Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019चुनावी रैला, धार्मिक मेला... मत पूछो कोरोना कैसे फैला?

चुनावी रैला, धार्मिक मेला... मत पूछो कोरोना कैसे फैला?

कई शहरों में श्मशान और कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार के लिए लोगों को घंटों इंतजार करना पड़ रहा है.

शादाब मोइज़ी
वीडियो
Published:
(फोटो: क्विंट हिंदी)
i
null
(फोटो: क्विंट हिंदी)

advertisement

वीडियो एडिटर- संदीप सुमन

कैमरा- शिव कुमार मौर्या

भारत में कोरोना रॉकेट की स्पीड से बढ़ रहा है. सरकारी आंकड़ों की माने तो कोरोना की वजह से 13 अप्रैल 2021 तक एक लाख 71 हजार लोगों की मौत चुकी है, मतलब एक छोटे शहर की आबादी जितने लोगों की जान चली गई.

लेकिन न रैलियां रुकीं, न धार्मिक सेलिब्रेशन और न ही जमावड़े. इसलिए जब मौत और कोरोना के केस बढ़ रहे हैं और नेता बिना मास्क के 'मैसिव क्राउड इन रैली' वाले ट्वीट और रोड शो करेंगे तो हम पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

कोरोना वायरस के कुल कन्फर्म्ड केस के मामले में भारत ने ब्राजील को भी पीछे छोड़ दिया है. कुल केस के आधार पर जिन देशों में COVID-19 का सबसे ज्यादा कहर है, उनमें भारत से ऊपर अब सिर्फ अमेरिका ही बचा है.

देश में कोरोना के जहां एक अप्रैल 2021 को 5 लाख 84 हजार एक्टिव केस थे वहां 13 अप्रैल को ये बढ़कर 12 लाख (12,64,698) से भी ज्यादा हैं. एक दिन में डेढ़ लाख से ज्यादा पॉजिटिव केस सामने आ रहे हैं.

'दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी..'

'दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी..' का नारा दिया गया था ना. जब दिल्ली और दूसरे शहरों में बिना मास्क के लोग सड़कों पर घूमते हैं तो चालान और पुलिस के डंडे से उनका स्वागत किया जाता है. लेकिन नेता रैलियों पर रैलियां कर रहे हैं, रोड शो कर रहे हैं, भीड़ का वीडियो फोटो शेयर कर रहे हैं और न सोशल डिस्टेंसिंग है और मास्क का तो सवाल ही बनता है. नेताओं का भी कमाल है.. दिन में रैली और रात में कोरोना पर मीटिंग..

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

चलिए आपको चुनाव और उसकी रैलियों ने क्या बम फोड़ा है ये भी दिखाते हैं.

बंगाल

हाल ही में पश्चिम बंगाल के चिकित्सकों के संगठन वेस्ट बंगाल डॉक्टर्स फोरम ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखकर प्रदेश में चल रहे प्रचार अभियानों पर रोक लगाने की मांग की थी. दलील दी गई थी कि चुनाव अभियानों में किसी भी तरह सोशल डिस्टेंसिंग और कोविड प्रोटोकॉल का ख्याल नहीं रखा जा रहा है. अब एक महीने के अंदर कोरोना के दस गुना ज्यादा मामले मिल रहे हैं.

बंगाल में 13 अप्रैल 2021 तक कोरोना की वजह से कुल मौतों का आंकड़ा 10,414 पहुंच गया है. और फिलहाल एक्टिव केस 26,531 हैं. बीते महीने 10 मार्च तक औसतन रोज 222 नए केस आ रहे थे. लेकिन चुनावी रैलियों के बीच एक महीने बाद 13 अप्रैल को 4,511 नए केस आए हैं. 10 मार्च को कुल केस 5.77 लाख थे जो 13 अप्रैल को बढ़कर 6,19,407 जा पहुंचे हैं.

तमिलनाडु

तमिलनाडु में 13 अप्रैल तक कोरोना के कुल 9,40,145 मामले सामने आ चुके हैं. जिसमें अबतक12,927 लोगों की मौत हुई है. अगर पिछले महीने की बात करें तो 10 मार्च को एक हफ्ते के औसत नए मरीजों के मिलने की तादाद जहां 564 थी वहीं ठीक एक महीने बाद चुनावी कार्यक्रमों के दौरान बढ़कर 4 हजार 370 पर जा पहुंची.

इसी तरह के डराने वाले आंकड़े असम, केरल और पुडुचेरी के भी हैं.

इसी दौरान उत्तराखंड के हरिद्वार में कुंभ का भी आयोजन हुआ. करीब 30 लाख श्रद्धालुओं ने मेला इलाके में और उसके आसपास स्नान किया. एक ही दिन में.

कोरोना एक से 200 और 200 से 20 हजार लोगों में कैसे फैलता है ये देश पिछले एक साल से देख रहा है.

अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक 11 अप्रैल को रात 11:30 बजे से 12 अप्रैल को शाम 5 बजे के बीच 18160 से ज्यादा श्रद्धालुओं के COVID टेस्ट किए गए, जिनमें से 102 कोरोना संक्रमित पाए गए.

अब बात वैक्सीनेशन की

भारत में 16 जनवरी से कोरोना वैक्सीनेशन शुरू हुआ था. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 14 अप्रैल तक देश भर में कुल 10 करोड़ 85 लाख वैक्सीन की डोज लोगों को लगाई जा चुकी है. इसपर ज्यादा खुश होने से पहले ये जान लें कि 130 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले भारत में सिर्फ 7 फीसदी लोगों को ही अबतक टीका नसीब हो पाया है.

आंकड़े से बाहर आते हैं. लखनऊ, पटना, मुंबई जैसे शहरों में अस्पताल में बेड नहीं मिल रहे हैं. कई शहरों में टेस्टिंग और रिपोर्ट आने में कई-कई दिन लग जा रहे हैं. जिंदा रहने की जंग जारी है. लेकिन मरने के बाद भी सुकून नहीं. कई शरहों में श्मशान और कब्रिस्तान में अंतिम संस्कार के लिए जगह की कमी पड़ गई है.

गुजरात के सूरत में मौतों की संख्या बढ़ने की वजह से मजबूरन श्मशान के बाहर खुले मैदान में अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है. और तो और जिस गैस की भट्टी से अंतिम संस्कार किया जाता है, उसके अंदर जो लोहे के फ्रेम लगे हैं वो पिघलने लगे हैं, क्योंकि यहां 24 घंटे अंतिम संस्कार के लिए लाशें आ रही हैं.

अब आप कहेंगे कि तो क्या इस वजह से बाजार से लेकर हर जगह फिर से ताले लगा दें? फिर खाएंगे कहां से, अर्थव्यवस्था का क्या होगा? नहीं धंधे और समझ पर ताले नहीं बल्कि हिपोक्रेसी पर लगानी होगी.. और अगर ऐसा नहीं होता है तो हम पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT