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ग्राउंड रिपोर्ट: किसान आंदोलन ने वेस्ट UP की हवा बदल दी है

क्या उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनाव से पहले जनीतिक समीकरण बदल रहा है?

शादाब मोइज़ी
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क्या उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनाव से पहले जनीतिक समीकरण बदल रहा है?
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क्या उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनाव से पहले जनीतिक समीकरण बदल रहा है?
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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वीडियो प्रोड्यूसर- कनिष्क दांगी

वीडियो एडिटर- दीप्ति रामदास

किसान आंदोलन (Farmers Protest) से पश्चिमी उत्तर प्रदेश (Western UP) में BJP की मुश्किलें कितनी बढ़ी हैं? क्या सच में किसान बीजेपी से नाराज हैं? क्या 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (2022 Uttar Pradesh Assembly Election) में इस आंदोलन की छाप दिखेगी? ऐसे ही कुछ सवालों के साथ क्विंट ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) इलाके में किसानों से लेकर नेताओं और आम लोगों से बात की.

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भारतीय किसान मजदूर संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष उधम सिंह कहते हैं-

‘इन इलाके के लोगों ने भले ही वोट तो बीजेपी को कर दिया हो लेकिन बीजेपी के विचारधारा के नहीं है. राजनीति छोड़ दीजिए लेकिन फिर भी किसान नाराज है, इसलिए ही महापंचायत हो रही हैं. तीन कृषि कानून के साथ-साथ गन्ना के दाम, बिजली, खाद और डीजल के बढ़ते दाम का असर भी किसान पर पड़ रहा है. अब वोट भले ही दिया हो लेकिन नाराजगी तो है.’

“किसान नाराज लेकिन मीडिया नहीं दिखा रहा”

भैंसी गांव के रहने वाले किसान नकुल अहलावत मीडिया से काफी नाराज दिखते हैं. कहते हैं, “घर-घर नाराजगी है. लेकिन मीडिया नहीं दिखा रहा है. बीजेपी को इसलिए लाए थे ताकि कांग्रेस से जो नहीं हुआ वो हो सके. इन्होंने लंबे चौड़े वादे किए थे, कहा आय दोगुने होंगे, लेकिन नहीं हुए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना बोना किसानों की मजबूरी है. गन्ने की कीमत 3 साल से नहीं बढ़ी. लेकिन फिर उम्मीद रहती है कि गन्ने का पैस देर ही सही कुछ तो आएगा. यहां दूसरे फसल के लिए माहौल नहीं है. आधे रेट पर अनाज बेचना पड़ता है.”

क्या राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं?

किसान आंदोलन के बाद एक सवाल बार-बार उठ रहा है कि क्या जाट-मुसलमान फिर साथ आ रहे हैं? क्या राजनीतिक समीकरण बदल रहा है? दरअसल, ये सवाल इसलिए है क्योंकि साल 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगे के बाद जाट और मुसलमानों के बीच दूरी हो गई थी. दंगे में करीब 60 लोगों की मौत हुई थी और हजारों लोगों ने पलायन कर लिया. लेकिन अब किसान आंदोलन के दौरान हो रही महापंचायत में जाट और मुसलमान दोनों समाज की मौजूदगी देखने को मिल रही है.

भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत के करीबी रहे किसान नेता गुलाम मोहम्मद जौला बताते हैं, “

सब सहयोग कर रहे हैं, जब तक तीन कानून वापस नहीं लेंगे तब तक बात नहीं बनेगी. हालात अब बदल रहे हैं, लोग एक दूसरे के साथ आ रहे हैं. मुसलमान और जाट की लड़ाई थी अब गिले शिकवे दूर हो रहे हैं. पश्चिम उत्तर प्रदेश में बीजेपी से अब किसानों की नाराजगी भी बढ़ी है, क्योंकि उनके हित की बात नहीं हुई. 

बीजेपी का विरोध?

कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए किसान आंदोलन को लेकर बीजेपी नेता लगातार हमलावर रहे हैं. लेकिन अब ग्रामीण इलाकों में जब नेता जमीन पर उतर रहे हैं तो उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में किसानों की नाराजगी को लेकर जब क्विंट ने बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान से पूछा तो उन्होंने विरोध करने वालों को राजनीतिक दल का कार्यकर्ता बताया.

उन्होंने कहा, “इन लोगों को किसान मत कहिए, किसान पवित्र शब्द है. राजनीतिक दलों के लोग को किसान नहीं कहिए. इन लोगों का हक है विरोध करना, लेकिन मेरा अनुरोध है कि अपनी सीमाओं में रहकर विरोध करें.”

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