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कैप्टन सलारिया: जिन्होंने विदेशी धरती पर लिखी विजयगाथा! 

‘परम वीर चक्र’ विजेता की विजयगाथा!  

सोहिनी बोस
फीचर
Updated:
संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षक कैप्टन गुरबचन सिंह
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संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षक कैप्टन गुरबचन सिंह
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम, आशुतोष भारद्वाज

कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया, ये वो नाम है जिन्होंने विदेशी धरती यानी अफ्रीका के कांगो में भारत की ओर से भेजी गई शांति सेना का नेतृत्व करते हुए न सिर्फ विद्रोहियों को मार गिराया बल्कि खुद शहीद होकर परमवीर चक्र विजेता होने का गौरव हासिल किया.

1961 में जब पूरा विश्व शीत युद्ध की चपेट में था. इसी वक्त अफ्रीका के कांगो में भी गृह युद्ध छिड़ा हुआ था. इससे निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारतीय सेना से भी मदद मांगी थी. भारत ने सैनिकों की टुकड़ी अफ्रीका भेजी. उन टुकड़ियों में गुरबचन सिंह सलारिया भी शामिल थे.

कौन थे गुरबचन सिंह सलारिया

इनका जन्म 29 नवंबर 1935 को पंजाब(अब पाकिस्तान में) में हुआ था. उनके पिता का नाम मुंशी राम था और माता धनदेवी थीं. इनके पिता भी फौजी थे और ब्रिटिश-इंडियन आर्मी के डोगरा स्क्वाड्रन, हडसन हाउस में नियुक्त थे.

बंटवारे के बाद इनका परिवार गुरदासपुर में आकर बस गया. सलारिया ने भारतीय सैन्य अकादमी से 9 जून 1957 को अपनी पढ़ाई पूरी की. इन्हें शुरू में 3 गोरखा राइफल्स की दूसरी बटालियन में नियुक्त किया गया था, लेकिन बाद में 1-गोरखा राइफल्स की तीसरी बटालियन में भेज दिया गया.

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जब दुश्मनों को किया चित

कांगो में मिशन के दौरान गुरबचन सिंह शहीद हो गए थे. 5 दिसंबर 1961 को दुश्मनों ने एयरपोर्ट और संयुक्त राष्ट्र के स्थानीय मुख्यालय की तरफ जाने वाले रास्ते एलिजाबेथ विले को घेर लिया था और रास्तों को बंद कर दिया था. इन दुश्मनों को हटाने के लिए 3/1 गोरखा राइफल्स के 16 सैनिकों की एक टीम को रवाना किया गया. इसी टीम के नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी कैप्टन गुरबचन सिंह को.

साल 1960 से पहले कांगो पर बेल्जियम का राज हुआ करता था. जब कांगों को बेल्जियम से आजादी मिली तो कांगो दो गुट में बंट गया और वहां गृह युद्ध जैसे हालात हो गए थे.

दुश्मनों की संख्या बहुत ज्यादा थी और उनके पास हथियारों की भी कमी नहीं थी.

लेकिन गोरखा पलटन ने देखते ही देखते दुश्मन दल के 40 लोग मौत के घाट उतार दिए.

लड़ाई के दौरान दुश्मन की 2 गोली कैप्टन के गले पर लगी. लेकिन उन्होंने पीछे हटने की जगह लड़ाई जारी रखी. अपनी शाहदत देकर भी गुरबचन सिंह ने दुश्मनों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था.

सिर्फ 26 साल की उम्र में कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया शहीद हो गए. भारत के राष्ट्रपति ने 26 जनवरी 1962 को इन्हें भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान ‘परम वीर चक्र’ (मरणोपरांत) से सम्मानित किया. गुरबचन सिंह सलारिया एकमात्र संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षक हैं, जिन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

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Published: 03 Dec 2019,06:17 PM IST

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