Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019क्रूर जनरल डायर ने नरसंहार से पहले मौके पर हवाई सर्वेक्षण कराया था

क्रूर जनरल डायर ने नरसंहार से पहले मौके पर हवाई सर्वेक्षण कराया था

जनरल डायर- ‘सेना की ताकत दिखाकर इन भारतीयों को सबक सिखाना चाहिए’

क्विंट हिंदी
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(फोटो: क्विंट हिंदी)
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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

वीडियो प्रोड्यूसर: शोहिनी बोस

पंजाब के अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन खूनखराबे में बदल गया. ब्रिगेडियर जनरल डायर के आदेश पर ब्रिटिश सैनिकों ने 1000 से ज्यादा निहत्थे भारतीय पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को मार डाला.

ब्रिटिश सैनिकों ने बिना किसी वजह के 10 मिनट तक गोलीबारी की, जब तक कि उनके पास सभी गोलियां खत्म नहीं हो गईं.

जब 1650 गोलियां 1000 से ज्यादा निर्दोष लोगों के शरीर में समा गईं, जिसके बाद भारत के स्वतंत्रता संग्राम ने एक नाटकीय मोड़ ले लिया

18 मार्च 1919 को पास हुआ रॉलेट एक्ट. इस बेरहम कानून के कारण अंग्रेज दो सालों तक बिना किसी ट्रायल के भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डाल सकते थे

इस कानून के खिलाफ महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश का गुस्सा भड़क उठा. कानून लागू होने के बाद पूरे देश में भारी विरोध हुआ. लाखों भारतीय महात्मा गांधी की अगुवाई में सड़कों पर उतरे.

विरोध जंगल की आग की तरह फैल गया और कुछ ही समय में पंजाब पहुंच गया. भारत के दूसरे हिस्सों की तरह अमृतसर के लोग भी अंग्रेजों का विरोध करने लगे. गांधी जी से प्रेरित स्वतंत्रता सेनानी डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू ने रॉलेट एक्ट के विरोध में सरकार विरोधी जुलूस निकाले.

30 मार्च 1919 को जलियांवाला बाग में 30,000 से ज्यादा लोग जुटे. डॉ. पाल और किचलू ने भीड़ को संबोधित किया, लोगों से अपने निजी हित से पहले राष्ट्रहित को प्राथमिकता देने को कहा. बिना किसी हिंसा के विरोध किया. प्रदर्शन सफल रहा जिसके बाद अंग्रेजों ने उन दोनों के सार्वजनिक सभा करने पर प्रतिबंध लगा दिया.

प्रतिबंध को किनारे रखते हुए, करीब 50 लाख लोग इकट्ठे हुए, पाल और किचलू पर लगे प्रतिबंध हटाने की मांग की गई. बढ़ते विरोध और हिंदू-मुस्लिम एकता से डिप्टी कमिश्नर माइल्स इरविंग परेशान हो गए, क्योंकि उन्होंने सांप्रदायिक मतभेद पैदा करने की साजिश रची थी.

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नरसंहार से ठीक तीन दिन पहले, डॉ. पाल और किचलू को इरविंग के निवास पर आमंत्रित किया गया था. उनके पहुंचने के तुरंत बाद उन्हें हथकड़ी पहनाई गई और धर्मशाला जेल ले जाया गया. जैसे ही उनकी गिरफ्तारी की बात फैली, सैकड़ों लोगों ने सड़कों पर उतरकर अपने नेताओं को तुरंत रिहा करने की मांग की

इरविंग के निवास की ओर मार्च करते हुए, भीड़ को ओवरब्रिज के करीब ब्रिटिश सैनिकों की साइट के पास रोका गया. सैनिकों ने तुरंत ही गोलियां चलानी शुरू कर दीं, जिसमें कई लोग मारे गए. लेकिन इससे विरोध रुक नहीं सका. दोपहर के आसपास, एक और गुस्साई भीड़ वहां पहुंची और जब लोगों ने अपने भाइयों और बहनों के शवों को देखा, तो वे हिंसक हो गए. इमारतों पर पत्थर फेंके, आग लगा दी. वो गुस्से में थे.

जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई, तो अमृतसर की कमान संभालने के लिए लाहौर से जनरल रेजिनाल्ड डायर को बुलाया गया. उन्होंने तुरंत अमृतसर के ऊपर हवाई निगरानी का आदेश दिया. डायर ने घोषणा की 'सेना की ताकत दिखाकर इन भारतीयों को सबक सिखाना चाहिए'.

नरसंहार के दिन, उन्होंने चार से ज्यादा लोगों की सभी बैठकों और सभाओं पर प्रतिबंध लगा दिया और रात 8 बजे के बाद घर से बाहर दिखने वाले किसी भी व्यक्ति को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया.

डायर के आदेश की अवहेलना करते हुए कुछ प्रदर्शनकारियों ने घोषणा की "शाम 4.30 बजे जलियांवाला बाग में एक बैठक होगी. सभी को आमंत्रित किया गया है."

ये सुनकर, डायर ने एक योजना बनाई. 4.30 की जो योजना बनाई गई थी, उसमें हजारों लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठे होने लगे, एक सार्वजनिक बाग जिसमें सिर्फ एक एग्जिट था और वो घातक हो गया. जैसे ही पाल और किचलू को आजाद करने की मांग जोर पकड़ती गई, एक विमान आसमान में मंडराने लगा और इससे जनरल डायर को भीड़ का अंदाजा हो गया.

कुछ ही मिनटों में, ब्रिटिश सेना ने अपनी पोजिशन ले ली. सेना के आने की आवाज से बैठक में खलल पहुंची और कुछ सेकेंड बाद, जनरल डायर का कुख्यात आदेश गूंजा - "फायर"

नरसंहार के 10 मिनट बाद, बैसाखी का त्योहार खून से सन चुका था. कुल मिलाकर एक हजार से ज्यादा भारतीय शहीद हो गए

हत्याकांड की निंदा करते हुए टैगोर ने ब्रिटिश नाइटहुड उपाधि त्याग दी गांधी ने कैसर-ए-हिंद मेडल लौटा दिया. नरसंहार ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को फिर से हवा दी और 'पूर्ण स्वराज' की पुकार पहले से ज्यादा तेज हो गई

“कार्रवाई (बैठक) तितर-बितर करने के लिए नहीं थी, बल्कि भारतीयों को उनकी अवज्ञा के लिए दंडित करने के लिए थी.”
जनरल डायर

खुले तौर पर और कई पूछताछ में अपने रुख को सही ठहराने के बावजूद, डायर को केवल इस्तीफा देने के लिए कहा गया, कभी जेल नहीं भेजा गया. बाद में उसे स्ट्रोक और आंशिक रूप से लकवा का सामना करना पड़ा और नरसंहार के आठ साल बाद, 1927 में उसकी मौत हो गई. ब्रिटिश सरकार ने 1922 में रॉलेट एक्ट को निरस्त कर दिया.

आज 100 सालों से ज्यादा हो गए...जलियांवाला बाग नरसंहार भुलाया नहीं गया है. क्रूरता और बर्बरता का प्रतीक बना हुआ है

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