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दुष्यंत का ‘किंगमेकर’ बनना तय नहीं, हरियाणा चुनाव के 7 बड़े संदेश

नामुमकिन नहीं है बीजेपी को हराना 

नीरज गुप्ता
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वो क्या स्थिति है जो दुष्यंत चौटाला से ‘किंगमेकर’ का खिताब छीन सकती है?
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वो क्या स्थिति है जो दुष्यंत चौटाला से ‘किंगमेकर’ का खिताब छीन सकती है?
(फोटो: इरम गौर/क्विंट हिंदी) 

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कैमरा: मुकुल भंडारी

वीडियो एडिटर: विशाल कुमार

हरियाणा के चुनाव ने पॉलिटिक्स के ज्यादातर पंडितों की हवा निकाल दी है. एक-आध को छोड़कर सभी एग्जिट पोल बीजेपी की बंपर जीत की घोषणा कर रहे थे. बीजेपी ने खुद ‘अबकी बार, 75 पार’ का नारा दिया था. लेकिन पार्टी बहुमत का आंकड़ा यानी 46 भी नहीं छू पाई.

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कथा जोर गरम है कि....

जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला हरियाणा के किंगमेकर बनेंगे. लेकिन ऐसा है नहीं. और वो क्यूं, ये बताउंगा जरा बाद में लेकिन पहले वो चार बातें जिनकी वजह से हरियाणा में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बन रही है.

  1. सरकार के रवैये के खिलाफ हुई वोटिंग. तभी तो सीएम मनोहर लाल खट्टर और मंत्री अनिल विज को छोड़कर बाकि सारे मंत्री हार गए.
  2. जाट समुदाय ने एकजुट होकर उस उम्मीदवार को वोट दिया जो बीजेपी को हरा सकता है भले ही वो किसी भी पार्टी का हो.
  3. नहीं चला ग्लैमर का तड़का. टिकटौक स्टार सोनाली फोगाट से लेकर रेसलर बबीता और योगेश्वर दत्त भी हार गए. सनी देओल की रैलियां किसी काम ना आई.
  4. बागड़ बेल्ट यानी हिसार, सिरसा और फतेहाबाद ने बीजेपी को पूरी तरह नकार दिया. ये पहले से बीजेपी का कमजोर किला था जो विधानसभा में और कमजोर हुआ.

अब नजर डालते हैं इस छोटे से राज्य के बड़े राजनीतिक संदेशों पर:

संदेश नंबर 1

अजेय नहीं है बीजेपी.

प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी के साथ बीजेपी नेशनल पॉलिटिक्स में भले ही अजेय नजर आती हो, लेकिन पिछले साल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बाद अब हरियाणा ने साबित किया है कि विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हराना नामुमकिन नहीं है.

संदेश नंबर 2

लोगों ने अपने वोट के जरिये कहा है कि उन्हें आर्टिकल 370, कश्मीर या पाकिस्तान जैसे मुद्दों पर भाषण नहीं बल्कि बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों का निपटारा चाहिए.

संदेश नंबर 3

राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से हटने के बाद पार्टी में भले ही उठापटक का माहौल हो लेकिन जनता ने अभी उसे खारिज नहीं किया है. साथ ही विधानसभा चुनावों में लोकल लीडरशिप को कमान सौंपने की कांग्रेस की रणनीति भूपेंद्र सिंह हुड्डा की शक्ल में एक बार फिर कामयाब हुई है.

संदेश नंबर 4

जातियों के आधार पर बंटे हिंदू वोटों को हिंदूवाद की छतरी तले लाकर अपने पाले में लेने की बीजेपी की कोशिश नाकाम हुई है. लोकसभा से तुलना करें तो उसके वोट प्रतिशत में करीब 22 फीसदी की गिरावट है.

संदेश नंबर 5

लोग किसी भी एक पार्टी या मुद्दे के साथ चिपके हुए नहीं हैं. वो दिसंबर 2018 में तीन राज्यों में कांग्रेस जिताते हैं, मई 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हीं राज्यों में उसे हराते हैं और फिर अगले विधानसभा चुनाव में फिर अपना मन बदल लेते हैं.

संदेश नंबर 6

ज्यादातर दलबदलुओं की हार हुई है. साफ है कि चुनाव से पहले पाला बदलने की मौकापरस्ती को लोगों ने दरकिनार किया है.

सबसे अहम संदेश

दिग्गज जाट नेता चौधरी देवीलाल की विरासत बेटे अभय चौटाला से छिटककर उनके पोते दुष्यंत चौटाला को मिल गई है. अभय की पार्टी आईएनएलडी(INLD) ने बेहद खराब प्रदर्शन किया जबकि दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला की अगुवाई में साल भर पुरानी पार्टी जेजेपी(JJP) हीरो की तरह उभरी.

अब आते हैं उस पुरानी बात पर कि वो क्या स्थिति है जो दुष्यंत चौटाला से ‘किंगमेकर’ का खिताब छीन सकती है?

  • वो स्थिति है 6-7 निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत. हरियाणा विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा है- 46. यानी बीजेपी अगर 39 से 40 सीट गई तो वो दुष्यंत के बिना ही निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ सरकार बना सकती है.
  • दुष्यंत चौटाला अगर कांग्रेस का हाथ थामना चाहें तो भी दोनों मिलकर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है. उन्हें निर्दलीय उम्मीदवारों की जरूरत पड़ेगी.
  • बीजेपी हर हालत में सबसे ज्यादा सीट पाने वाली पार्टी है. त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में राज्यपाल पहले बीजेपी को ही सरकार बनाने का न्योता देंगे.
  • केंद्र में बीजेपी की मजबूती और अमित शाह की रणनीति को देखते हुए ये मानना मुश्किल है कि बीजेपी सरकार बनाने का न्योता हाथ से जाने देगी.
  • इन सबके बीच भी हो सकता है कि दुष्यंत चौटाला बीजेपी के साथ सरकार में शामिल हों लेकिन वो ज्यादा सौदेबाजी की स्थिति में नहीं होंगे.

तो खेल अभी बाकी है उसका मजा लीजिए. लेकिन अपने देश के वोटर को सलाम. वो चुनाव दर चुनाव ये साबित करता है कि उसे चाहे जो अफीम चटा लीजिए लेकिन वोट वो पूरे होश-ओ-हवाश में ही देता है.

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