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ट्रिगर वॉर्निंग: इस स्टोरी में कुछ बातें पाठकों को विचलित कर सकती हैं
गुजरात के मोडासा में एक दलित लड़की की लाश पेड़ पर लटकी मिली. उसे कथित रूप से अगवा कर उसका रेप किया गया और फिर उसकी हत्या कर उसे पेड़ से लटका दिया गया. लड़की के परिवार का आरोप है कि पुलिस ने जातिगत भेदभाव के कारण FIR दर्ज नहीं की थी.
3 हफ्ते गुजर चुके हैं लेकिन लड़की की हत्या का कारण पता नहीं चल पाया है. इस मामले की जांच CID को ट्रांसफर की जा चुकी है. एक पुलिस इंस्पेक्टर को लापरवाही बरतने के चलते सस्पेंड किया गया है. 4 में से 3 आरोपी पुलिस हिरासत में हैं, जबकि चौथा अब भी फरार है.
1 जनवरी से लापता लड़की की लाश पेड़ पर लटकी मिली. उसके कपड़े फटे थे, उसके शरीर पर घाव के निशान साफ देखे जा सकते थे. लड़की के परिवार का आरोप है कि उसका गैंगरेप किया गया और उसके बाद हत्या कर दी गई. मृत लड़की की बहन ने 4 लोगों की पहचान की है- बिमल भरवाड़, दर्शन भरवाड़, जिगर और सतीश भरवाड़, ये चारों सवर्ण जाति के लोग हैं.
मृत लड़की की बहन केस की इकलौती चश्मदीद है. उसका दावा है कि 4 लोगों ने 1 जनवरी को उसकी बहन को मोडासा से कार में अगवा कर ले जाते हुए देखा.
शुरुआत में पुलिस ने रेप और हत्या की FIR दर्ज करने से मना कर दिया और इसे 'दुर्घटना में मृत्यु' बताया
लेकिन शाम को दलित समुदाय के कई लोग एक साथ गांव से आए. परिवार ने लड़की का शव तब तक लेने से इनकार कर दिया जब तक पुलिस ने उनकी सारी मांगें मान नहीं ली. पुलिस ने लोगों की मांगे मान कर गैंगरेप और हत्या की FIR दर्ज कर ली. शव में सड़न शुरू हो गयी थी, जिसे अहमदाबाद सिविल असपताल में रेफर किया गया.
पीड़ित परिवार के वकील केवल सिंह राठौड़ का दावा है कि 'पोस्ट मॉर्टम करने वाली टीम में शामिल एक डॉक्टर ने बताया कि - रेप के सबूत मिले थे. लेकिन पहली पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट में रेप हुआ या नहीं, ये साफ नहीं लिखा गया, बस इतना कहा कि प्राइवेट पार्ट में चोट थी. फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार अब भी है.
नवसर्जन ट्रस्ट के फाउंडर और दलित एक्टिविस्ट मार्टिन मैकवेन का कहना है, “कोई भी राज्य सरकार ये दिखाना नहीं चाहती कि उनके शासन में SC/ST को परेशान किया जाता है. हर पुलिस स्टेशन पर दबाव रहता है कि कम से कम उनके थाना क्षेत्र में ऐसे मामले न हों पुलिस पर राजनीतिक दबाव होता है जिसकी वजह से वो शिकायत दर्ज करने में टालमटोल करते हैं और अगर कुछ लोग केस लड़ने में सक्षम नहीं होते हैं तो उनका केस दर्ज ही नहीं होता है.”
वो आगे कहते हैं, “गुजरात सरकार से सवाल है कि 1989 से 2018 तक करीब इन 30 सालों में पुलिस स्टेशन में कितने झूठे केस दर्ज हुए हैं. दिलचस्प बात ये है कि 6 जिलों के पुलिस डिस्ट्रिक्ट चीफ का कहना है कि उनके क्षेत्र में एक भी झूठा केस दर्ज नहीं हुआ, 7 जिलों में पुलिस चीफ ने हमें लिखित में दिया है कि उनके पास इस तरह के डेटा जुटाने का कोई सिस्टम नहीं. यहां पक्षपात है सिर्फ पुलिस या नेताओं में नहीं बल्कि न्यायपालिकाओं में भी है”
पीड़ित परिवार के वकील केवल सिंह बताते हैं कि- गुजरात में हर 4 में से 1 पुलिसकर्मी को कास्ट-सेंसिटाइजेशन की ट्रेनिंग नहीं मिलती है
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