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दलित आंदोलनों को कामयाब बनाते हैं अंबेडकर के सोशल मीडिया कमांडो

अंबेडकर जयंती पर मिलिए कुछ ऐसे ‘सोशल मीडिया कमांडो’ से, जो अंबेडकरवादी आंदोलनों को एक नए मुकाम पर पहुंचा रहे हैं

अभय कुमार सिंह
फीचर
Updated:
डॉ अंबेडकर के सोशल मीडिया वॉरियर से मिलिए, जिन्होंने आंदोलनों को नए मुकाम पर पहुंचाया है
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डॉ अंबेडकर के सोशल मीडिया वॉरियर से मिलिए, जिन्होंने आंदोलनों को नए मुकाम पर पहुंचाया है
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज और संदीप सुमन

2 अप्रैल का दलित संगठनों का 'भारत बंद' हो या भीमा कोरेगांव का मुद्दा, सोशल मीडिया के जरिए ही बड़े पैमाने पर कैंपेन चलाए गए और इसे मुकाम तक पहुंचाया गया. इसे किसी एक जगह से 'एसी वाले ऑफिस' में बैठकर नहीं चलाया जाता, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों के लाखों अंबेडकरवादी विचारधारा के लोग इन आंदोलनों को धार दे रहे हैं. फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चल रहे इन कैंपेन को मजबूती देने वालों को आप तीन हिस्सों में बांट सकते हैं

  1. सोशल मीडिया में समुदाय से जुड़ा कौन सा मुद्दा अहमियत रखता है, ये तय करने वाले
  2. मुद्दे को आसान भाषा में समझाने वाले, वीडियो और दूसरे क्रिएटिव तरीके से बात रखने वाले
  3. सोशल मीडिया पर इसे फैलाने वाले, मुद्दे को लेकर सड़क पर उतरने वाले

सोशल मीडिया पर आंदोलन को मजबूत बनाने वाले लोग कौन हैं?

अब आपके जेहन में ये सवाल होगा कि ये लोग हैं कौन? मिलते हैं कुछ ऐसे ही लोगों से.

सीनियर जर्नलिस्ट और दलित चिंतक दिलीप सी मंडल कुछ उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं, जिनके पोस्ट फेसबुक पर हजारों बार शेयर होते हैं और लाखों लोगों तक पहुंचते हैं. वो अपनी भूमिका कुछ इस तरह बताते हैं:

रोहित वेमुला का मामला हो, डेल्टा मेघवाल का मामला हो, दिल्ली यूनिवर्सिटी में रिजर्वेशन का मामला हो. इसमें से कोई भी मामला मैंने खुद नहीं क्रिएट किया है. मेरी भूमिका सिर्फ ये है कि बिल्ट हो रही चीजों को समय पर पहचानना और उसको फिर अपनी लैंग्वैज में आगे बढ़ा देना. इसके लिए क्रिएटिव तरीकों का इस्तेमाल भी करना होता है.
दिलीप सी मंडल, दलित चिंतक
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सोशल मीडिया कैंपेन की 'भाषा' को समझाते हुए बीएचयू के प्रोफेसर और दलित चिंतक एमपी अहिरवार 2 अप्रैल को हुए भारत बंद का उदाहरण देते हैं.

जब ये फैसला आया, तो हमने तुरंत उस एक्ट के फायदे और नुकसान को सोशल मीडिया के जरिए लोगों को बताया. दूसरे स्टेप में, रणनीति बननी शुरू हो जाती है कि कैसे आंदोलन को सफल बनाना है.
एमपी अहिरवार, प्रोफेसर, बीएचयू

नोएडा में रहने वाले दलित एक्टिविस्ट सुमित अपने एक कैंपेन का उदाहरण देते हुए कहते हैं:

अभी कुछ दिन पहले अहमदाबाद में एक युवक को मूंछें रखने पर पीट दिया गया था. इस खबर को मेनस्ट्रीम मीडिया में तवज्जो को नहीं मिली. ऐसे में हमने सोशल मीडिया पर कैंपेन शुरू किया. एक #DalitWithMoustach कैंपेन हमने चलाया, जो काफी कामयाब हुआ. इस लिहाज से सोशल मीडिया के कारण मेन स्ट्रीम की कमी नहीं खलती.
सुमित चौहान, दलित एक्टिविस्ट

इस पूरे आंदोलन में महिलाएं कहा हैं?

सुप्रीम कोर्ट की वकील और दलित एक्टिविस्ट पायल गायकवाड़ सोशल मीडिया पर चलने वाले इन कैंपेन में महिलाओें की भूमिका समझाती हैं.

जो महिलाएं सोशल मीडिया पर लिख रही हैं, उन्हीं का एक्सेटेंड ग्रुप जमीन पर काम कर रहा है, राजस्थान, हरियाणा और कर्नाटक में आप देख सकते हैं. सोशल मीडिया के साथ ग्रास रूट पर ज्यादा एक्टिव हैं. काफी सारे ग्रुप हैं जिनसे में जुड़ी हूं
पायल गायकवाड़, वकील, सुप्रीम कोर्ट

मुंबई के रहने वाले वैभव छाया अंबेडकरवादी आंदोलनों की 'इकनॉमिक्स' को समझाते हुए कहते हैं कि अब लोगों को समझ आने लगा है कि सोशल मीडिया के जरिए पैसे भी कमाए या जुटाए जा सकते हैं. वो कहते हैं कि कैंपेन के लिए कभी क्राउड फंडिंग की जरूरत होती है, तो सोशल मीडिया कॉन्टेक्ट का ही इस्तेमाल किया जाता है.

ऐसे में वीडियो रिपोर्ट में मिलिए उन लोगों से, जिन्होंने 'दलित आंदोलनों' के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को क्रांतिकारी बना दिया है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 13 Apr 2018,06:15 PM IST

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