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कर्नाटक की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया कि जवाहरलाल नेहरू के वक्त में कांग्रेस सरकार ने कर्नाटक के दो मिलिट्री हीरो का अपमान किया. फील्ड मार्शल करिअप्पा और जनरल थिमैया.
लेकिन प्रधानमंत्रीजी, माफ कीजिएगा, आपसे भारी चूक हुई है. चूक समझते हैं न..गलती...बल्कि blunder!!
पहले तो आपने जनरल केएस थिमैया के बारे में बोलते हुए ये कहा,
मोदीजी, एक दो नहीं पूरे तीन प्वाइंट पर आपने गलती की.
1948 में जनरल थिमैया इंडियन आर्मी के . एक ब्रिटिशर, जनरल रॉय बुशर इस पोस्ट पर थे. थिमैया, 1957 में आर्मी चीफ बने और इस पोस्ट पर 1961 तक रहे. हालांकि, ये कहा जा सकता है कि इस लड़ाई में उनका अहम रोल रहा.
थिमैया ने 1948 में न तो इस्तीफा दिया और न ही इस्तीफे की कोई पेशकश की. इसके अलावा नेहरू के साथ उनके कोई मतभेद भी नहीं थे. पीएम मोदी ने कहा कि उनका बार-बार अपमान किया गया. ये बात भी पूरी तरह गलत है. बल्कि मोदीजी, नेहरू ने तो 1948 में पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को पीछे हटाने में थिमैया के रोल की तारीफ की थी. थिमैया को कोरिया में United Nations’ Repatriation Commission की जिम्मेदारी सौंपी गई. उन्हें पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया.
1948 में कृष्णा मेनन, रक्षा मंत्री नहीं थे. सरदार बलदेव सिंह थे.
सच्चाई और भाषण में इतना फर्क? इतना ज्यादा कि कुछ लोग पूछ सकते हैं कि क्या ये सोच समझकर किया गया था?
थिमैया से फुरसत मिली तो आप फील्ड मार्शल करिअप्पा की बात करने लगे और उनके बारे में आपने कहा:
लेकिन, सर इसमें एक problem है. जनरल करिअप्पा 1962 के भारत-चीन युद्ध से 9 साल पहले ही रिटायर हो चुके थे. 1953 में. और हां, 1951 में नेहरू और करिअप्पा के बीच मतभेद की खबरें जरूर उड़ीं लेकिन क्या कभी कांग्रेस उनके साथ वाकई खराब तरह से पेश आई. इसका कोई सुबूत नहीं मिलता. सच पूछा जाए तो 1949 में करिअप्पा को इंडियन आर्मी का कमांडर ऑफ चीफ किसने बनाया? नेहरू सरकार ने.
यही नहीं बल्कि 1986 में राजीव गांधी सरकार ने जनरल करिअप्पा को फील्ड मार्शल की रैंक दी. तो फील्ड मार्शल करिअप्पा जिस अपमान की बात आपने की वो कब हुआ, कहां हुआ?
क्या बीजेपी के भाषण-लेखकों ने फिर गड़बड़ कर दी? या उन्हें कहा गया कि सच से दूर रहें और उसकी जगह चुनावी मौसम में किस्सों से काम चलाएं.
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