Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Videos Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019वाजपेयी-आडवाणी और मोदी शाह के दृष्टिकोण में कितना अंतर?

वाजपेयी-आडवाणी और मोदी शाह के दृष्टिकोण में कितना अंतर?

लेखक विनय सीतापति की नई किताब ‘जुगलबंदी’ में वाजपेयी-आयवाणी युग की बात की गई है.

ईश्वर रंजना
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(फ़ोटो: क्विंट हिंदी)
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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

एक सवाल जो 2014 से लगातार चर्चा में है, वो ये कि क्या मोदी-शाह की जोड़ी भाजपा को इस दिशा में आगे बढ़ा रही है जिसकी अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने कल्पना की थी? आज की राजनीति में भी इतना नेहरू का ज़िक्र क्यों होता है? इन्हीं सवालों का जवाब दे रहे हैं लेखक विनय सीतापति. जिनकी नई किताब 'जुगलबंदी' में आडवाणी और वाजपेयी के दौर की बात है.

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मोदी-शाह से आडवाणी-वाजपेयी का दृष्टिकोण कितना अलग था?

मोदी और शाह को समझने के लिए 100 सालों का इतिहास समझना पड़ेगा. आडवाणी ने असम एनआरसी के बारे में 1980 में ही बात की थी. वाजपेयी ने भी अपने भाषणों में इसका ज़िक्र किया था. भारत की नई सोच और राजनीति बनाने में सौ साल लगे हैं.

आडवाणी-वाजपेयी का हिंदुत्व कितना अलग था?

वाजपेयी संसद में स्वीकार्य थे. छोटी पार्टियां जो कांग्रेस या बीजेपी के साथ नहीं हैं, वो आडवाणी के साथ कभी नहीं जाते. लेकिन वो वाजपेयी को मानते थे. वो मानते थे कि सही इंसान गलत पार्टी में है. उनकी जुगलबंदी को हम इस तरह से देख सकते हैं कि एक मॉडरेट था और एक हार्डलाइनर. बीजेपी और आरएसएस को पता था कि उन्हें एक पार्लियमेंट्री फ़ेस की ज़रूरत है, इसलिए उन्होंने वाजपेयी को आगे बढ़ाया. वहीं वाजपेयी को भी पता था कि उन्हें एक हार्डलाइनर दोस्त की ज़रूरत है.

बीजेपी बार-बार नेहरू की बात क्यों करती है?

नरेंद्र मोदी इंदिरा गांधी का मज़ाक़ कभी नहीं उड़ाते हैं. वो उनको रोल मॉडल समझते हैं. लेकिन वो नेहरू का मज़ाक़ बार-बार उड़ाते हैं. पटेल और नेहरू की बड़ी दोस्ती थी. आरएसएस को लेकर उनके मन में द्वंद्व था. आरएसएस और जनसंघ ने देखा कि पटेल की मौत के बाद 17 सालो तक नेहरू कांग्रेस थे और कांग्रेस नेहरू थी और नेहरू भारत थे. आज भी वो इस सोच में पड़े हुए हैं कि काश नेहरू न होते तो मोदी जैसा प्रधानमंत्री भारत को वो कब का दे चुके होते.

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