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कैमरा: सुमित बडोला
वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा
अच्छे बीते 5 साल, लगे रहो केजरीवाल, के नारे पर चुनाव लड़ी आम आदमी पार्टी अब क्या नारा लगाएगी? शायद ये कि- दिल्ली मॉडल लाएंगे, देश में फैलाएंगे.
बिल्कुल.. दिल्ली के दंगल में अरविंद केजरीवाल की बंपर जीत के बाद अब सियासी गलियारों में कथा जोर गरम है कि क्या केजरीवाल नेशनल लेवल पर बीजेपी की वैकल्पिक आवाज बनने की तरफ बढ़ेंगे?
केजरीवाल- बीजेपी की वैकल्पिक आवाज?
ये एक जाहिर सवाल भी है और एक अति महत्वाकांक्षी सवाल भी. जाहिर सवाल यूं कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही विपक्ष एक ऐसे नेता की तलाश में है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बरक्स एक वैकल्पिक आवाज बन सके.
इस पैमाने पर परखते हुए जो नाम सामने आते हैं उनमें एक है अरविंद केजरीवाल और दिल्ली में जीत की हैट्रिक ने शायद उन्हें इस लिस्ट मे सबसे आगे खड़ा कर दिया है.
साथ ही ये सवाल अति महत्वाकांक्षी भी लगता है क्योंकि
तो फिर क्यों अरविंद केजरीवाल में लोग उस नेता को तलाश रहे हैं जो पीएम मोदी से आंख मिला सकता है?
साल 2014 में पीएम मोदी ने ‘मिनिमम गवर्नमेंट, मेक्सिमम गवर्नेंस’ का फॉर्मूला दिया था जो साल-दर-साल अपना असर खोता गया.
लेकिन दिल्ली में मुफ्त बिजली- पानी, कम खर्चीली लेकिन बेहतर शिक्षा और मोहल्ला क्लीनिक वो बुनियादी सुविधाएं थीं जिनके जरिये आम इंसान ने 'डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर' सिर्फ सुना नहीं उसे मिला भी. अपने प्रचार में केजरीवाल इस एजेंडे को बेहतरीन तरीके से वोटर तक पहुंचाने में कामयाब रहे.
दिल्ली में शाहीन बाग को लेकर मिलाजुला रवैया और जनसभाओं तक में हनुमान चालीसा के पाठ ने केजरावील को सेंट्रिस्ट पॉलिटिक्स के बड़े खिलाड़ी के तौर पर उभारा. दरअसल बीजेपी के ‘राष्ट्रवाद’ के सामने केजरीवाल ने ‘उदारवादी राष्ट्रवाद’ का वो नुस्खा निकाला जिसमें हिंदुओं के तो लाडले रहो ही, अल्पसंख्यकों को भी नाराज ना करो.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हों या बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती, टीडीपी अधयक्ष चंद्रबाबू नायडू या डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन. इन सब की पहचान का दायरा अपने-अपने राज्य तक सिमटा है. लेकिन केजरीवाल दिल्ली के बाहर पंजाब में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं. वो गुजरात और यूपी जैसे राज्यों में भी चुनाव लड़ चुके हैं. एक फायदा ये कि दिल्ली भले ही आधा-अधूरा राज्य हो लेकिन राजधानी होने के नाते दिल्ली की धमक देश भर में है.
पॉलिटिकल पंडित कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियों में किसी के पास गंजे को कंघा बेचने की कला है तो वो है बीजेपी. लेकिन केजरीवाल कला के इस कैनवस पर भी अपनी झाड़ू चलाते नजर आते हैं. दिल्ली के पूरे प्रचार में वो बीजेपी के हर दांव को चालाकी से झेलते नजर आए.
तो इंतजार कीजिए.. दिल्ली के नतीजों के साथ चुनाव भले ही खत्म हुए हों लेकिन खेल शुरु हुआ है. वो खेल, जो आने वाले सालों में मुद्दों से लेकर शख्सियत तक इस देश की राजनीति के नए नियम तय कर सकता है.
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