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(एडिटर - वरुण शर्मा)
कश्मीर ने कई लॉकडाउन देखे हैं, लेकिन कोरोना के चलते जो लॉकडाउन लगाया गया है वैसा कभी नहीं देखा. कश्मीर के लोगों ने इससे पहले 2008, 2010, 2012, 2016 और उसके बाद आर्टिकल 370 हटाए जाने से ठीक पहले लगाए गए लॉकडाउन को अच्छी तरह देखा भी है और उसकी आदत भी डाली है.
लॉकडाउन की आदत डालना इसिलिए क्योंकि कश्मीरियों के लिए अब ये उनकी जिंदगी का ही एक हिस्सा बनकर रह गया है. कश्मीर में आर्टिकल 370 के खत्म होने के बाद करीब 9 महीने तक लॉकडाउन रहा. जिसमें कश्मीर ने स्थानीय नेताओं, आम लोगों, इंटरनेट सर्विस और मीडिया की आजदी पर अंकुश लगते देखा है.
लेकिन इस बार जब कश्मीर के साथ-साथ पूरे देशभर में लॉकडाउन हुआ तो ये कश्मीर के लिए काफी अलग है. इसका एक बड़ा कारण ये है कि लॉकडाउन रमजान के महीने में भी लागू है. श्रीनगर में एक छात्र फिरदौस अहमद ने कहा,
कश्मीर में रमजान के इस महीने में भी लोग मस्जिद जाने की बजाय घरों से ही नमाज अदा कर रहे हैं. इफ्तार के दौरान इस तरह का सन्नाटा कश्मीर में पहले कभी नहीं देखा गया. श्रीनगर के एक छात्र दाऊद अहमद ने कहा,
"हम लोग बाजार जाते थे, अपने लिए और मस्जिद के लिए कपड़े खरीदते थे. सभी लोग साथ में बैठकर इस त्योहार को मनाते थे. यही ऐसी चीज है जो हम इस कोरोना लॉकडाउन में नहीं कर पा रहे हैं. हम घर से जरूर नमाज पढ़ सकते हैं, लेकिन साथ मिलकर प्रार्थना करने से एक अलग शांति मिलती है."
कश्मीर जहां पिछले 9 महीने से लगभग सब कुछ बंद कर दिया गया था, वहां कुछ हद तक चीजें सुधर रही थीं. हालात सामान्य होते दिख रहे थे, लेकिन तभी कोरोना वायरस के चलते पूरे देशभर में लॉकडाउन लगा दिया गया. जिससे इस केंद्र शासित प्रदेश की इकनॉमी और भी ज्यादा डूब गई. ग्रेटर कश्मीर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन के चलते कश्मीर में रोजाना 150 करोड़ का नुकसान हो रहा है.
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