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टॉयलेट बने स्टोर रूम, यूपी को कैसे मिलेगी खुले में शौच से मुक्ति?

बाकी योजनाओं की तरह क्या ODF भी कागजों पर लिखी योजनाओं तक ही सीमित है?   

अस्मिता नंदी
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खुले में कर रहे हैं शौच, कैसे बदलेगी सूरत?
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खुले में कर रहे हैं शौच, कैसे बदलेगी सूरत?
(फोटो: द क्विंट)

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इस साल के आखिरी तक उत्तर प्रदेश सरकार का लक्ष्य 30 जिलों को खुले में शौच से मुक्त बनाना है. साथ ही साल 2018 के आखिरी तक योगी सरकार का लक्ष्य सभी जिलों को खुले में शौच से मुक्त घोषित करना है.

तय समय सीमा के भीतर लक्ष्य पूरा करने के लिए जिला प्रशासन जल्दबाजी में शौचालयों का निर्माण करा रहा है. इन शौचालयों को बनाने में खराब मैटेरियल, अधूरा काम और बेकार ड्रेनेज सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस वजह से लोग खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं.

इसी साल अक्टूबर में बुलंदशहर जिले के 101 गांवों को अपना गांव शौच मुक्त करने के लिए सर्टिफिकेट दिए गए थे. साथ ही अवॉर्ड के तौर पर प्रोत्साहन राशि भी दी गई थी.

इस मौके पर द क्विंट ने दिल्ली से दो किमी दूर गेसूपुर गांव पहुंचकर हकीकत जानने की कोशिश की. इस गांव के प्रधान को अपना गांव खुले में शौच से मुक्त कराने के लिए सरकार की तरफ से इनाम मिल चुका है.

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जंगल में टॉयलेट करने के लिए मजबूर

द क्विंट ने देखा कि एक तरफ जहां नए बने टॉयलेट खराब हालत में हैं, तो वहीं ऐसे भी घर हैं, जहां एक भी टॉयलेट नहीं है. गांव के लोग जंगल में जाकर टॉयलेट करने के लिए मजबूर हैं. कुछ स्थानीय निवासियों से जब क्विंट ने बात की, तो उनके जवाब इस तरह थे:

टॉयलेट बनाने वाले कर्मचारी हम से तीन हजार रुपये की मांग कर रहे थे. हमने रुपये नहीं दिए, तो उन्होंने टॉयलेट बनाने का काम रोक दिया.
टॉयलेट में घुसने में हमें डर लगता है. ऐसा लगता है कि कहीं छत न गिर जाए.
हमने टॉयलेट बनवाया था, लेकिन उसकी छत गिर गई. हम बाल-बाल बचे.

गांव की महिलाओं ने बताया कि उनके घर टॉयलेट नहीं बने हैं, इसलिए मजबूरी जंगल जाना पड़ता है. लेकिन वहां हर जगह आदमी होते हैं, कहीं भी टॉयलेट करने की जगह नहीं होती है. महिलाओं ने बताया कि ऐसा होने पर कई बार वो फिर शौच के लिए जाती ही नहीं हैं.

'हमारे घर में तो नहीं बना टॉयलेट'

गेसूपुर गांव में प्रधान के पति के मुताबिक, टॉयलेट बनाने का काम पूरा हो चुका है. लेकिन स्थानीय लोगों से बात की, तो मालूम हुआ कि उन्हें या उनके पड़ोसी के यहां टॉयलेट नहीं बना है.

अगर हमे टॉयलेट मिला है, तो दिखाओ है कहां. हमारे यहां है तो है नहीं, बराबर में नहीं, सामने भी नहीं. अगर बना है, तो है कहां.
स्थानीय लोग
प्रधान झूठ बोल रहे हैं. जब हमारे घर में टॉयलेट नहीं बना है, तो हम हां कैसे कह दे.
स्थानीय निवासी

गांववालों का कहना है कि उनकी शिकायतें भी अनसुनी की जाती हैं. जहां स्कूल 'स्वच्छ भारत' को बढ़ावा दे रहे हैं, वहीं आज भी कई बच्चों के घर में नहीं हैं टॉयलेट.

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