advertisement
गुरु दत्त, जन्म 1925, मूल नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण, हिंदी सिनेमा की एक महान शख्सियत. उनकी फिल्में प्यासा और कागज के फूल टाइम मैगजीन की 100 सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में शामिल हैं. वैचारिक गुस्से से भरी उनकी फिल्म प्यासा जब रिलीज हुई, तब भारत को आजाद हुए सिर्फ दस साल ही हुए थे, बढ़ते सामाजिक बंटवारे, आर्थिक विषमता, सामंती ताकतों की हावी होने की कोशिशों और पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार के साथ गहरे राजनीतिक मतभेदों ने आजादी की चमक को धुंधला कर दिया था.
ऐसे वक्त में गुरु दत्त ने शायर साहिर लुधियानवी, संगीतकार एसडी बर्मन और गायक मोहम्मद रफी जैसे महान प्रतिभाशाली लोगों को एक साथ लाकर बगावत का ये कालजयी गीत तैयार किया:
रेप की दो दिल दहलाने वाली घटनाओं ने एक बार फिर भारत की अंतरात्मा को घायल कर दिया है. आज अगर गुरु दत्त जिंदा होते, तो मुझे पूरा यकीन है कि वो प्यासा के उस दिल दुखाने वाले गीत की शुरुआत इन लाइनों से करते:
गुड्डी का परिवार 60 हजार की आबादी वाले बकरवाल जनजातीय समूह का हिस्सा है. ये वो देशभक्त जनजाति है, जिसने पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ करने वाले दुश्मनों की जानकारी देकर भारतीय सेनाओं को कम से कम दो बार सतर्क किया, पहली बार 1947 में और फिर 1999 में करगिल की जंग से ठीक पहले.
गुड्डी को भांग खिलाकर बेसुध कर दिया गया और फिर वो उसे स्थानीय मंदिर देवस्थान में ले गए. उसे Clonazepam नाम की एक दवा दी गई, जो मिरगी के दौरों और घबराहट के इलाज के लिए दी जाती है. और फिर उसका बार-बार रेप किया गया.
चार दिन बाद, जब इन हैवानों की भूख मिट गई तो उन्होंने बच्ची का कत्ल कर दिया. लेकिन उससे पहले आरोपी पुलिसवाले ने कहा कि वो एक बार फिर रेप करना चाहता है.
इसके बाद उस दरिंदे ने बच्ची के दुपट्टे से उसका गला घोंट दिया और उसके मासूम चेहरे को एक भारी पत्थर से कुचल डाला.
17 साल की जिंदादिल लड़की गुड़िया. माखी गांव के बाकी तमाम लोगों की तरह वो भी गांव के ठाकुर के दबदबे के असर में रहती थी. उसे वो भैया कहती थी. ठाकुर यानी चार बार का स्थानीय विधायक, एक ऐसा दलबदलू नेता जो कांग्रेस से लेकर बीएसपी और एसपी तमाम राजनीतिक दलों में रहा और फिलहाल सत्ताधारी बीजेपी में है.
चार दिन बाद, ठाकुर के गुंडों ने गुड़िया का अपहरण कर गैंगरेप किया. 9 महीने बाद भयानक बेबसी और निराशा की हालत में वो लखनऊ पहुंची. योगी आदित्यनाथ के घर के सामने खुद को जिंदा जलाने की कोशिश की. उसे पता नहीं था कि इस बीच उसके गांव में उसके परिवार पर क्या कहर बरपाया जा रहा है.
अब लोगों का गुस्सा बढ़ा तो गुड्डी के गैंगरेप और हत्या को तेजी से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया. उधर, गंगा के मैदानी इलाके में गुड़िया अपने पिता को खोने के गम में डूबी है. चेहरे को दुपट्टे से ढककर चीखती गुड़िया का विलाप... राजनीति के बहरे कानों तक नहीं पहुंच सका.
लेकिन प्रधानमंत्री को विदेश यात्रा पर निकलना है. दूसरे राजनेताओं को कर्नाटक में चुनाव प्रचार करना है. देश के नौजवानों को अपने पसंदीदा IPL क्रिकेट क्लब के समर्थन में शोर मचाना है. मुझे अगले हफ्ते के लिए एक और कॉलम लिखना है. और गुरु दत्त की 55 साल पहले मौत हो चुकी है. जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं ?
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)