Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Feature Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019कैफी आजमी की शायरी में आज भी अवाम की आवाज सुनाई पड़ती है: शबाना 

कैफी आजमी की शायरी में आज भी अवाम की आवाज सुनाई पड़ती है: शबाना 

दिल्ली उर्दू एकेडमी की तरफ से आयोजित कार्यक्रम में क्विंट ने कैफी आजमी की बेटी शबाना आजमी से की खास बातचीत.

फबेहा सय्यद
फीचर
Updated:
दिल्ली उर्दू एकेडमी की तरफ से आयोजित कार्यक्रम में क्विंट ने कैफी आजमी की बेटी शबाना आजमी से की खास बातचीत.
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दिल्ली उर्दू एकेडमी की तरफ से आयोजित कार्यक्रम में क्विंट ने कैफी आजमी की बेटी शबाना आजमी से की खास बातचीत.
(फोटो: द क्विंट)

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वीडियो एडिटर: इरशाद आलम

कैफी आजमी, ऐसे शायर थे जिन्होंने अपनी शायरी में सामाजिक न्याय और समानता को अहमियत दी. दिल्ली उर्दू एकेडमी की तरफ से आयोजित कार्यक्रम जश्न-ए-कैफी में क्विंट ने कैफी आजमी की बेटी और मशहूर अदाकारा शबाना आजमी से की खास बातचीत.

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(GFX: कनिष्क दांगी)

अपने पिता को लेकर क्विंट से खास बातचीत में शबाना कहती हैं,

इसमें जावेद अख्तर साहब कैफी आजमी का रोल करते हैं और मैं अपनी मां शौकत कैफी का रोल करती हूं, उस प्ले के जरिए कैफी के बारे में बहुत कुछ पता चल जाता है. उनकी शायरी के बारे में, उनके फिल्मी गीतों के बारे में. साथ ही हम बहुत सारे मुशायरे कर रहे हैं, सेमिनार कर रहे हैं. कैफी साहब ने जो फिल्में लिखी हैं, जैसे ‘हीर-रांझा’ जो कि पूरी की पूरी कविता में लिखी गई है, लेकिन जो सेहरा है, इसका ये बनता है एक खास प्रोग्राम, जिसकी कल्पना जावेद साहेब ने की. नाम है- राग शायरी. इसमें शंकर महादेवन, कैफी साहब की शायरी को गाकर सुनाएंगे. उस्ताद जाकिर हुसैन इसे तबले पर पेश करेंगे. जावेद साहब इसे हिंदुस्तानी में सुनाएंगे और जो अंग्रेजी का तर्जुमा है, वो मैं सुनाऊंगी. ये इसी उम्मीद से किया गया था कि ये उन लोगों को भी समझ आए, जो उर्दू नहीं जानते .
शबाना आजमी, अभिनेत्री 
प्यार का जश्न नई तरह मनाना होगा, गम किसी दिल में सही गम को मिटाना होगा 

'अवाम की आवाज हैं कैफी'

(GFX: कनिष्क दांगी)
कैफी साहब अपने दौर के शायर थे. वो प्रगतिशील लेखक आंदोलन के दौर के थे. जब हम (शबाना आजमी) कैफी साहब का जश्न मनाते हैं, तो हम उस दौर के सभी बेहतरीन लेखकों का भी जश्न मनाते हैं, क्योंकि जब प्रगतिशील लेखक संघ का मेनिफेस्टो तैयार हुआ था, उस वक्त हमारे पास प्रेमचंद, रबींद्रनाथ टैगोर जैसी हस्तियां थीं. आपके पास सज्जाद जहीर और कई दूसरे थे.
(GFX: कनिष्क दांगी)

जावेद एक तरह से उसी दुनिया को साझा करते हैं, जो उनके पिता जां निसार अख्तर और मेरे पिता किया करते थे. लेकिन जावेद के बारे में खास ये है कि उनकी अभिव्यक्ति बिलकुल अलग है, वो ज्यादा मॉडर्न हैं. बॉलीवुड का शायरी से कोई मतलब नहीं. बॉलीवुड में जिस तरह के गाने लिखे जा रहे हैं, उसमें आप शायरी का दोष तो दे ही नहीं सकते. जो हिंदी फिल्में आज लिखी जा रही हैं और जिस तरह से वो पिक्चराइज हो रही हैं, उनको आप शायरी का दर्जा नहीं दे सकते.

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Published: 14 Jan 2019,05:59 PM IST

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