Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019सरकार बिजनेस से बाहर निकले, बिजनेसमैन पर ट्रस्ट करे: अनिल अग्रवाल

सरकार बिजनेस से बाहर निकले, बिजनेसमैन पर ट्रस्ट करे: अनिल अग्रवाल

पब्लिक सेक्टर को दीजिए आजादी, बदल जाएगी तस्वीर: अनिल अग्रवाल

संजय पुगलिया
वीडियो
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(फोटो: क्विंट हिंदी)
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(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी

कैमरा: सुमित बडोला और अभिषेक रंजन

आजकल हर चर्चा में दो मुद्दों पर जरूर बात होती है. कहा जाता है कि भारत के पास मौके बहुत हैं. लेकिन इकनॉमी में स्लोडाउन की भी बात होती है. भारत में इकनॉमी कैसी है? आगे इसकी क्या दशा होगी, यह जानने के लिए हमने एक ऐसी कंपनी से बात करने की सोची जो खुद आर्थिक तौर पर सेहतमंद हो. इस मुद्दे पर क्विंट हिंदी, क्विंट इंग्लिश और ब्लूमबर्गक्विंट के लिए हमने वेदांता रिसोर्सेज के फाउंडर चेयरमैन अनिल अग्रवाल से बात की. पेश है चुनिंदा अंश

सबसे पहले तो अपने ग्रुप का हेल्थ स्टेटस दे दीजिए? आपके बिजनेस ग्रुप के प्रॉफिट, रेवेन्यू, टैक्स, डेट और कैश की क्या स्थिति है?

इस साल हम 16 बिलियन डॉलर का टर्नओवर हासिल करने जा रहे हैं. हमारा मुनाफा कम से कम साढ़े पांच बिलियन डॉलर का होगा. हमारे ऊपर सवा 11 बिलियन डॉलर का कर्ज है. दो साल में हम 25 से 30 बिलियन डॉलर का रेवेन्यू हासिल कर लेंगे. हमारा कर्ज भी घटेगा. इससे ज्यादा तो नहीं बढ़ेगा.

आपकी बैलेंसशीट ऐसी है कि आप दुनिया और भारत में और ज्यादा निवेश करना चाहेंगे? क्या भारत आपका फोकस होने जा रहा है.

भारत हमेशा हमारा फोकस है. हम भारतीय कंपनी हैं. बड़ी-बड़ी कंपनियां भले ही अपने देश में दस फीसदी कारोबार करती हों, लेकिन खुद को मूल देश का ही बताती हैं. हमें भारतीय होने पर गर्व है. अपनी कंपनी को भारतीय कहने में गर्व है.

इंडिया की इकनॉमी का हेल्थ चेक भी दे दीजिए?

भारत बहुत बड़ा देश है. यह एक देश नहीं बल्कि महादेश है. भारतीय उप महाद्वीप में दो अरब के लोग रहते हैं. इस देश में बड़ा ह्यूमन रिसोर्स हैं. बड़ी प्रतिभा है. इस देश पर देव कृपा है. इकोनॉमिक स्लोडाउन आता है. फिर ठीक हो जाता है. ऊपर-नीचे होता रहता है. टेक्नोलॉजी की दुनिया में भारतीय काफी आगे हैं. दुनिया भर की टेक्नोलॉजी कंपनियों को भारतीय संभाल रहे हैं. भारत में टेक्नोलॉजी रिसोर्स है. यहां मजबूत और सकारात्मक नेतृत्व है.भारत काफी आगे जाएगा.

हमारी जो जरूरतें हैं उसके लिए आठ-दस फीसदी ग्रोथ जरूरी है. सरकार कैसे यह हासिल करेगी?

सारी दुनिया चाहती है कि भारत डंपिंग ग्राउंड बन जाए. हम तेल, गोल्ड, कोल और कॉपर आयात करते हैं. हम 85 फीसदी तेल आयात करते हैं. सौ फीसदी सोने का आयात करते हैं. काफी कोयला आयात करते हैं. आज 400 बिलियन डॉलर का आयात है. यह बढ़ कर 1 ट्रिलियन डॉलर का भी हो सकता है. हमें अपने देश में बड़े पैमाने पर माइनिंग की जरूरत है. हमें ज्यादा नेचुरल रिसोर्सेज की जरूरत है.

