Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019DUSU और उपचुनावों के नतीजों का 2019 की लड़ाई के लिए ये है इशारा

DUSU और उपचुनावों के नतीजों का 2019 की लड़ाई के लिए ये है इशारा

पीएम मोदी के राजनीतिक ब्रांड को स्थापित करने में डीयू का बेमिसाल योगदान रहा है

राघव बहल
वीडियो
Updated:
i
null
null

advertisement

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक ब्रांड को स्थापित करने में दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) का बेमिसाल योगदान रहा है. 2014 की जबरदस्त चुनावी जीत के लिए उनकी रेस 6 फरवरी 2013 को डीयू के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ही शुरू हुई थी.

गुजरात के मुख्यमंत्री अपने इस कार्यक्रम से पहले काफी नर्वस लग रहे थे.फिर भी उन्होंने करीब 75 मिनट तक हिंदी में जोश से भरा हुआ भाषण दिया. उसी दिन एक नए प्रधानमंत्री का जन्म हुआ. डीयू में.

मोदी के लिए क्यों अहम है डीयू

इसके अलावा चार और वजहें भी हैं, जो डीयू को, और वहां जो कुछ होता है उसे, मोदी और बीजेपी के लिए अहम बना देती हैं :

  1. दिल्ली यूनिवर्सिटी में दो लाख छात्र देश भर से आते हैं, जो अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले और अलग-अलग रीति-रिवाजों को मानने वाले होते हैं. ये विश्वविद्यालय उस "युवा भारत" का सबसे सच्चा प्रतिनिधि है, जिसने 2014 में मोदी को जबरदस्त समर्थन दिया था और जो 2019 में भी उन्हें फिर से सत्ता दिला सकता है.
  2. 2006 के आसपास अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का कोटा शुरू होने के बाद से डीयू में हिंदी-भाषी राज्यों के जाट और गुर्जर छात्रों की संख्या काफी बढ़ गई है. ये छात्र उन इलाकों से आते हैं, जहां 2014 में मोदी को सबसे ज्यादा वोट मिले थे और करीब 90% फीसदी सीटें हासिल हुई थीं. मोदी के लिए अपना ये आधार बरकरार रखना बेहद जरूरी है.
  3. डीयू में बीजेपी और कांग्रेस को मिले वोट, एनडीए और यूपीए को राष्ट्रीय स्तर पर मिले वोट शेयर से बिलकुल मिलते-जुलते हैं. इसकी आसान सी वजह ये है कि डीयू में क्षेत्रीय पार्टियां सीधे मुकाबले में नहीं होतीं. मिसाल के तौर पर, इस बात के काफी आसार रहते हैं कि बिहार का आरजेडी समर्थक डीयू में कांग्रेस के छात्र संगठन को वोट देगा, जबकि तेलंगाना का टीआरएस समर्थक यहां बीजेपी के छात्र संगठन के पक्ष में मतदान करेगा.
  4. आखिरी वजह ये कि जब राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का वोट शेयर दोहरे अंक तक भी नहीं पहुंच पाता था (1971 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को महज 7.35% वोट मिले थे), तब भी डीयू में उसके छात्र संगठन की जीत होती थी (अरुण जेटली 1974 में दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ यानी DUSU के अध्यक्ष चुने गए थे!). जाहिर है, डीयू बीजेपी का सबसे पुराना और मजबूत राजनीतिक गढ़ है. इसलिए देश में अगर बीजेपी या मोदी की लहर होगी, तो वो डीयू में जरूर पूरी ताकत के साथ नजर आएगी.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

DUSU के चुनावी आंकड़ों की अहम बातें:

  • 2013 की मोदी लहर के बाद से बीजेपी (या एबीवीपी) का प्रभाव जरा भी आगे नहीं बढ़ा है. 2014 से 2018 के दरम्यान उसका वोट शेयर किसी चट्टान की तरह 35 फीसद पर कायम है (ठहर गया है?). हालांकि 2017 में ये गिरकर 27 प्रतिशत पर जरूर आ गया था.
  • कांग्रेस (या एनएसयूआई) ने साढ़े पांच प्रतिशत की अच्छी-खासी बढ़त हासिल कर ली है. 2013 में उसका वोटर शेयर 27 फीसद से कम था, जो 2018 में बढ़कर 32 प्रतिशत हो चुका है.
  • आम आदमी पार्टी (AAP) और लेफ्ट के गठजोड़ ने करीब 14 फीसद वोट हासिल किए. अगर यहां प्रमुख विपक्षी दलों का महागठबंधन बना होता (जैसी 2019 के लिए योजना बनाई जा रही है), तो बीजेपी विरोधी वोट बढ़कर 46 प्रतिशत हो जाता (क्योंकि AAP और लेफ्ट के मतदाता तो बीजेपी को किसी अभिशाप से कम नहीं मानते).

बेहद अहम, ठोस और ऐतिहासिक प्रमाण !


दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के चुनावी आंकड़ों और उप-चुनाव में हुए मतदान के असली आंकड़े लगभग पूरी तरह एक जैसे हैं.

