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‘इस क्वॉरन्टीन सेंटर में भूख से मर जाएंगे’: झारखंड रियलिटी चेक

झारखंड में हजारीबाग, रामगढ़ और गिरिडीह के क्वॉरन्टीन सेंटर से क्विंट का रियलिटी चेक

मोहम्मद सरताज आलम
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कहीं पेड़ पर सोने को मजबूर हुए प्रवासी मजदूर, तो कहीं बिस्तर ही नहीं: झारखंड से रियलीट चेक
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कहीं पेड़ पर सोने को मजबूर हुए प्रवासी मजदूर, तो कहीं बिस्तर ही नहीं: झारखंड से रियलीट चेक
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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झारखंड के एक क्वॉरन्टीन सेंटर में दो कोरोना पॉजिटिव निकले, बावजूद इसके सेंटर से 7 मजदूरों को उनके घर भेज दिया गया. भेजने से पहले उनकी जांच तक नहीं की गई. ये एक उदाहरण है कि झारखंड में किस तरह से क्वॉरन्टीन सेंटर चलाए जा रहे हैं. क्विंट ने राज्य के तीन जिलों में क्वॉरन्टीन सेंटर का जायजा लिया. हमें वहां मजदूरों ने जो बताया और दिखाया वो वाकई अचरज और अफसोस जनक है

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क्विंट ने झारखंड में हजारीबाग के विष्णुगढ़, रामगढ़ के माण्डु और गिरिडीह के क्वॉरन्टीन सेंटर का जायजा लिया. तीनों ही जगहों पर हमें बेसिक सुविधाओं की कमी नजर आईं.

रामगढ़

रामगढ़ के क्वॉरन्टीन सेंटर का हाल देख आंखों पर यकीन नहीं हुआ कि कोई इतना बेदिल कैसे हो सकता है. मजदूरों को क्वॉरन्टीन सेंटर में जमीन पर सोने के लिए कह दिया गया, उस फर्श पर जहां बड़े-बड़े गड्ढे नजर आए. क्वॉरन्टीन सेंटर आबादी से दूर है फिर भी लोग बिना बिजली रहने को मजबूर हैं. मजदूर कहते हैं रात में डर लगता है. वीडियो में आप देख सकते हैं लोग टॉर्च लगाकर खाना खा रहे हैं. इसी सेंटर में दो मरीज निकले लेकिन यहीं से 7 मजदूरों को बिना जांच उनके घर भेज दिया गया.

सोने के लिए बिस्तर तो क्या समतल फर्श तक नहीं दिया, किमो पंचायत, माण्डू ब्लॉक रामगढ़ का क्वॉरंटीन सेंटर(फोटो: क्विंट हिंदी)
जब हमने माण्डु प्रखंड के बीडीओ मनोज कुमार से पूछा कि आखिर कैसे दो मरीज निकलने के बाद भी बाकियों को बिना जांच घर भेज दिया गया तो उनका जवाब था- ‘नहीं-नहीं ऐसे कैसे हो सकता है.’ हमने बताया- साहब ऐसा ही हुआ है, तो बोले- ‘देखते हैं.’

गिरिडीह

गिरिडीह के सेंटर में मौजूद मजूदरों ने बताया कि उन्हें खाना और पानी तक नहीं मिलता. सबसे ज्यादा तकलीफ यही है. लोग अपने घरों से खाना मंगाते हैं. घर वाले किसी तरह बचते-बचाते आते हैं और खाना-पानी दे जाते हैं. सवाल ये है कि जब घर वालों को यहां आना ही पड़ रहा तो फिर क्वॉरन्टीन करने का फायदा क्या हुआ? मजदूर बताते हैं कि सेंटर पर उन्हें सैनिटाइजर तक नहीं मिला. आप सोचिए जब पानी नहीं है और सैनिटाइजर भी नहीं मिल रहा तो कैसे कोई वायरस से बचेगा?
सेंटर के बाहर एक हैंडपंप लगा हुआ है लेकिन वो भी खराब है. यहां के सेंटर में शौचालय है लेकिन खराब. लोग दो किलोमीटर दूर जाते हैं.

उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय, करमाटेड़ धनवार अंचल गिरीडीह के क्वॉरंटीन सेंटर की तस्वीर(फोटो: क्विंट हिंदी)
<b>हम कोरोना से नहीं लेकिन भूख से जरूर मर जाएंगे</b>
<b>अशोक कुमार, प्रवासी मजदूर, गिरिडीह क्वॉरन्टीन सेंटर</b>

हजारीबाग

यहां विष्णुगढ़ में नव प्राथमिक विद्यालय, छोटकी भिलवारा में क्वॉरन्टीन सेंटर बनाया गया है. मजदूरों ने बताया कि सुविधा तो दूर आजतक मुखिया या कोई अधिकारी सेंटर में झांकने तक नहीं आया. यहां के सेंटर में भी न खाना मिल रहा है, न पानी है और न ही शौचालय. बिस्तर तक लोगों को घर से लाना पड़ा है.

हजारीबाग का बरकट्ठा प्रखंड: प्रवासी मजदूरों को मुखिया ने होम क्वॉरन्टीन होने के लिए कहा तो मजदूरों ने पेड़ पर सोना तय किया. उन्हें डर था कि कहीं उनके घरवालों को संक्रमण न हो जाए या फिर गांव वाले उनके घर में ठहरने का विरोध न करें. जब बीडीओ की इसकी खबर मिली तो उन्होंने मजदूरों को क्वॉरन्टीन सेंटर में भेजा. (फोटो: क्विंट हिंदी)

दूसरी तस्वीर में आप जो पेड़ से लटका बिस्तर देख सकते हैं. हजारीबाग जिले के बरकट्ठा प्रखंड में जब व्यक्ति क्वॉरंटीन की व्यवस्था होती नहीं दिखी तो उसने खुद अपने लिए ये लिए ये व्यवस्था कर ली.


झारखण्ड में 4400 पंचायत हैं, जिनमें से हर पंचायत में 3 क्वॉरन्टीन सेंटर बनाए गए हैं. लगभग साढ़े चार लाख प्रवासियों के आने के बाद डेढ़ लाख लोगों होम क्वॉरन्टीन किया गया है, बाकियों को क्वॉरन्टीन सेंटर में रखा गया है.

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