आयात पर हमारी निर्भरता काफी ज्यादा है? इसमें बदलाव लाने के लिए हमें बहुत तेजी से रुख बदलना होगा? आपका क्या कहना है?

दरअसल हमें नेचुरल रिसोर्सेज की खोज करने वालों की मदद करनी होगी. उन्हें सम्मान देना होगा. उन्हें बढ़ावा देना होगा. हम उनसे नेचुरल रिसोर्स लेकर उसकी नीलामी शुरू कर देते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. हमें खनन के क्षेत्र में रेवेन्यू शेयर करने का एक फॉर्मूला तय करना होगा. हमें इसकी खोज करने वालों को 25 फीसदी शेयर देना होगा. फॉरेस्ट क्वलियरेंस में तेजी लानी होगी. आज सेल्फ सर्टिफिकेशन की जरूरत है. सारी दुनिया में ऐसा होता है. आज माइनिंग के लिए फॉरेस्ट क्लियरेंस लेने में ही दो साल लग जाते हैं. लेकिन इसमें 60 दिनों से ज्यादा वक्त नहीं लगना चाहिए. इस व्यवस्था को लागू करना होगा. आप सेल्फ सर्टिफिकेशन का नियम शुरू कीजिए. जल्द क्लियरेंस दें. हां अगर कोई कोई गड़बड़ी करता है तो फिर भारी जुर्माना भी लगाएं.

फिलहाल माहौल ऐसा लग रहा है मानो सरकार को बिजनेसमैन पर भरोसा नहीं है?

सरकार को विश्वास करना ही पड़ेगा. इसके अलावा कोई चारा नहीं है. सोशलिस्ट देशों में सरकार बिजनेस चलाती है. लेकिन लोकतांत्रिक देशों में उद्योगपति, बिजनेसमैन बिजनेस चलाते हैं. सरकार का काम इंडस्ट्री चलाना नहीं है. रेगुलेटर का यह काम है कि वह यह देखे कि बिजनेस का माहौल ठीक है या नहीं. ,सरकार सिर्फ रेगुलेटर की तरह काम करे. जहां लोकतांत्रिक सरकारें हैं वहां सरकार सिर्फ रेवेन्यू लेती है.बिजनेस उद्योगपतियों और बिजनेसमैन  पर छोड़ती है. ऐसे देशों में सरकार बिजनेस चलाने की चिंता छोड़ कर इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने पर जोर देती है. सरकार को यही मॉडल अपनाना होगा. खिचड़ी व्यवस्था चलेगी नहीं.

बाहर में नेचुरल रिसोर्सेज कंपनियां कैसे काम करती हैं?

दूसरे देशों में नेचुरल रिसोर्सेज कंपनियों को 20 से 25 फीसदी रेवेन्यू शेयर मिलता है. लेकिन हमारे यहां इस पर बात ही नहीं होती. यहां सरकार रिसोर्सेज की नीलामी शुरू कर देती है. यहां प्रोडक्शन बढ़ाने की जरूरत है. हमारे पीएम कहते हैं प्रोडक्शन बढ़ाओ. मिनिस्टर कहते हैं प्रोडक्शन बढ़ाएं. हमारे यहां बड़ी माइनिंग करनी होगी. 100 मिलियन टन की कोयला खदानें हों. बड़े पैमाने पर गोल्ड माइनिंग हो. ऐसा बड़ा प्लान लाएं कि चार-चार बॉम्बे हाई बन सकें. ऐसी क्षमता पैदा करें. हमारे यहां काफी नेचुरल रिसोर्सेज है. साथ ही टेक्नॉलोजी में इधर काफी तरक्की हुई है. हम अपने लोगों से कहते हैं कि सबसे ज्यादा प्राथमिकता पर्यावरण को देना है. अब टेक्नोलॉजी की इतनी ज्यादा तरक्की हो गई है कि खनन और पर्यावरण के बीच संतुलन बिठा कर काम हो सकता है.

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यह बात तो सबको मालूम है कि नेचुरल रिसोर्सेज में मजबूती से भारत तरक्की करेगा. लेकिन यह बात पब्लिक डिस्कोर्स में नहीं दिखती?