  • बीजेपी (या एनडीए) को DUSU में 35 फीसद वोट मिले. गुजरात चुनाव के बाद से हुए उपचुनावों में भी उन्हें कुल मतदान के 36 फीसदी के बराबर वोट मिले थे.
  • कांग्रेस (या यूपीए) को DUSU में 32 फीसद वोट मिले, उपचुनाव में भी 32 फीसदी वोट ही मिले थे.
  • DUSU में बीजेपी विरोधी विपक्षी पार्टियों (AAP+लेफ्ट) को 14 फीसद वोट मिले, जबकि उप-चुनावों में उन्हें (बीएसपी, एसपी और अन्य को मिलाकर) 13.3 फीसद वोट ही मिले थे.

इन आंकड़ों को देखने के बाद हम काफी भरोसे के साथ कह सकते हैं कि देश भर में एनडीए के वोट 36 फीसद, यूपीए के वोट 32 फीसद, बीजेपी-विरोधी क्षेत्रीय दलों के वोट 14 फीसद और अन्य वोट 18 फीसदी के आसपास स्थिर हो रहे हैं.

"मोदी के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन" का क्या ?

लेकिन रुकिए....ऐसा विश्लेषण करने पर मोदी-समर्थक विशेषज्ञ मुझे हमेशा याद दिलाते हैं कि मैं एक महत्वपूर्ण (या अप्रत्याशित) पहलू की अनदेखी कर रहा हूं, और वो हैं खुद मोदी. उनकी दलील होती है (जिससे इनकार भी नहीं किया जा सकता) कि ये तमाम आंकड़े तब के हैं, जब मोदी खुद उम्मीदवार नहीं थे. वो जोर देकर कहते हैं, और ये बात तर्कसंगत भी है, कि मोदी में वो चुंबकीय आकर्षण है, जिसके चलते लोग सिर्फ उन्हें वोट देने के लिए घर से निकलते हैं. इसमें बीजेपी, आरएसएस या किसी और फैक्टर का कोई हाथ नहीं होता.

मैं ये दलील मानने को तैयार हूं. ये "मोदी इफेक्ट" है. यानी अगर मोदी खुद चुनाव मैदान में हैं, तो कई लोग उन्हें ही वोट देंगे, भले ही दूसरे चुनावों में वो गैर-बीजेपी पार्टियों को वोट दे चुके हों.

तो क्या कोई ऐसा उपाय है, जिससे हम इस "मोदी इफेक्ट" को नाप सकें? हां, इसका उपाय है:

मोदी से पहले बीजेपी को सबसे ज्यादा 25.59 फीसद वोट 1998 के आम चुनाव में मिले थे. तो चलिए इसे "कोर बीजेपी वोट" मान लेते हैं. अब मोदी के समर्थन में उदारता के साथ अनुमान लगाने के लिए (हां ट्रोल्स, हम ऐसा भी करते हैं!) ये भी मान लेते हैं कि इस "कोर बीजेपी वोट" में मोदी के आने तक कोई बढ़ोतरी नहीं हुई थी. 2014 में मोदी के आने के बाद बीजेपी को राष्ट्रीय स्तर पर 31.34 फीसद वोट मिले थे. इसलिए हम कह सकते हैं कि मोदी ने सिर्फ अपने दम पर बीजेपी के वोट में 5.75 percentage points इजाफा किया.

चलिए अब मोदी के समर्थन में एक और उदारता भरा अनुमान लगाते हैं (हां ट्रोल्स, हम ऐसा दोबारा भी कर सकते हैं !) हम ये भी मान लेते हैं कि मोदी के असर वाले वोट अब भी 5.75 प्रतिशत हैं, हालांकि मोदी की अप्रूवल रेटिंग 2014 के 75 प्रतिशत से गिरकर 2018 में करीब 50-55 प्रतिशत रह गई है. आंकड़ों का विज्ञान कहता है कि हमें मोदी के प्रभाव वाले वोटों के प्रतिशत में करीब 4 फीसद की कटौती कर देनी चाहिए, लेकिन ट्रोल्स की भावनाओं का ख्याल रखते हुए हम इसे 5.75 प्रतिशत ही बनाए रखते हैं.

इन आंकड़ों के आधार पर हमारा अंतिम विश्लेषण कुछ ऐसा होगा :

  • "मोदी का सर्वश्रेष्ठ संभावित प्रदर्शन" एनडीए को 41.75 फीसद वोट दिला सकता है. (एनडीए को अभी मिले 36% वोट + सिर्फ मोदी को मिलने वाले 5.75% वोट)
  • "विपक्ष अपना सर्वश्रेष्ठ संभावित प्रदर्शन" दिखाए तो 45-46 प्रतिशत वोट पा सकता है (UPA+BSP+SP+TDP+AUDF वगैरह को मिलाकर), जिसकी पुष्टि कई चुनावों में हो चुकी है.

तो इन हालात में जीत किसकी होगी ? जरा पता तो लगाइए.

Also Read: ‘2+2’ यानी 4 सबक, जिन्हें याद रखना अमेरिका और भारत के लिए है जरूरी

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 20 Sep 2018,06:54 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT