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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम
कोरोनावायरस के एक्टिव केसिस और उसके असर से मरने वालों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ रही है. देश भर में लॉकडाउन है. दूध-सब्जी-राशन जैसी बुनियादी चीजों की स्पलाई को लेकर लोगों में घबराहट है. और इस महामारी ने एक बार फिर साबित कर दिया कि शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर उत्तर भारतीय राज्य दक्षिण भारतीय राज्यों से कहीं पीछे हैं.
कथा जोर गरम है कि...
सदी की सबसे बड़ी महामारी कोरोनावायरस से निपटने के लिए हिंदी पट्टी के नॉर्थ इंडियन राज्य जहां थाली और ताली के भाषण में उलझे हैं वहीं साउथ इंडियन स्टेट्स में ‘नो भाषण, ओनली एक्शन’ का जोर दिख रहा है.
30 जनवरी को कोरोना का पहला मामला केरल में सामने आया. हालांकि चीन समेत दुनिया के कई देशों में त्राहिमाम हो चुका था लेकिन भारत में धीरे-धीरे बढ़ते हुए COVID 19 के एक्टिव केसिस ने 14 मार्च तक 100 का आंकड़ा छुआ.
यानी ज्यादा से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग होगी तो वायरस के शिकार लोगों को क्वारनटीन यानी अलग-थलग करते हुए कोरोना के सामुदायिक फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी.
अब सुनिए, आंकड़ों पर आधारित पत्रकारिता और आकलन करने वाली वेबसाइट इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट. 11 राज्यों पर की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक जिन राज्यों ने ज्यादा टेस्टिंग की वहां ज्यादा मामले सामने आए. और साथ ही उन राज्यों ने हालात से निपटने में सबसे बढ़िया काम किया. 24 मार्च तक के आंकड़ों के मुताबिक
यानी सैंपल टेस्टिंग के टॉप 5 में से 3 दक्षिण भारतीय राज्य हैं. एक पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र है जो अब देश का सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्य है और उत्तर भारत का सिर्फ एक, और वो भी छोटा सा राज्य हरियाणा है.
अब बात करते हैं कि प्रति 10 लाख लोगों में से किस राज्य ने कितने लोगों की टेस्टिंग की. इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट में यहां फिर केरल सबसे ऊपर है-
यानी एक बार फिर बाकि देश के मुकाबले साउथ इंडियन स्टेट्स कोरोना से निपटने को लेकर ज्यादा गंभीर दिख रहे हैं.
अगर आप सोच रहे होंगे कि भाई यूपी और बिहार कहां हैं? तो आप हैरान हो जाएंगे ये जानकर कि स्वास्थ्य मंत्रालय की वेबसाइट पर देश के सबसे बड़े राज्यों में शामिल यूपी और बिहार कोरोना टेस्टिंग को लेकर नियमित आंकड़े जारी ही नहीं करते.
इन दो राज्यों में पूरे देश की करीब 25 फीसदी आबादी रहती है. यानी हर चार में से एक व्यक्ति या तो यूपी से है या बिहार से. लेकिन जनाब.. कोरोना टेस्टिंग का कोई अता-पता नहीं.
केरल शुरुआत से ही कोरोना को लेकर बेहद गंभीर नजर आया.
कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग और रूट मैपिंग जैसे बैज्ञानिक तरीकों की शुरुआत की. जांच के लिए केंद्र का क्वारनटीन पीरियड 14 दिन का है लेकिन केरल ने उसे 28 दिन रखा. लोगों की मेंटल हेल्थ पर फोकस किया. कोरोना से जुड़ी फेक न्यूज से लड़ने के लिए सरकारी एप बना डाला. माइग्रेंट वर्कर्स में जागरुकता के लिए मुख्यमंत्री पिनरई विजयन मलयालम के साथ हिंदी और बंगाली में ट्वीट करते दिखे.
देश में आबादी के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कोरोना का पहला मामला 12 मार्च को सामने आया. 24 मार्च को देशभर में लॉकडाउन की घोषणा के बाद सीएम योगी लोगों से घरों में रहने की ट्विटर अपील कर रहे थे
लेकिन उससे पहले यूके से लौटीं कोरोना पॉजिटिव सिंगर कनिका कपूर राजधानी लखनऊ की हाई-प्रोफाइल पार्टियों में शिरकत कर सैंकड़ों लोगों को खतरे में डाल चुकी थीं.
टेस्टिंग से लेकर सोशल डिस्टेंसिंग के मामले में कोई गंभीरता अब तक नहीं दिख रही. हां.. कोरोना हारेगा, भारत जीतेगा जैसे नारे बुंलदी पर हैं.
देश भर के कोरोना प्रभावित राज्यों में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले बिहार के लोग अपने गांव-देहात में लौट रहे हैं लेकिन क्विंट को पता चला है कि वहां उनकी जांच के नाम पर मजाक चल रहा है. मेडिकल सुविधाओं की गैरमौजूदगी में उन्हें कोरोना मुक्त घोषित कर दिया जा रहा है.
लॉकडाउन से पैदा हुई आर्थिक दिक्कतों से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा कर दी है. लेकिन जरूरी सामान का स्पलाई चेन, लोगों की आमदनी जारी रखने के तरीके, सिविल सोसाइटी और प्राइवेट सेक्टर का मोबेलाइजेशन, और बेघर और अप्रवासी मजदूरों की देखरेख जैसे मुद्दों पर अमल तो राज्य सरकारों को ही करना है. उस पैमाने पर हिंदी पट्टी के कई राज्य बेहद पीछे नजर आ रहे हैं. चिंता की बात ये है कि तीसरे फेज की तरफ बढ़ते कोरोनावायरस का खतरा भी सबसे ज्यादा वहीं है.
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