थोड़ा विषयांतर करता हूं. हिन्दुस्तान की रीढ़ है पब्लिक सेक्टर और पब्लिक सेक्टर के बैंक. दुनिया की अस्सी फीसदी इकोनॉमी कॉरपोरेटाइज्ड है. हमारे यहां तो पब्लिक बैंक और पब्लिक सेक्टर बैंक इकनॉमी में अहम रोल अदा करते हैं. तो मेरा यह कहना है कि इकनॉमी का कॉरपोरेटाइजेशन होना चाहिए. पब्लिक सेक्टर की कंपनियों का शेयर जनता के हाथ में होना चाहिए. जैसे- हमारे पब्लिक सेक्टर बैंक काफी सक्षम है. लेकिन उनकी सबसे बड़ी दिक्कत है उन्हें काम करने की स्वतंत्रता नहीं है.

आप जिस दिन इन बैंकों के 50 फीसदी आम शेयरधारकों को दे देंगे. वे इन बैंकों को बिल्कुल दुरुस्त रखेंगे. अगर पब्लिक सेक्टर को स्वंत्रतता देंगे तो हमारी पब्लिक सेक्टर कंपनियां कमाल कर सकती हैं. स्वतंत्रता देने पर पब्लिक सेक्टर बैंक के शेयर दस गुना तक बढ़ सकते हैं. कंपनियों का प्रोडक्शन तीन गुना बढ़ सकती है. दरअसल हमें पब्लिक सेक्टर को स्वतंत्रता देनी ही होगी. सरकार को यह समझ में आ गया है. हम तो ट्रेड यूनियन वालों से भी कहते हैं कि वे भी समझें. वे बाहर से कोयला आयात का विरोध कर रहे हैं. यह तो अपने पेट पर लात मारने जैसा है. हम कहते हैं कि नौकरी के सवाल पर हम उनके साथ हैं. काम आएगा तो काम भी मिलेगा.

पब्लिक सेक्टर को स्वतंत्रता कब मिलेगी?

देखिये, सरकार को यह बात समझ आ गई है. सरकार कहती है मिनिमन गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस. आज हर कोई काम करने को तत्पर है. ब्यूरोक्रेसी में उत्साह है. पहले ऐसा नहीं था.

सरकार और बिजनेस मैन के बीच विश्वास की कमी क्यों है?

पूरी दुनिया में विश्वास पर काम होता है. हिन्दुस्तान में कुछ लोगों ने पैसा डाइवर्ट किया है. इकनॉमी विश्वास पर काम करती है. विश्वसनीयता बड़ी चीज है. जहां तक घोटालों के बाद एसेट बनाने का सवाल है तो असल बात है अभी तो यहां एसेट बना ही नहीं हैं. यहां बहुत बड़ा ऐसेट अभी बननना है. सरकार को बिजनेसमैन पर विश्वास करना ही होगा. सरकार को बिजनेस से बाहर निकलना होगा. हमारे पीएम कहते हैं कि बिजनेस करना सरकार का काम नहीं है. वह बिल्कुल ठीक कहते हैं.

आप कह रहे हैं बैंकिंग को पूरी तरह से सरकार से आजाद कर देना चाहिए?

देखिए दुनिया में पचास फीसदी पूंजी ऐसी ही पड़ी हुई है. यह सारी पूरी पूंजी भारत आने के लिए तैयार है. हमें सिर्फ ब्रिज बनाने हैं. हमारे पास टैलेंट और टेक्नोलॉजी दोनों है. कॉरपोरेट खड़े करें. बैंक मजबूत करें. चीन की तरह बैंक मजबूत करें. आपके पास पूंजी आएगी.  हमारे यहां पब्लिक सेक्टर बैंकिंग में काफी टैलेंट है. अगर फैसले देने की आजादी देंगे तो वे कमाल कर दिखाएंगे.

सरकार की कौन सी बात आपको संकेत दे रही है सरकार बहुत तेजी से काम करेगी? या मूव करेगी लेकिन स्पीड कम होगी?

सरकार को समझ में आ रहा है कि रेवेन्यू 80 फीसदी रखने या ऑक्शन का काम  बंद करना होगा. सरकार को समझ आ रहा है कि फॉरेस्ट क्लीयरेंस जल्दी करना होगा. दो-दो साल पर्यावरण क्लीयरेंस में नहीं लगने चाहिए. 60 दिन में यह करना होगा. पीएम बार-बार कह रहे हैं कि हम कारोबारियों पर ट्रस्ट करेंगे.

