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वीडियो | बूचड़खानों पर बैन के बाद दलित क्यों कर रहे हैं पलायन?

सरकार की नीति से गायों का भला हो रहा है या बुरा?

ऐश्वर्या एस अय्यर
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 सरकार देश के 16 राज्यों में गाय अभ्यारण्य बनाने की सोच रही है.
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सरकार देश के 16 राज्यों में गाय अभ्यारण्य बनाने की सोच रही है.
(Photo: The Quint)

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जब पशुओं की हत्या पर बैन लगाया गया, तो कहा गया था कि इससे पशुओं को दुर्व्यवहार से बचाया जा सकेगा. हालांकि यूपी में जयापुर, वाराणसी के 72 साल के किसान कन्हैया लाल ने क्विंट को बताया कि बूचड़खाने में भले नहीं लेकिन फिर भी गायों और बैलों को मारा जा रहा है.

मई 2017 में पर्यावरण मंत्रालय के नोटिफिकेशन के 2 दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस बैन पर रोक लगाई, लेकिन तब तक नुकसान होना शुरू हो चुका था. वाराणसी जिले के एक गांव में दलितों ने गांव छोड़कर जाना शुरू कर दिया. क्योंकि उनका तो पेशा ही था मरे हुए जानवरों निपटारा करना.

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‘डरसे दलित कर रहे हैं पलायन

कन्हैया लाल कहते हैं कि दलित ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण रोल निभाते हैं, वो मरी हुई गायों का निपटारा करते हैं. इस काम के लिए किसान आज भी हाथ नहीं लगाते.

जब हमने उनसे पूछा कि यहां दलित कहां मिलेंगे, उन्होंने जमुनी गांव की ओर इशारा किया जो वाराणसी के जयापुर गांव से 10 किलोमीटर दूर था.

जब हम जमुनी चौराहा पहुंचे तो, ये देखकर दंग थे कि जो दलित पिछले दो दशकों से यहां रह रहे थे, वो अपना सामान उठाकर जा चुके थे.

जमुनी के स्थानीय निवासियों ने बताया कि दलितों के लिए फिलहाल कोई खतरा नहीं था लेकिन वो फिर भी डर के कारण यहां से चले गए. हालांकि, जब हमने उन्हें ये बात कैमरे पर बोलने के लिए कहा, तो वो कतराने लगे. चौराहे से आगे जाकर हमने एक किसान से बात की.

हमने पूछा, “अब जब यहां दलित नहीं हैं तो किसान कैसे मरे हुए पशुओं का निपटारा करते हैं?”

किसान ने बताया, ‘‘अब करीब 10 ऐसे लोग इकट्ठे होते हैं, जो छोटे काम करते हैं और वो कुछ किलोमीटर दूर मरी हुई गाय को फेंक कर आते हैं. तब वहां कुत्ते या दूसरे जानवर आते हैं और उसे खा लेते हैं.’’

गाय की जगह भैंस पालने पर जोर

एक अनुमान के मुताबिक, यूपी में 90% से ज्यादा छोटे और सीमांत किसान हैं और बूचड़खानों के लिए पशुओं की खरीद-फरोख्त बंद होने से इन्हें नुकसान हुआ है. यादव इसी तरह के किसानों में से एक हैं. उनका मानना है कि किसानों की परेशानी बढ़ गई है, आवारा पशु खेत चर लेते हैं. यादव के मुताबिक, ‘‘पहले तो सिर्फ नीलगाय ही परेशानी थी और अब बाकी पशु भी.”

कन्हैया लाल ने एक और मुद्दे की ओर ध्यान दिलाया, जिसकी वजह से किसान गाय पालने में हिचकिचा रहे हैं.

अब गायों को पालने से लोग बच रहे हैं और भैंस पाल रहे हैं. भैंस को आराम से बेचा जा सकता है जबकि गाय को भगवान का दर्जा दे दिया गया है. इसलिए, गाय जब दूध देना बंद कर देती है, हम कुछ किलोमीटर दूर जाते हैं और गाय को छोड़ देते हैं.
कन्हैया लाल, किसान

कन्हैया ने आगे बताया कि पुलिस अगर किसानों को गाय के साथ देखती है तो परेशान करती है. कन्हैया ने कहा, ‘‘हम गाय खरीद कर घर लाते हैं ताकि उससे हमारा भरण पोषण हो सके, लेकिन पुलिस हमें लगातार परेशान करती है. कई बार गाय और बछड़ा साथ होते हैं. वो सोचते हैं कि हम इन्हें बूचड़खाने में ले जा रहे हैं. ये सिर्फ राजनीति है.’’

यादव और कन्हैया दोनों का कहना है कि सरकार को बैन लगाने से पहले इसके नतीजों के बारे में सोच लेना चाहिए था. जब तक सरकार किसी समाधान के साथ नहीं आती, तब तक दलित को अपनी रोजी-रोटी के लिए परेशान होना पड़ेगा और किसान भी फसल को पशुओं से बचाने में नाकाम रहेंगे.

वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान, आशीष मैक्यून

प्रोड्यूसर- ऐश्वर्या अय्यर

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