advertisement
वनडे क्रिकेट में डकवर्थ लुईस के बारे में सब जानते हैं, लेकिन अगर किसी ने उनके नियम के बारे में पूछ लिया तो सालों से क्रिकेट देखने और खेलने वाले सभी लोग तक कैलकुलेशन नहीं कर पाते. जीएसटी के मौजूदा ढांचे को देखकर भी कुछ ऐसा ही लग रहा है कि वादा किया गया एक देश एक टैक्स का और मिल गया 6 टैक्स और 9 सरचार्ज यानी 15 रेट. बड़े जोर-शोर से वादा किया गया कि पूरे देश में एक जैसा टैक्स लगेगा. लेकिन हकीकत देखिए टैक्स दरें 6 हो गई हैं. जीरो परसेंट जीएसटी वाले आइटम हटा लें तो भी रफ डायमंड के लिए 0.25 परसेंट, फिर सोने के लिए तीन परसेंट, फिर पांच परसेंट, 12 परसेंट, 18 परसेंट और 28 परसेंट.
देश में दोहरा जीएसटी सिस्टम होगा. सेंट्रल जीएसटी और स्टेट जीएसटी. वादा था टैक्स सिस्टम और उसपर अमल करने के तरीका आसान बना देंगे. लेकिन हकीकत जान लीजिए एक मैन्युफैक्चरिंग कंपनी को अभी 13 रिटर्न फाइल करने पड़ते थे, उसे एक जुलाई से जीएसटी सिस्टम में 37 रिटर्न फाइल करने होंगे. यानी हर महीने तीन रिटर्न के अलावा एक सालाना रिटर्न . अगर कारोबार एक से ज्यादा राज्यों में फैला है तो रिटर्न की संख्या उतनी ही अधिक हो जाएगी. मिसाल के तौर पर अगर किसी का कारोबार तीन राज्यों में है तो उसे 111 रिटर्न भरने होंगे. यानी इंडस्ट्री का काम बढ़ेगा, अकाउंटेंट का काम बढ़ेगा और बैंकों का सिरदर्द बढ़ेगा.
मामला यहीं नहीं थमेगा, हर कारोबारी को अब अपना हिसाब-किताब दुरुस्त रखने के लिए अकाउंटेंट की सेवाएं लेनी होगी. अभी छोटे कारोबारी पार्टटाइम अकाउंटेंट रखते हैं जो महीने में दो-तीन बार आकर उनके खाते अपटुडेट करते हैं, लेकिन सिस्टम ऑनलाइन होने से उन्होंने रेगुलर अकाउंटेंट की जरूरत होगी.
हां, इसका फायदा यह जरूर होगा कि देशभर में अकाउंटेंट की नौकरियों की भरमार होगी.
भूल जाओगे कहां कितना टैक्स लगेगा. मिसाल के तौर पर ऑटो सेक्टर देखिए यहां गाड़ियों के वैरिएंट की तरह जीएसटी दरों में बहुत वैराइटी है. टू व्हीलर पर 28 परसेंट जीएसटी लगेगा लेकिन 350 सीसी से ऊपर की बाइक पर 3 परसेंट सेस भी लगेगा. एक ही रेस्त्रां में आप गए लेकिन अगर एसी केबिन में बैठ गए तो 18 परसेंट जीएसटी और गैर एसी केबिन में बैठ गए तो 12 परसेंट.
अब इतने कंफ्यूजन से बेहतर है कि वाॅलेट निकालो ...पेमेंट करो और निकल लो!
ग्लोबल रिसर्च फर्म नोमूरा और एचएसबीसी के मुताबिक जिन 144 देशों में जीएसटी अब तक लागू हुई है, उसमें शायद सबसे जटिल जीएसटी ढांचा भारत में ही बना है. दरअसल, क्या है ना हम सबको खुश करने की कोशिश में समझौता कर लेते हैं. ....यू नो एडजस्टमेंट!
जटिलता की ये तो सिर्फ बानगी है.. अब तो कारोबारी और उद्योगपति के अलावा चार्टर्ड अकाउंटेंट भी ये कह रहे हैं... हमसे का भूल हुई.... जिस टैक्स सिस्टम को बनाने में हमने 13 साल ले लिए उसे जलेबी की तरह ऐसा जटिल बना दिया है कि कोई सिरा पकड़ में नहीं आ रहा है.
कैमरा: शिव कुमार मौर्य
वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)