NRC: असम के एक डिटेंशन कैंप की डायरी

सीएबी, एनआरसी और डिटेंशन कैंप सभी आपस में जुड़े हुए हैं

त्रिदीप के मंडल & अंजना दत्ता
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सीएबी, एनआरसी और डिटेंशन कैंप सभी आपस में जुड़े हुए हैं
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सीएबी, एनआरसी और डिटेंशन कैंप सभी आपस में जुड़े हुए हैं
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB), नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) और डिटेंशन कैंप - अभी देश में इन तीनों को लेकर बहस तेज है.

सीएबी, एनआरसी और डिटेंशन कैंप सभी आपस में जुड़े हुए हैं. NRC और CAB दोनों का ही लक्ष्य भारतीय और अवैध विदेशी नागरिकों के बीच पहचान करना है.

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असम के फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल ने जिन लोगों को विदेशी घोषित किया है या विदेशी होने की आशंका में बॉर्डर पुलिस ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया है, वो असम के छह डिटेंशन कैंप में रखे गए हैं. ये डिटेंशन कैंप डिब्रूगढ़, सिलचर, तेजपुर, जोरहाट, कोकराझार और गोलपारा में बनाए गए हैं.

द क्विंट ने इन लोगों से डॉक्यूमेंट्री ‘एक डिटेंशन कैंप की डायरी’ को लेकर मुलाकात की. इसके लिए हम असम के गोलपारा जिले में पहुंचे.

डिटेंशन कैंप में एक पिता की मौत

“श्वेता कभी-कभी भूल जाती है, सोचती है कि उसके पापा अभी भी जिंदा हैं. जब वो उसके पापा का शव घर ले आए, तो उसने उसे देखने से मना कर दिया. उसने कहा कि हम सिर्फ सोमवार को उनसे मिलते हैं. पापा आज भी वहीं हैं. वो मुझसे प्यार से बात करते थे. उन्होंने कहा था कि वो वापस आएंगे. ये मेरे पापा नहीं हैं.”
<b>कामिनी डे, </b><b>सुब्रत डे की पत्नी</b>

26 जून 2018 को गोलपारा डिटेंशन कैंप में श्वेता के पापा सुब्रत डे की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. बॉर्डर पुलिस ने सुब्रत डे को 26 मई 2018 को गिरफ्तार किया था. उन्हें गोलपारा डिटेंशन कैंप में रखा गया था. 2005 में सुब्रत डे को वोटर आईडी जारी किया गया था, लेकिन आईडी में उनका नाम सुबोध डे लिखा था. जिसकी वजह से उन्हें डी वोटर की कैटेगरी में रखा गया.

“मैंने कैंप में खोई सुनने की शक्ति”

रवि डे ने डिटेंशन कैंप में अपने जीवन के सिर्फ 4 साल ही नहीं गंवाए बल्कि सुनने की शक्ति भी खोई. रवि को सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद रिहा किया गया, जिसमें कहा गया था कि जिसने तीन साल से ज्यादा समय गोलपारा जैसे डिटेंशन कैंप में बिताए हैं उसे रिहा किया जाए.

रवि हमें डिटेंशन कैंप के अंदर के बारे में बताते हैं

“हम सुबह 5:15 बजे सेल से बाहर आते थे. गार्ड हमारी संख्या गिनते थे, फिर हमें चाय और रोटी दी जाती थी. सुबह 10 बजे लंच दिया जाता था, 11:30 बजे हम 15 मिनट के लिए अपने सेल में वापस चले जाते थे. अगले पांच घंटे हम घूमते थे. कुछ खेलते थे, या एक-दूसरे से बातें करते थे. शाम 5 बजे खाना दिया जाता था. 6:30 बजे तक हम फिर से अपने सेल में बंद कर दिए जाते थे. हमने टीवी खरीदने के लिए पैसे जुटाए. शाम में हम बहुत सारे टीवी शो देखते थे.”
<b>रवि डे, </b><b>डिटेंशन कैंप में बिताए 4 साल</b>

खुली हवा में सांस लेने के लिए लंबा इंतजार

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक रिहाई के वक्त किसी व्यक्ति को दो जमानत देनी होगी. उसे ये सुनिश्चित करना होगा कि हर सप्ताह वो पास के पुलिस स्टेशन में ये दिखाने जाए कि वो इलाके में मौजूद है. उसकी दस उंगलियों के बायोमेट्रिक्स भी लिए जाएंगे.

लेकिन कुछ लोगों के लिए रिहाई की ये शर्तें भी काफी कठिन हैं. अज़ुफ़ा बेगम के ससुर आतब अली और उनके भाई हबीबुर रहमान गोलपारा के डिटेंशन कैंप में हैं.

“जेल अधिकारी कह रहे हैं कि सरकारी कर्मचारी से जमानत लेकर आओ, लेकिन हम किसी को नहीं जानते. हमने दो लोगों से जमानत दिलाई, जिनकी यहां संपत्ति है. लेकिन उन्होंने जमानत लेने से इनकार कर दिया.”
<b>अज़ुफ़ा बेगम, </b><b>डिटेंशन कैंप में हैं ससुर</b>

असम के डिटेंशन कैंप में करीब 1,000 लोग हैं. ये संख्या बढ़ भी सकती है. ये बहुत मुश्किल है कि बांग्लादेशी इन्हें अपना मान पाएंगे और ना ही भारत इन्हें अपना मानेगा. असम में सबसे बड़ा डिटेंशन कैंप बन रहा है.

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