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सुमन 3,000 से ज्यादा सेक्स वर्कर्स में से एक हैं जो दिल्ली के जीबी रोड पर रेड लाइट एरिया में रहती हैं. दुर्भाग्य से, सेक्स वर्कर्स को हमारे समाज का एक महत्वहीन हिस्सा माना जाता है और कोई भी उनसे संबंधित मुद्दों को नहीं उठाता है, चाहे वो राजनेता हों, नीति निर्माता हों या मीडिया.
लेकिन हम सभी की तरह, सेक्स वर्कर्स भी कोविड-19 महामारी से अछूती नहीं हैं. क्विंट ने कई सेक्स वर्कर्स से बात की ताकि पता लगाया जा सके कि उनके व्यापार को कितना नुकसान हुआ है.
सुमन 17 साल पहले जीबी रोड पर तस्करी कर के लाई गईं थीं, जब वो सिर्फ 24 साल की थी. महामारी और लॉकडाउन के कारण उनकी आय में 60-70% की गिरावट आई है. अपने पेशे में अनिश्चितताओं के कारण, उसने एक एनजीओ से जुड़ने का फैसला किया. लेकिन समाज का हिस्सा बनने का उनका सपना पूरा नहीं हो पाया.
रेखा जैसी सेक्स वर्कर जनवरी 2021 तक गैर सरकारी संगठनों द्वारा दिए गए राशन पर जीवित रहीं. देश में दूसरी लहर आने के दो महीने के अंतराल के बाद, अप्रैल 2021 से गैर सरकारी संगठनों ने फिर से राशन उपलब्ध कराना शुरू किया.
पहली COVID लहर के दौरान, अधिकांश सेक्स वर्कर्स के पास बचत के पैसे थे, जिसका इस्तेमाल उन्होंने किया, लेकिन, दूसरी लहर उन्हें ज्यादा नुकसान पहुंचा रही है.
रामा जीबी रोड पर करीब 20 साल से सेक्स वर्कर हैं. उनके चार बच्चे हैं. उनकी मां और बहन को अप्रैल में दूसरी लहर के दौरान अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उसके पास इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे.
जीबी रोड की कुछ सेक्स वर्कर ऐसी स्थिति में पहुंच गई हैं, जहां वे इस पेशे से बाहर आकर घर जाना चाहती हैं, या वैकल्पिक नौकरी की तलाश करना चाहती हैं. चूंकि उनमें से अधिकांश के पास दूसरा कौशल नहीं है, इसलिए वैकल्पिक नौकरी खोजना कठिन होता जा रहा है. समाज से स्वीकृति एक और चुनौती है.
समय आ गया है कि राज्य और केंद्र सरकारें और महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय सेक्स वर्कर्स के बारे में सोचें और उन्हें महामारी से निपटने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करें.
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