Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019उपचुनाव के ये 3 नतीजे बीजेपी की हर रणनीति के लिए खतरे की आहट हैं

उपचुनाव के ये 3 नतीजे बीजेपी की हर रणनीति के लिए खतरे की आहट हैं

क्या बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे से लोगों का मोहभंग हो रहा है?

मयंक मिश्रा
वीडियो
Updated:
क्या उग्र हिंदुत्व के एजेंडे से लोगों का मोहभंग हो रहा है?
i
क्या उग्र हिंदुत्व के एजेंडे से लोगों का मोहभंग हो रहा है?
(फोटो: कनिष्क दांगी/क्विंट हिंदी)

advertisement

वीडियो एडिटर- संदीप सुमन

गोरखपुर, अररिया और फूलपुर. तीन सीट, तीन नतीजे. और तीनों के तीनों बीजेपी के खिलाफ. लेकिन ऐसा क्या है जो इन तीनों सीटों को बेहद खास बना देता है. गोरखपुर, बीजेपी का गढ़ रहा है. अररिया में पेपर पर बीजेपी कमजोर दिखती है और फूलपुर इस सबसे अलग ऐसा लोकसभा क्षेत्र है जहां 2014 की मोदी लहर में सारे समीकरण बह गए.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

हिंदुत्व के एजेंडे से मोहभंग?

यहां, 1991 से बीजेपी लगातार जीत रही है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की यह कर्मभूमि है. इस इलाके में गोरखनाथ पीठ की तूती बोलती है और इससे जुड़े लोगों ने यहां के चुनावों पर राज किया है. यहां बीजेपी के हारने का मतलब बहुत बड़ा है. इसका सीधा मतलब यही है कि हिंदुत्व के एजेंडे से लोगों का मोहभंग हो रहा है. और मोहभंग के साथ-साथ लोगों को इस एजेंडे से चिढ़ होने लगी है. पिछले एक साल में इस एजेंडे को इतना पुश किया गया है कि कोर्स करेक्शन होगा इसकी संभावना कम ही है. तो क्या यह मतलब निकाला जाए कि लोगों का गुस्सा और भी बढ़ने वाला है?

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ये झटका भूलेगा नहीं (Photo: The Quint)

क्या कहते हैं अररिया के समीकरण?

अररिया बीजेपी के उल्टे ध्रुवीकरण की रणनीति का अहम हिस्सा रहा है. कागज पर इस क्षेत्र में लालू प्रसाद की आरजेडी मजबूत दिखती है क्योंकि यहां मुस्लिम की आबादी 40 फीसदी से ज्यादा है. और यादवों की भी अच्छी खासी तादाद है. दोनों एक साथ हों तो किसी के जीतने की संभावना काफी कम है. और हमें पता है कि मुस्लिम और यादव आरजेडी के मुखर समर्थक रहे हैं. लेकिन यहां बीजेपी की दूसरी स्ट्रेटजी रही है. दूसरों को यह बताकर एकजुट कर लेना कि मुस्लिम हावी हो रहे हैं और उनको कंट्रोल करना जरूरी है. उत्तर प्रदेश के रामपुर, सहारनपुर या मुरादाबाद जैसी जगहों पर यह स्ट्रेटजी काफी कामयाब भी रही है. और अररिया में भी.

याद कीजिए, बिहार बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय का चुनाव से पहले का बयान. ये बीजेपी की उसी उल्टे-ध्रुवीकरण की कोशिश थी. अररिया में बीजेपी की दूसरी यूएसपी थी नीतीश कुमार का साथ. जब दोनों साथ रहे हैं अररिया में किला फतह करते रहे है. वो भी काम नहीं आया. मतलब ये कि ना तो काउंटर-पोलराइजेशन काम आया और ना ही नीतीश के साथ ‘अजेय’ संगम. बिहार में नीतीश और बीजेपी के लिए यह बुरी खबर है.
पीएम नरेंद्र मोदी का आशीर्वाद और नीतीश का नमस्ते दूर तक जाएगा, इसमें शक है (फाइल फोटोः PTI)

फूलपुर में मुरझाया कमल

2014 की लहर में सारे समीकरण बदल गए. जरा समझिए कि लहर के ठहरने से बीजेपी को 13 फीसदी वोट का नुकसान हुआ. और अगर ट्रेंड दूसरे इलाके में फैलता है तो कम से कम उत्तर भारत में बीजेपी की मुसीबतें काफी बढ़ सकती है.

मेरे हिसाब से उपचुनाव के तीन बड़े संदेश हैं. हिंदुत्व की अपील बासी पड़ने लगी है. बीजेपी की सदियों पुरानी काउंटर-पोलराइजेशन वाली स्ट्रेटजी से लोग ऊब रहे हैं. नीतीश कुमार जैसे पुराने सहयोगी भी इस कमी को पूरा नहीं कर पा रहे. और 2014 की लहर अब मद्धम होकर ठंडी पड़ रही है. कम से कम कुछ इलाकों में.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 16 Mar 2018,10:45 AM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT