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वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई
कैमरा: आकांक्षा कुमार
होजरी के थोक व्यापारी इम्तियाज ने उस दिन अपने परिवार के साथ दोपहर का खाना खत्म ही किया था, जब दिल्ली पुलिस ने उनके घर पर धावा बोल दिया था. दिन था 25 अक्टूबर 2014.
दिल्ली के त्रिलोकपुरी में, जहां 1997 से इम्तियाज अपने परिवार के साथ रह रहा है, दो दिन पहले ही हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच सांप्रदायिक हिंसा हुई थी. स्थानीय मस्जिद के करीब बनाई गई 'माता की चौकी' को लेकर हिंदू और मुस्लिम के बीच हुए विवाद ने सांप्रदायिक दंगे का रूप ले लिया.
दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले, द क्विंट ने त्रिलोकपुरी निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया और उन लोगों से मिला, जो 2014 के दंगों के मामले में आरोपों का सामना कर रहे हैं. शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और बीजेपी नेताओं द्वारा 'गोरी मारो' जैसे बयानों की वजह से यहां के लोग असहज हैं.
इम्तियाज और उनके छोटे भाई सरफराज दोनों को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था और एफआईआर में उनका नाम 34 अन्य लोगों में शामिल किया था. उन पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत दंगा करने का आरोप लगाया गया है.
पांच साल बाद भी इम्तियाज को कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ रहा है. मामले की अगली सुनवाई 30 मार्च 2020 को होनी है.
2014 की सांप्रदायिक हिंसा में इम्तियाज इकलौता नहीं है, जिसका दावा है कि उन्हें पुलिस ने उनके घर से खींचकर पीटा और जेल में डाल दिया था.
इम्तियाज के घर से कुछ कदम दूर ब्लॉक 17 में रहने वाले एक आईटी प्रोफेशनल कासिम का कहना है कि वो उस दिन घर पर छुट्टी पर था. उसे भी कथित रूप से घर से घसीट कर 19 दिनों तक जेल में बंद रखा गया. कासिम की मां दिलबहार अपने बेटे की बेगुनाह बताती हैं.
कासिम गृह मंत्रालय में एक टेक्निकल सपोर्ट टीम का हिस्सा थे, जिन्हें कॉन्ट्रैक्ट पर रखा गया था. वहां उन्हें 14,000 रुपये मासिक वेतन मिलता था. गिरफ्तारी के तुरंत बाद उनकी नौकरी चली गई. वह छह महीने के लिए बेरोजगार रहे. इसके बाद उन्होंने कम वेतन पर काम करने का फैसला लेते हुए 10,000 रुपये महीने की सैलरी पर एक कंपनी में नौकरी करनी शुरू की.
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