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‘विदेशी मीडिया’ नहीं, भारतीयों ने ‘असली’ COVID संकट को उजागर किया

जलती चिताएं, अस्पतालों के बाहर सांस के लिए हांफते मरीज, ऑक्सीजन के लिए कतार - भारत के COVID संकट की तस्वीर

ज़िजाह शेरवानी
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कोरोना: जब मीडिया ने नहीं दिखाया दर्द, जनता ने खुद उठाया कैमरा
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कोरोना: जब मीडिया ने नहीं दिखाया दर्द, जनता ने खुद उठाया कैमरा
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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लगातार जलती हुई चिताएं, अस्पतालों के बाहर सांस के लिए हांफते मरीज, ऑक्सीजन के लिए कतार में खड़े लोग, काम का बोझ उठाए स्वास्थ्यकर्मी - ये तस्वीर भारत के COVID संकट की है.

जब भी ऐसी तस्वीर सामने आई तो सच से नजर फेरने की कोशिश हुई और 'विदेशी मीडिया' को तथाकथित पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग के लिए दोषी ठहराया गया. लेकिन अगर कोई सोशल मीडिया पर नजर दौड़ाएगा तो वो समझ सकेगा कि मीडिया नहीं, बल्कि खुद भारतीय इस महामारी की सच्चाई दिखाने के लिए दर्दनाक तस्वीरें और वीडियो शेयर कर रहे थे.

अपने क्षमता से ज्यादा काम करना हो या खुद के लिए अस्पताल में बेड पाने की जद्दोजेहद के बारे में बताते डॉक्टरों के वीडियो. कोई पत्रकार नहीं बल्कि आम भारतीय जिन्होंने 'सच्चाई' को दुनिया सामने रखा.

गोवा की उद्यमी श्रुति चतुर्वेदी, जो गोवा COVID केयर पहल के लिए एक वॉलंटियर के रूप में काम कर रही हैं, उन्होंने सरकार द्वारा संचालित गोवा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ऑक्सीजन संकट की कहानी दुनिया को बताई.

उन्होंने आवाज उठाने के लिए अपने ट्विटर हैंडल का इस्तेमाल किया और ऑक्सीजन मशीनों में ऑक्सीजन की कमी को दिखाने के लिए वीडियो शेयर किया. उनके एसओएस मैसेज और वीडियो ने अधिकारियों को कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया. आखिरकार मुख्यधारा के मीडिया ने भी इस मुद्दे को उठाया.

“मैंने डॉक्टरों से वॉर्ड के अंदर से वीडियो भेजने के लिए कहा क्योंकि पहले के अधिकारियों ने इस मुद्दे पर एक्शन लेने से इनकार किया था. ये वीडियो सबूत के तौर पर पेश किए गए और कार्रवाई की गई.’’
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दिल्ली के आरएमएल अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर मनीष जांगड़ा ने ऑक्सीजन मास्क में अपना एक वीडियो अपलोड किया था. उन्होंने बताया कि कैसे वह एक अस्पताल में डॉक्टर होने के बावजूद अपने लिए एकबेड भी सुरक्षित नहीं कर पाए हैं. उनके वीडियो ने अस्पतालों में बिस्तरों की कमी और 'वीआईपी संस्कृति' की ओर ध्यान खींचा.

“लोगों को पीड़ित देखकर मैं निराश था. मेरे आस-पास हर कोई रो रहा था और बहुत असहाय था. मैं इस बात पर रौशनी डालना चाहता था कि अगर किसी डॉक्टर को ऐसे हालातों से गुजरना पड़ रहा है, तो गरीबों पर क्या बीत रही होगी.’’
डॉक्टर मनीष जांगड़ा, दिल्ली

दिल्ली के एक छात्र अंकित शर्मा हैं. उन्होंने श्मशान घाट के कर्मचारियों की दुर्दशा की सच्चाई बताई. उन्होंने दिखाया कि कैसे वे अधिक काम करते हैं, उनके पास कोई सुरक्षात्मक गियर नहीं है और उन्हें अभी भी फ्रंटलाइन कार्यकर्ता नहीं माना जाता है.

क्या सच की ओर ध्यान दिलाने से भारत की बदनामी होती है?

भारत के COVID-19 संकट के कुप्रबंधन के लिए मोदी सरकार की आलोचना करने वाली लैंसेट की हालिया रिपोर्ट को कई बीजेपी नेताओं ने नकार दिया था. रिपोर्ट को 'असंतुलित', 'राजनीति से प्रेरित' और 'गुमराह' बताया.

जबकि भारतीय उच्चायोग ने द ऑस्ट्रेलियन को एक तीखा लेख लिखा था, जिसका शीर्षक था, ''मोदी ने भारत को लॉकडाउन से बाहर निकाला."

इन लेखों में उल्लेख किया गया है कि कैसे भारतीयों को चिकित्सा सहायता के लिए सोशल मीडिया की ओर रुख करने के लिए मजबूर किया गया, जबकि सरकार COVID मामलों में बढ़ोतरी से निपटने के लिए तैयार नहीं थी.

लैंसेट ने यह भी देखा था कि सरकार "महामारी को नियंत्रित करने की कोशिश से ज्यादा ट्विटर पर आलोचना को हटवाने में लगी है."

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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