आप कहते हैं कि न्यायपालिका बिजनेस की दोस्त है? हरीश साल्वे कहते हैं कि हमारे स्लोडाउन के लिए बहुत हद तक ज्यूडीशियरी जिम्मेदार है?

ज्यूडीशियरी के लोग भी चाहते हैं कि देश आगे बढ़े. दरअसल ज्यूडीशियरी को बाहर निकल कर देखना चाहिए कैसे काम होता है. हम ट्रस्ट बना कर मदद कर सकते हैं. हम चाहते हैं कि पूरी ज्यूडीशियरी सिस्टम डिजिटल हो जाए. फैसलों में देर न हो. किसी मामले में फैसला होने में सात दिन से ज्यादा न लगे. ऐसा लॉ बने कि डेट पर डेट आउडेटेट हो जाए.

आपने कहा था कि आप 8 बिलियन डॉलर का निवेश करना चाहते हैं. आप गोल्ड और सिल्वर की माइनिंग में भी काफी महत्वाकांक्षी हैं?

हमें लगता है कि देश में सोना और चांदी का भंडार हैं. हमें सिर्फ क्लियरेंस के मोर्चे पर निश्चितिता चाहिए. सारे क्लियरेंस सेल्फ सर्टिफिकेशन पर होने चाहिए. दरअसल देश में तेल निकालने की बहुत जरूरत है. कोई भी देश अगर अपनी जरूरत का पचास फीसदी तेल नहीं पैदा करता है तो उसका आगे बढ़ना मुश्किल है. हम चांदी के खनन में आगे बढ़े. और हमने इस पर काम किया. आज हिन्दुस्तान में हम 800 टन सिल्वर बनाते हैं हम इसे 1400 टन तक ले जाना चाहते हैं. जिस दिन यह लक्ष्य हासिल करेंगे हम दुनिया के सबसे बड़े सिल्वर प्रोड्यूसर हो जाएंगे. सिल्वर ऐसा प्रोडक्ट है, जिसका बाजार बढ़ता ही जाता है. हमें उम्मीद है कि हमारी कंपनी के शेयरों की कीमत बढ़ेगी.

हाइड्रोकार्बन, कोल और स्टील में विदेशी प्लेयर की जरूरत है?

भारत के एंटरप्रेन्योर में काफी क्षमता है. जो बाहर से आएंगे वे देश के बारे में हमारे जैसा नहीं हो सोच सकते. जब-जब सरकार ने भारतीय उद्योगपतियों पर विश्वास किया है, उन्होंने बहुत बढ़िया काम करके दिखाया है. भारतीय उद्योगपतियों पर विश्वास करेंगे तो वो वर्ल्ड क्लास टेक्नोलॉजी लेकर आएंगे. और यहां बेहतरीन उद्योगों को खड़ा करेंगे. बड़े पैमाने पर इन उद्योगों पर अपनी छाप छोड़ेंगे.

सरकार ने आपको एप्रोच किया. कुछ कंपनियों में विनिवेश के लिए आपका साथ चाहा. आपको किस तरह की कंपनियों में दिलचस्पी है?

सरकार को हम पर विश्वास है. सरकार ने हमें एप्रोच किया है एयर इंडिया आपको देना चाहते हैं. हिन्दुस्तान हमारा देश है. हम लालच में कोई काम नहीं करना चाहते. किसी भी कंपनी विनिवेश के लिए हमको ऑफर किया जाता है तो हम प्रस्ताव पर गौर जरूर करेंगे. इसमें क्षमता की परख करेंगे उसके बाद आगे बढ़ेंगे. हम इसका वैल्यूएशन डबल करने का लक्ष्य लेकर चलेंगे. हम छोटे लक्ष्य लेकर नहीं चलेंगे.

समाज को वापस देने के सवाल पर क्या कहेंगे?

हम चाहते हैं कि अपनी संपत्ति का 75 फीसदी वापस समाज को दे दें. हम चाहते हैं कि हिन्दुस्तान के सात करोड़ बच्चों को पूरा पोषण मिले. शिक्षा मिले. डिजिटल शिक्षा दें. फिलहाल हमारे 1000 नंदघर हैं. हम डेढ़ लाख नंदघर बनाना चाहते हैं. 3 करोड़ महिलाओं को स्वतंत्र बनाना चाहते हैं. नंद घर में युवाओं को टेक्नोलॉजी ट्रेनिंग देना चाहते हैं.

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Published: 15 Oct 2019,09:09 PM IST

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