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मध्यप्रदेश में इंदौर के गौतमपुरा में सालों से चली आ रही परंपरा निभाने के लिए दिवाली के अगले दिन हिंगोट युद्ध हुआ, जिसमें 36 लोग घायल हो गए. वहीं तीन को गंभीर चोटें लगीं, जिन्हें इंदौर रेफर किया गया है.
शुक्रवार को सूर्यास्त होते ही देवनारायण मंदिर के सामने के मैदान का नजारा बदल गया. यहां तुर्रा और कलंगी दल ने एक-दूसरे पर हिंगोट चलाना शुरू कर दिया. दोनों ओर से हिंगोट छोड़े जा रहे थे. जहां एक दल दूसरे को मात देने की कोशिश कर रहा था, वहीं अपनी सुरक्षा के भी पूरे इंतजाम किए हुए थे. इस युद्ध का हजारों लोगों ने आनंद लिया. दर्शकों की सुरक्षा के मद्देनजर मैदान के चारों ओर फेंसिंग भी की गई थी.
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हिंगोट हिंगोरिया नामक पेड़ में फलने वाला नारियल जैसा कठोर, लेकिन आकार में नींबू जैसा छह से आठ इंच लंबा फल होता है. इसे अंदर से खोखला कर, उसमें बारूद भर दिया जाता है. एक छेद में बत्ती लगा दी जाती है और दूसरे छेद को मिट्टी से बंद कर दिया जाता है. बत्ती में आग लगाते ही हिंगोट शोला बनकर दहकने लगता है. उसके बाद हिंगोट को बांस की कमानी (पतली लकड़ी) से जोड़कर फेंका जाता है, ताकि निशाना सीधा दूसरे दल पर लगे.
इस युद्ध की शुरुआत कैसे और कब हुई, इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता, मगर माना जाता है कि ये युद्ध अपनी ताकत और कौशल दिखाने के लिए किया जाता है. इस युद्ध के दौरान पुलिस के लिए सुरक्षा बड़ी चुनौती होती है, क्योंकि यहां हजारों की संख्या में लोग दर्शक के तौर पर पहुंचते हैं, तो दूसरी ओर युद्ध में हिस्सा लेने वाले कई प्रतिभागी शराब के नशे में होते हैं.
इंदौर के पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) हरि नारायण चारी मिश्रा ने बताया कि गौतमपुरा में होने वाले हिंगोट युद्ध के लिए पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम किए गए. हेलमेट सहित अन्य सुरक्षा सामग्री के साथ 250 जवानों की तैनाती रही, मैदान के चारों ओर फेंसिंग कराई गई, ताकि दर्शकों को किसी तरह का नुकसान न हो. इसके अलावा एम्बुलेंस और चिकित्सा सेवा का भी इंतजाम किया गया.
सालों से हर साल हिंगोट युद्ध देख रहे हीरा लाल ने कहा कि ये युद्ध बड़ा रोमांचकारी होता है. इसकी तैयारी लगभग एक माह पहले से शुरू हो जाती है. तुर्रा और कलंगी, दोनों दलों के सदस्य पूरी तैयारी कर आते हैं और दोनों दलों की कोशिश जीत हासिल करने की रहती है. युद्ध खत्म होने पर दोनों दलों के लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं और अपने घर लौट जाते हैं.
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