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हम देखेंगे...
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
हम देखेंगे...
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अजल में लिखा है
नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शन के दौर में फैज़ अहमद फैज़ की ये नज्म विरोध की आवाज को और धारदार बनाती है. देश के कोने-कोने में ये नज्म गूंज रही है. ऐसे में इसका इतिहास जानना बेहद जरूरी है.
पाकिस्तान के कट्टर सैन्य तानाशाह जनरल जिया-उल-हक के शोषण के खिलाफ फैज़ ने ये लिखा था. इसके कुछ ही साल बाद 1986 में इकबाल बानो ने इसे अपने अंदाज में गाया तो मानो ‘हम देखेंगे’ एक विरोध की, विद्रोह की, क्रांति की पुकार बन गई.
इस वीडियो में समझिए ‘हम देखेंगे’ के मायने, इसकी हर एक लाइन के मायने.
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