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वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया
ग्लोबल विलेज वाले कॉन्सेप्ट के फायदे हमने देखे. वसुधैव कुटुंबकम तो और भी पुराना और टेस्टेड विचार है. लेकिन स्वार्थ ने हमें अंधा कर रखा है. मूर्खता की हद तक. कालीदास याद है ना? वो जो जिस डाल पर बैठा था उसे ही काट रहा था. कोरोना के मामले में लग रहा है कि कुछ लोग और कुछ देश सिर्फ अपने बारे में सोचने की गलती कर रहे हैं और पूरी दुनिया को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है.
जब वायरस फैला तो चीन ने अपनी सोची, दुनिया को देर से बताया. नतीजा सामने है. अमेरिका ने WHO को मदद रोकी. अब जब इतनी तबाही के बाद वैक्सीन बनी तो फिर अमीर सिर्फ अपने बारे में सोच रहे हैं. दूरदृृष्टि दोष की इंतेहा देखिए कि इससे खुद उन्हें भी घाटा हो सकता है.
ब्लूमबर्ग की 18 जनवरी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ अपने नागरिकों को COVID-19 वैक्सीन की लगभग 24 मिलियन खुराक दे चुके हैं - जो दुनियाभर में दी गई खुराकों की आधे से ज्यादा हैं - जबकि बड़ी संख्या में ऐसे भी देश हैं, जहां अभी टीकाकरण शुरू तक नहीं हुआ है.
WHO का ही कहना है कि जब तक एडवांस इकनॉमिज विकासशील देशों को वैक्सीनेशन ड्राइव तेज करने में मदद नहीं करते, तब तक कोरोनोवायरस महामारी से प्रभावित हुई उनकी अर्थव्यवस्थाओं के रिकवर करने में दिक्कत का सामना करना होगा.
अगर विकासशील देशों में वैक्सीन रोलआउट मौजूदा गति पर जारी रहता है, तो एडवांस इकनॉमी वाले देश को महामारी से पहले के GDP का $ 2.4tn यानी 3.5% तक आउटपुट लॉस का सामना करना पड़ सकता है - क्योंकि ये ग्लोबल ट्रेड और सप्लाई और डिमांड के चेन को बाधित करेगा.
WHO चीफ ने ‘COVAX फैसिलिटी’ का भी जिक्र किया, जिसका टारगेट सभी देशों में COVID-19 वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित करना है. उन्होंने कहा-
25 जनवरी 2021 को जारी ऑक्सफैम की रिपोर्ट ‘द इनइक्वैलिटी वायरस’ में बताया गया है कि इस महामारी के चलते अर्थव्यवस्था पर मार पड़ने से लाखों गरीब भारतीयों की नौकरियां चली गईं, लेकिन अरबपतियों की संपत्ति में बढ़ोतरी हुई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में लॉकडाउन के दौरान 35% बढ़ोतरी हुई है.
ऑक्सफैम ने महामारी के चलते भारत में गरीब बच्चों के सामने स्कूली शिक्षा को लेकर पैदा हुई चुनौतियों का भी जिक्र किया है. भारत के सबसे गरीब 20% परिवारों में से सिर्फ 3% के पास कंप्यूटर की पहुंच थी और सिर्फ 9% के पास इंटरनेट था जबकि ऑनलाइन एजुकेशनल सर्विस प्रोवाइडर्स ने इसी दौरान एक्सपोनेंशियल ग्रोथ देखी.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में असमानता को लेकर रिपोर्ट में कहा कि सबसे गरीब 20% लोगों में से सिर्फ 6% के पास ही बेहतर स्वच्छता के नॉन-शेयर्ड स्रोतों तक पहुंच है, जबकि टॉप की 20% आबादी में ये आंकड़ा 93.4% का है. भारत की 59.6% आबादी एक कमरे या उससे कम जगह में रहती है. इस तरह बताया गया है कि कोरोना वायरस महामारी से निपटने को लेकर, बहुत बड़ी आबादी के लिए हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने जैसे उपायों को अपनाना संभव नहीं था.
महिलाओं पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है- इसमें कोई दो राय नहीं. उनमें बेरोजगारी की दर कोविड से पहले 15% से बढ़कर 18 % हो गई. नवंबर 2020 तक के आंकड़े कहते हैं कि 12 महीने में घरेलू हिंसा 60% बढ़ी.
वापस कालीदास वाले उदाहरण पर. क्या बड़ी फैक्ट्रियों, 'बड़े लोगों' के यहां कामगार, उनका कारोबार चलाने वाले ठीक नहीं रहे तो वो खुद ठीक रहेंगे. क्या एक दूसरे से कारोबार के जरिए जुड़े देशों में से एक कोरोना संक्रमित रहा तो दूसरे का काम धंधा ठीक चलेगा?
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