advertisement
वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
असम के बक्सा के लोगों को दिए गए नोटिस में फॉरेन ट्रिब्यूनल का सवाल होता है आप भारतीय या नहीं? वहां के लोग महामारी से त्रस्त, बाढ़ से पीड़ित और अपनी भारतीयता साबित करने को मजबूर हैं. लोगों का कहना है कि लॉकडाउन और बाढ़ के वजह से वो अब आर्थिक रूप से अपने आप को कमजोर महसूस करते हैं.
स्थानीय निवासी फिरोजा बेगम कहती हैं कि जब नोटिस आया मैं दो दिन तक खा नहीं पाई. लॉकडाउन की वजह से मेरे बेटे काम नहीं खोज पा रहे. कोई आमदनी नहीं है. वो घर पर बेरोजगार बैठे हैं . अब हम एक अस्थाई जगह पर रह रहे हैं. हमारे पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं.
ज्यादातर नोटिस जून की शुरूआत में जारी किए गए थे. लेकिन लोगों तक ये नोटिस जुलाई के आखिर तक पहुंचे ताकि अगस्त के शुरूआत में ये दिखे.
स्थानीय निवासी कासिम अली बताते हैं कि बाढ़ हमें 8 से 9 बार बर्बाद कर चुकी है. हमारी जमीनें बह गयी हैं. हम किसी तरह बाद में दूसरी तरफ जाकर बसे हैं, बहुत मुश्किल में जी रहे हैं. लॉकडाउन के वजह से मेरे बेटों को नौकरी नहीं मिल रही है. मैं तो पहले से ही बीमार हूं, इसलिए काम भी नहीं कर सकता. परिवार के एक सदस्य की नागरिकता के लिए 60 से 70 हजार रुपए खर्च करने होंगे और अब मैं भी ये डी वोटर की समस्या झेल रहा हूं.
अपनी नागरिकता साबित करने की समस्या ने लोगों को आर्थिक और मानसिक तनाव से भर दिया है.
स्थानीय निवासी कासिम अली बताते हैं कि मेरे बेटों के पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं और वो खो गए हैं.मैं कोशिश तो कर रहा हूं लेकिन एक ओर मेरे पास पैसे नहीं है. दूसरी तरफ मैं बार-बार बीमार हो रहा हूं. हम बहुत बुरे वक्त से गुजर रहे हैं
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने जिन लोगों के पास नोटिस भेजे गए हैं उनके पास सभी कागजात हैं. उन्हें बिना किसी पूछताछ के शक के घेरे में रखा जा रहा है. पूछताछ किसने की, कब की, सरकार को इसकी कोई जानकारी नहीं है लेकिन सरकार फिर भी हमेशा इन पर शक करती है ताकि उन्हें दबा कर रख सके.
19 लाख से ज्यादा लोगों को 2019 की NRC की लिस्ट से बाहर रखा गया है. अपनी पहचान का ये संघर्ष कब तक चलेगा?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)