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प्रोड्यूसर: त्रिदीप के मंडल
कैमरापर्सन: सैयद शहरयार
वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया
5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को संविधान से मिला विशेष राज्य का दर्जा खत्म किया गया था. आर्टिकल 370 और 35A को निरस्त कर दिया गया. एक साल बाद देखने की कोशिश करते हैं कि वहां के लोगों की जिंदगी में इसका क्या असर हुआ और उनके लिए क्या कुछ बदला.
हाउस बोट चलाने वाले आरिफ उस वक्त को याद करते हुए बताते हैं कि हमें लगा की आतंकी खतरा है, लेकिन सरकार तो कुछ और ही सोच रही थी.
गृह मंत्रालय के डेटा के मुताबिक उस वक्त करीब 144 नाबालिक समेत 6,605 लोगों को हिरासत में लिया गया. द फोरम ऑफ ह्युमन राइट्स इन जम्मू-कश्मीर के मुताबिक अभी भी 400 लोग कस्टडी में हैं.
स्कूली छात्र मुर्सलीन अब्बास मीर बताते हैं कि हमारा स्कूल में ग्रुप था. कुछ दोस्त थे, हम लोग चर्चा करने लगे कि क्या होगा अगर स्कूल बंद हो गए. हम कैसे मिल पाएंगे. वो स्कूल में हमारा आखिरी साल था. उसके बाद हम 9 महीने घर में ही रहें.
हर सुबह मुनीर आलम श्रीनगर के ईदगाह ग्राउंड पर अपनी ओपन स्कूल का सेटअप लगाते हैं. उनके हिसाब से पढ़ाई के नुकसान की भरपाई के लिए यही एक रास्ता है.
कम्युनिकेशन और इंटरनेट ब्लैकआउट की वजह से जम्मू-कश्मीर में ऑनलाइन पढ़ाई भी संभव नहीं है. द फोरम ऑफ ह्युमन राइट्स इन जम्मू-कश्मीर के मुताबिक आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में लॉकडाउन से करीब 40,000 करोड़ का नुकसान हुआ है.
2020 के वसंत में लोकल फोटो जर्नलिस्ट मसरत जहरा को UAPA के तहत हिरासत में लिया गया. गौहर गिलानी पर भी UAPA लगा था.
2 जून 2020 को जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और मीडिया के अन्य माध्यमों पर 'फेक न्यूज, साहित्यिक चोरी और अनैतिक या ‘देश विरोधी कंटेंट' की देखरेख के लिए नई मीडिया पॉलिसी प्रकाशित की.
गायक-लेखक नर्गिस खातुन का कहना है कि 5 अगस्त 2019 के बाद से हम बहुत पिछड़ गए हैं. 4-5 महीने से COVID-19 चल रहा है, जिससे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है. लेकिन कश्मीर पूरी दुनिया से 4- 5 महीने पीछे चल रहा है. हमारे लिए दुनिया नहीं रुकने वाली है. हम पहले ही बहुत पीछे हैं और अब हम जहां पहले थे उससे भी काफी पीछे चले गए हैं.
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