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झारखंड में लाखों के पास राशन कार्ड नहीं है. लाखों के आवेदन पेंडिंग हैं. लाखों के राशन कार्ड 2017 में रद्द कर दिए गए. लाखों के पास सफेद कार्ड है. इन तमाम लोगों को लॉकडाउन ने भूखे पेट सोने को मजबूर कर दिया है. सरकार ने कहा है कि जिन्होंने आवेदन किया है, उन्हें भी राशन देंगे और जिनके पास कार्ड नहीं है, उनके लिए भी इंतजाम है, तो क्विंट ने ग्राउंड पर जाकर पता लगाया कि क्या वाकई में सबको राशन मिल रहा है? हमारे कैमरे पर जो दर्ज हुआ है, उसमें दर्द है, भूख है और है बेपनाह हताशा.झारखंड में लाखों के पास राशन कार्ड नहीं है. लाखों के आवेदन पेंडिंग हैं
झारखंड सरकार का कहना है कि 2017 में राशन कार्ड रद्द किए गए थे, उसकी वजह ये थी कि गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले ढेर सारे लोग सरकारी राशन ले रहे थे. अभी की स्थिति ये है कि करीब 6.9 लाख लोगों ने कार्ड के लिए आवेदन कर रखा है. झारखण्ड में राइट टू फूड की लड़ाई लड़ रही संस्था “राइट टू फूड कैम्पेन” के मुताबिक फिलहाल भी 3 लाख परिवार ऐसे हैं जो अशिक्षा या कम जानकारी के कारण आवेदन कर ही नहीं पाए हैं.
इस बीच 14 अप्रैल को झारखण्ड सरकार ने कहा कि हर जरूरतमंद को राशन दिया जायेगा चाहे उसने आवेदन किया हो या नहीं. लेकिन झारखण्ड सरकार ने यहां एक शर्त लगाते हुए कहा कि राशन लेते समय पावती रसीद दर्ज करानी पड़ेगी. झारखण्ड वासियों के समक्ष समस्या यहीं से शुरू हुई. वह भयावह तब दिखने लगी जब 4 लाख सफेद राशन कार्ड धारकों ने भी राशन न मिलने की बात कही. इन कार्डों पर लोगों को सिर्फ किरोसिन तेल ही दिया जाता है.
लातेहार जिला, महुआडांड़ ब्लॉक के ओरसा गांव के रहने वाले गुड्डू नगेशिया के घर में सात सदस्य हैं. लॉक डाउन के बाद से इनके घर में चावल नसीब नहीं हुआ. सुबह शाम सिर्फ मक्के को ढेकी में कूट कर चावल की तरह पकाकर खा रहे हैं. इनके पास राशन कार्ड है, लेकिन पिछली सरकार में फर्जी कार्ड के नाम पर इनका कार्ड भी रद्द कर दिया गया. अब इन्हें किसी तरह का खाद्यान्न नहीं मिलता. पंचायत के मुखिया भी इन्हें राशन नहीं दे रहे. इस स्थिति में परिवार के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
लातेहार जिले के माहुआटांड प्रखण्ड की रहने वाली विधवा महिला कुन्ती नगेसिया लॉक डाउन से पहले ही टीबी का इलाज कराकर वापस घर आई हैं. वह कहती हैं कि इलाज के लिए जाने से पहले उन्होंने 02 अप्रैल 2019 को राशन कार्ड बनवाने के लिए जरूरी कागजात अनुमण्डल अधिकारी, महुआटां को सौंपे थे. यही नहीं सीओ को भी उसने विधवा पेंशन के लिए उसी दिन आवेदन सौंपा था. कुन्ती कहती हैं कि उनके पास न घर है, न राशन कार्ड और न ही पेंशन.
वहीं झारखंड के खाद्य आपूर्ति मंत्री रामेश्वर उरांव ने क्विंट से बात करते हुए कहा है-
सामाजिक संगठनों का कहना है कि गांवों में कई ऐसे लोग हैं जिनके पास आवेदन की पर्ची नहीं है, तो वो पावती कहं से दिखाएं, प्रज्ञा केंद्र बंद है तो आवेदन कहां से करें? कुल मिलाकर स्थिति है कि सरकार को इस बात की ज्यादा चिंता दिखती है कि कहीं राशन गलत व्यक्ति को न मिल जाए. सामान्य समय के लिए ये सही रणनीति हो सकती थी, लेकिन लॉकडाउन में जिंदगियां बचाना प्राथमिकता होनी चाहिए या फिर अनाज, ये झारखंड सरकार को सोचना पड़ेगा. साथ ही सरकार को ये भी सोचना चाहिए अगर मुखिया और डीसी को आपात राशि दी है तो फिर हर गरीब के मुंह तक निवाला क्यों नहीं पहुंच रहा?
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