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महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी की सरकार ने भीमा कोरेगांव मामले में हुई जांच और बाद में 9 एक्टिविस्ट की गिरफ्तारियों की समीक्षा शुरू कर दी है. एनसीपी प्रमुख शरद पवार पहले ही गिरफ्तारियों की SIT जांच की मांग कर चुके हैं. उधर शिवसेना का कहना है कि भीमा कोरेगांव मामले में पुणे पुलिस ने सबूतों के आधार पर ही कार्रवाई की है. साफ है कि सरकार में ही इस मसले को लेकर मतभेद है.
एनसीपी ने कह चुकी है कि हिंसा के इस मामले में बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिकों को अर्बन नक्सली बताकर उनपर मुकदमा थोप दिया गया. पार्टी का कहना है कि राजद्रोह का आरोप लगाकर इन लोगों को जेल भेजना ठीक नहीं था, लिहाजा सारे मामले वापस लिए जाएं. पवार ने इस बार में सीएम उद्धव ठाकरे को चिट्ठी भी लिखी.
उधर एनसीपी प्रमुख शरद पवार मांग के बाद सरकार भी हरकत में आ गई है. गृहमंत्री अनिल देशमुख और उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने मंत्रालय में पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियो के साथ बैठक कर मामले से जुड़ी कार्रवाई और गिरफ्तारियों पर बात की. हालांकि इस बैठक के बाद सरकार फिलहाल कोई अंतिम फैसले पर नहीं पहुंची है लेकिन कहा जा सकता है कि या तो सरकार इस मामले की जांच फिर करवाएगी. इसके लिए SIT गठित की जा सकती है.
31 दिसंबर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद का आयोजन किया गया था. 250 साल पहले दलितों और मराठाओं के बीच हुए युद्ध में दलितों की जीत का जश्न मनाने के लिए हर साल दलित यहां जमा होते हैं. इस कार्यक्रम में कुछ भड़काऊ भाषण देने का आरोप है.
इसी के अगले दिन हिंसा हुई थी. सरकार का आरोप था कि कार्यक्रम आयोजित करने वालों के माओवादियों से संबंध हैं. इस बिनाह पर पुलिस ने सुधीर धवले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, महेश राउत, सोम सेन,अरुण परेरा समेत 9 लोगो को गिरफ्तार किया था, जिन्हें आज भी जमानत नहीं मिल सकी है.
एनसीपी और कांग्रेस गिरफ्तारियों को गलत बता रही है तो शिवसेना विधायक और पूर्व गृह राज्य मंत्री दीपक केसरकर ने कहा है कि पुणे पुलिस ने कार्रवाई सबूतों के आधार पर की थी. कुल मिलाकर भीमा कोरेगांव मामले पर महाराष्ट्र की सहयोगी पार्टियों के बीच मतभेद साफ नजर आ रहा है.
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