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कैमरा: अथर और अभिषेक रंजन
वीडियो एडिटर: कुनाल मेहरा
प्रोडूसर: अभिषेक रंजन
रमजान के दिनों में दिल्ली की रातें बेहद उत्साह वाली होती हैं. लोग रात को 3 बजे उठकर नमाज अदा करने आते हैं, दुकानदार अपनी दुकानें उसी वक्त खोल दिया करते हैं. इस पाक महीने में सेहरी बहुत जरूरी होती है. इसे कोई भी सोकर नहीं गंवाना चाहता. एक अच्छी सेहरी वो होती है जिसमें ये ध्यान रखा जाता है कि लोग दिनभर अपना रोजा रखें और शाम ढलते ही इफ्तारी करें.
'सेहरीवाला' या 'सेहरखान' एक ‘ह्यूमन अलार्म’ क्लॉक यानी घड़ी के जैसे काम करते हैं जो लोगों के घर जाकर उन्हें जगाते हैं. ये प्रथा कब शुरू हुई थी इसका पता लगाना मुश्किल है, लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि ये मुगल शासन के वक्त से चल रहा है.
ऐसे ही एक सेहरखान हैं मोहम्मद इरफान- जो सुबह में क्लिप बेचते हैं और शाम में पार्किंग अटेंडेंट का काम करते हैं. इरफान पुरानी दिल्ली के जामा मस्जिद के गेट नम्बर 1 के पास रहते हैं. रमजान के वक्त वो अपना काम रात 9 बजे तक खत्म कर लेते हैं ताकि वो सुबह पौने तीन बजे तक उठ सके और सेहरी का काम शुरू कर सके. ये काम वो अल्लाह के लिए करते हैं.
सेहरखान अपने घर से निकलते ही लोगों को जगाने का काम शुरू कर देते हैं. सेहरी के लिए जगाने के साथ-साथ सूरज उगने के ठीक पहले वाली फज्र की नमाज के लिए भी वो बताते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि अलार्म और टेक्नोलॉजी के इस जमाने में सेहरखान मोहम्मद इरफान जैसे लोगों की क्या जरूरत है? लेकिन कई रोजेदारों के लिए सेहरखान की आवाज से उठने से बेहतर और कोई अलार्म नहीं है.
इरफान ये काम करीब एक दशक से कर रहे हैं
लेकिन अब इरफान बदले में कुछ नहीं चाहते, न पैसे, न कोई ईनाम न ही प्रशंसा. वो अपने अल्लाह में पूरा भरोसा रखते हैं और दुआ ही उनका सच्चा ईनाम है.
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