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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
कैमरा: सुमित बडोला
वोटिंग के दिन #IVOTED सेल्फी एक ऐसा मिलेनियल ट्रेंड है, जिसके बारे में हर कोई बात करता है. कभी सोचा है कि वोट देने से पहले हमें स्याही क्यों लगाई जाती है? आइए जानते है लोकतंत्र की इस वॉयलेट लाइन का इतिहास
भारत का पहला आम चुनाव, 17 करोड़ 30 एलिजिबल वोटर. उन्हें चुनावी शीट, पोलिंग बूथ और हजारों बैलेट पेपर और बॉक्स की जरूरत थी, लेकिन सबसे जरूरी बात, वोटिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष होना था.
उस वक्त इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया को वोटिंग में डुप्लीकेसी को रोकने और आइडेंटिटी थेफ्ट जैसी चुनौतियों से निपटना था. ऐसे में देश के पहले चीफ इलेक्शन कमिश्नर सुकुमार सेन 'न मिटने वाली स्याही' का आइडिया लेकर आए कि हर वोटर को उनके बाएं हाथ की इंडेक्स फिंगर पर स्याही लगाई जाएगी.
केमिकल्स, रंगों और सिल्वर नाइट्रेट का एक मेल... जो हमारी स्किन को छूते ही सिल्वर क्लोराइड बन जाता है. सिल्वर क्लोराइड पानी में घुलता नहीं है और स्किन से चिपक जाता है. इसे धोया नहीं जा सकता. इसने स्याही को वाकई में नहीं मिटने वाला बना दिया!
1951 के पहले चुनाव में, इस स्याही की कुल 389,816 शीशियों का इस्तेमाल किया गया था!
दूसरे आम चुनाव के दौरान, किसी ने स्मॉल पॉक्स के वैक्सीनेशन के उपयोग का सुझाव दिया. आइडिया बैलट पेपर सौंपने से पहले वोटर्स के वैक्सीनेशन या रिवैक्सीनेशन करने का था. इस निशान का पता एक हफ्ते तक लगाया जा सकता था, लेकिन, स्मॉल पॉक्स के दौरान हजारों पब्लिक स्वास्थ्य अधिकारियों को शामिल कर चुनाव कराने की रिवैक्सीनेशन वाली पॉलिसी काफी मुश्किल हो जाती.
वैक्सीनेशन का आइडिया कभी प्रभाव में नहीं आया और ये स्याही भारतीय लोकतंत्र का एक अभिन्न हिस्सा बन गई. 1962 में, नेशनल फिजिकल लैबोरेट्री ने मैसूर में एक पब्लिक सेक्टर यूनिट को ये स्याही बनाने का लाइसेंस दिया. इसकी स्थापना 1937 में महाराज कृष्णराज वाडियार IV ने की थी, जो उस समय दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार थे.
नोटबंदी के समय, सरकार और आरबीआई ने ये जानने के लिए इस स्याही का इस्तेमाल किया कि कोई व्यक्ति दो बार तो पैसे नहीं बदल रहा है. 500 और 1,000 के नोट बदलने से पहले हर व्यक्ति को इस स्याही से मार्क किया गया.
आज, मैसूर पेंट्स और वार्निश लिमिटेड इस स्याही को दुनिया के 35 देशों में एक्सपोर्ट करते हैं. स्याही की 10 मिलीलीटर की एक बोतल से 800 वोटरों को निशान लगाया जा सकता है.
So guys, अगली बार जब आप दुनिया में भारत के योगदान के बारे में बात करें, तो सिर्फ 'जीरो' तक न रुक जाएं. इस 'अमिट' स्याही बारे में बताना जरूर याद रखें, जिसने पूरी दुनिया पर अपनी छाप छोड़ी है!
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