Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Jharkhand के ये आदिवासी बच्चे नहीं जानते क्या है Online Education?

Jharkhand के ये आदिवासी बच्चे नहीं जानते क्या है Online Education?

झारखंड के 50 प्रतिशत से ज्यादा आदिवासी परिवारों के पास स्मार्टफोन नहीं है

आनंद दत्त
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Jharkhand के ये आदिवासी बच्चे नहीं जानते, क्या है Online Education?

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भारत सरकार ने कोरोना (COVID19) महामारी को रोकने के लिए 12 मार्च 2020 को लॉकडाउन (Lockdown) लगाया था. लॉकडाउन लगने की वजह से स्कूल भी बंद कर दिए गए थे और ऑनलाइन पढ़ाई की बात की गई थी. लेकिन क्या आप जानते हैं, कि आज भी, झारखंड (Jharkhand) के 50 प्रतिशत से ज्यादा आदिवासी परिवारों के पास स्मार्टफोन नहीं है. इस रिपोर्ट में जानेंगे सरकार के उन दावों का सच जिसमें कहा गया था कि देश का कोई भी बच्चा ऑनलाइन एजुकेशन से महरूम नहीं रहेगा.

क्विंट के लिए आनंद दत्त झारखंड के आदिवासी इलाकों में ऑनलाइन पढ़ाई की वास्तविक स्थिति जानने के लिए पहुंचे राजधानी रांची से 150 किलोमीटर दूर लातेहार जिले के असुर, कोरवा और बिरजिया आदिम जनजातियों की बस्तियों में. झारखंड का लातेहार जिला घने जंगलों और खनिज पदार्थों से भरा है. यहां पर ज्यादातर आदिवासी असुर, कोरवा, बिरजिया आदिम जनजाति से आते हैं. जनसंख्या के लिहाज से बिरजिया 6276, असुर 22,459, कोरवा 35,000 बचे हैं.

यहां पहुंचने पर पता चलता है कि ऑनलाइन एजुकेशन के सारे दावे यहां आते -आते हवा हवाई हो जाते हैं. कक्षा दो में पढ़ रही छात्रा रवीना असुर कहती हैं कि ऑनलाइन क्लास क्या होता है उन्हें नहीं पता.

"ऑनलाइन एजुकेशन नहीं होता है. बंदी के दौरान हमलोग ट्यूशन पढ़ने रांची गए थे. मामा हमें पढ़ाने ले गए थे. उनका एक्सीडेंट हो गया, फिर हमलोग रांची नहीं गए. हमलोग ऑनलाइन एजुकेशन नहीं जानते हैं, नहीं पढ़े हैं. हमलोगों के पास बड़ा मोबाइल नहीं है. ऑनलाइन क्लास क्या होती है, हम नहीं जानते हैं."
रवीना असुर, छात्रा
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ढ़ोंरीकोना गांव के अन्य छात्र बतातें है कि दो साल से स्कूल बंद है. ऑनलाइन एजुकेशन के बारे में नहीं जानते हैं. कभी सुने भी नहीं हैं. पढ़ाई का मन करता है, लेकिन टीचर सब नहीं आते हैं.

एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में सरकारी विद्यालयों के सिर्फ 28 फीसदी बच्चों तक ऑनलाइन लर्निंग मैटेरियल पहुंचा. 52 फीसदी बच्चों ने बताया कि उनके पास स्मार्टफोन ही नहीं है.

हुसंबू गांव के अभिभावक जयंती कुजूर कहते हैं कि, "मेरा बेटा लोग को कैसे पढ़ाएं, कुछ दिख नहीं रहा है. गांव में कोई सुविधा नहीं है यहां पर. मास्टर-टीचर का भी सुविधा नहीं है. कभी वो लोग आते है, कभी नै आता है. इस वजह से पढ़ाई लिखाई नहीं कर पा रहे हैं. घर में कुछ है ही नहीं, तो कहां से कॉपी-किताब खरीदें. अपना पेट चलाना भी मुश्किल है."

बात अगर झारखंड समेत देश के अन्य इलाकों की करें तो स्कूल खुल चुके हैं. पढ़ाई शुरू हो चुकी है. लेकिन 10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए दो साल का वक्त बहुत ज्यादा होता है. ये उनके स्कूल जाने का, नई चीजे सीखने का समय होता है जिससे उनके व्यक्तित्व का विकास होता है. लेकिन सरकारी अनदेखी की वजह से आदिवासी बच्चे पढ़ाई नहीं कर सके और अभी भी स्कूल छोड़ रहे हैं. जो इस सरकार और पूरे शिक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल है.

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Published: 03 Jul 2022,07:54 PM IST

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