मूड के पूरी तरह अनुरूप है.

कृषि मूल्यों के बारे में: इंपोर्ट और एक्सपोर्ट - दोनों मामलों में मूल्य निर्धारण की गलत नीतियों ने कृषि उत्पादों के व्यापार को अस्थिर और सरकार की दया पर कुछ ज्यादा ही निर्भर बना दिया है.

मेरी राय: मुझे इटैलिक्स में दिए शब्द बहुत ही प्यारे लगे ! क्या हमें अब कृषि बाजारों में बड़े ढांचागत बदलाव की उम्मीद करनी चाहिए, जिसे अभी नियंत्रण की भारी-भरकम बेड़ियों ने बुरी तरह जकड़ रखा है?

निष्कर्ष के तौर पर मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि कांग्रेस के आर्थिक प्रस्ताव में हमें उम्मीद जगाने वाले और दिलेरी से भरे नीतिगत बदलावों के अंकुर नजर आ रहे हैं.

जैसा मैं पहले यहां लिख चुका हूं कि अर्थव्यवस्था के बाकी क्षेत्र बेहतर रेगुलेशन वाले बाजारों की कुशलता बढ़ाने वाली प्रतिस्पर्धा के हवाले किए जा सकते हैं.

लेकिन ये आर्थिक प्रस्ताव फिलहाल तो सिर्फ बातों का ढेर ही है. और बातें करना बेहद आसान होता है, खासकर तब, जब आप विपक्ष में हों. लेकिन सच ये भी है कि सभी योजनाबद्ध बदलावों की शुरुआत एक नया खाका पेश करने वाले शब्दों से ही होती है. कांग्रेस पार्टी चाहती तो बड़ी आसानी से अपने किसी पुराने बकवास प्रस्ताव पर पड़ी धूल झाड़कर उसे फिर से पेश कर सकती थी. लेकिन उसने ऐसा करने की जगह कुछ ''आधे आउट ऑफ बॉक्स'' विचार पेश करने का फैसला किया, जिनसे ''आधी उम्मीद'' जगी है. बाकी आधी उम्मीद तब जगेगी जब राहुल की कांग्रेस अपने ''संकल्प पर अमल'' शुरू कर देगी !

[क्‍विंट ने अपने कैफिटेरिया से प्‍लास्‍ट‍िक प्‍लेट और चम्‍मच को पहले ही 'गुडबाय' कह दिया है. अपनी धरती की खातिर, 24 मार्च को 'अर्थ आवर' पर आप कौन-सा कदम उठाने जा रहे हैं? #GiveUp हैशटैग के साथ @TheQuint को टैग करते हुए अपनी बात हमें बताएं.]

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT