Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019देव्‍यपराधक्षमापनस्‍तोत्रम् : देवी से क्षमा मांगने का स्‍तोत्र

देव्‍यपराधक्षमापनस्‍तोत्रम् : देवी से क्षमा मांगने का स्‍तोत्र

जाने-अनजाने में हुई भूल के लिए देवी से क्षमा मांगने के लिए प्रसिद्ध स्‍तोत्र है ‘देव्‍यपराधक्षमापनस्‍तोत्रम्’

अमरेश सौरभ
वीडियो
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पुत्र तो कुपुत्र हो सकता है, पर माता कभी कुमाता नहीं होती
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पुत्र तो कुपुत्र हो सकता है, पर माता कभी कुमाता नहीं होती
(फोटो: द क्‍व‍िंट)

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जाने-अनजाने में हुई भूल के लिए देवी दुर्गा से क्षमा मांगने के लिए एक बहुत ही प्रसिद्ध स्‍तोत्र है देव्‍यपराधक्षमापनस्‍तोत्रम्. इस सार यही है कि मां ममतामयी होती हैं, वे अपने पुत्रों के सारे अपराध क्षमा कर देती हैं, क्‍योंकि पुत्र तो कुपुत्र हो सकता है, पर माता कभी कुमाता नहीं होती.

वीडियो में जो स्‍तोत्र है, उसके हर श्‍लोक का अर्थ आगे दिया गया है. अनुवाद में गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित स्‍तोत्ररत्‍नावली से सहायता ली गई है.

हे मात:! मैं तुम्‍हारा मंत्र, यंत्र, स्‍तुति, आवाहन, ध्‍यान, स्‍तुतिकथा, मुद्रा और विलाप कुछ भी नहीं जानता. परंतु सब प्रकार के क्‍लेशों को दूर करने वाला आपका अनुसरण करना ही जानता हूं ||1||

सबका उद्धार करने वाली हे करुणामयी माता! तुम्‍हारी पूजा की विधि न जानने के कारण, धन के अभाव में, आलस्‍य से और उन विधियों को अच्‍छी तरह न कर सकने के कारण तुम्‍हारे चरणों की सेवा करने में जो भूल हुई हो, उसे क्षमा करो, क्‍योंकि पूत तो कुपूत हो जाता है, पर माता कुमाता नहीं होती. ||2||

मां! पृथ्‍वी पर तुम्‍हारे सरल पुत्र तो अनक हैं, पर उनमें एक मैं विरला ही बड़ा चंचल हूं. तो भी हे शिवे! मुझे त्‍याग देना तुम्‍हें उचित नहीं, क्‍योंकि पूत तो कुपूत हो जाता है, पर माता कुमाता नहीं होती. ||3||

हे जगदम्‍ब, हे मात:! मैंने तुम्‍हारे चरण की सेवा नहीं की, तुम्‍हारे लिए भरपूर धन भी समर्पण नहीं किया. तो भी मेरे ऊपर यदि तुम ऐसा अनुपम स्‍नेह रखती हो, तो यह सच ही है कि क्‍योंकि पूत तो कुपूत हो जाता है, पर माता कुमाता नहीं होती. ||4||

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हे गणेशजननि! मैंने इतनी आयु बीत जाने पर अनेक विधियों से पूजा करने से घबराकर सभी देवों को छोड़ दिया है. यदि इस समय तुम्‍हारी कृपा न हो, तो मैं निराधार होकर किसकी शरण में जाऊ. ||5||

हे माता अपर्णे! यदि तुम्‍हारे मंत्राक्षरों के कान में पड़ते ही चांडाल भी मिठाई के समान सुमधुर वाणी से युक्‍त बड़ा भारी वक्‍ता बन जाता है और महादरिद्र भी करोड़पति बनकर चिरकाल तक निर्भय विचरता है, तो उसके जप का अनुष्‍ठान करने पर जप से जो फल होता है, उसे कौन जान सकता है. ||6||

जो चिता का भस्‍म रमाए हैं, विष खाते हैं, नंगे रहते हैं, जटा-जूट बांधे हैं, गले में सर्पमाल पहने हैं, हाथ में खप्‍पर लिए हैं, पशुपति और भूतों के स्‍वामी हैं, ऐसे शिवजी ने भी एकमात्र जगदीश्‍वर की पदवी पाई है, वह हे भवानि! तुम्‍हारे साथ विवाह होने का ही फल है. ||7||

हे चंद्रमुखी माता! मुझे मोक्ष की इच्‍छा नहीं है. सांसारिक वैभव की भी लालसा नहीं है. विज्ञान और सुख की भी अभिलाषा नहीं है. इसलिए मैं तुमसे यही मांगता हूं कि मेरी सारी आयु मृडानी, रुद्राणी, शिव-शिव, भवानी आदि नामों के जपते-जपते ही बीते. ||8||

हे श्‍यामे! मैंने अनेक उपचारों से तुम्‍हारी सेवा नहीं की. अनिष्‍टचिंतन में तत्‍पर अपने वचनों से मैंने क्‍या नहीं किया. फिर भी मुझ अनाथ पर यदि तुम कुछ कृपा रखती हो, तो यह तुम्‍हें बहुत ही उचित है, क्‍योंकि तुम मेरी माता हो. ||9||

हे दुर्गे, हे दयासागर महेश्‍वरी! जब मैं किसी विपत्त‍ि में पड़ता हूं, तो तुम्‍हारा ही स्‍मरण करता हूं. इसे तुम मेरी दुष्‍टता मत समझना, क्‍योंकि भूखे-प्‍यासे बालक अपनी मां को ही याद किया करते हैं. ||10||

हे जगज्‍जननी! मुझ पर तुम्‍हारी पूर्ण कृपा है, इसमें आश्‍चर्य ही क्‍या है, क्‍योंकि अनेक अपराधों से युक्‍त पुत्र को भी माता त्‍याग नहीं देती. ||11||

हे महादेवि! मेरे समान कोई पापी नहीं है और तुम्‍हारे समान कोई पाप नाश करने वाली नहीं है, यह जानकार जैसे उचित समझो, वैसा करो. ||12||

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Published: 28 Sep 2017,06:33 AM IST

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