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कठुआ कांड के लिए कौन सा समुदाय जिम्मेदार?क्विंट की ग्राउंड रिपोर्ट

कठुआ रेप और मर्डर मामले के एक साल बाद भी जारी है मन-मुटाव का माहौल

ऐश्वर्या एस अय्यर
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कठुआ रेप और मर्डर मामले के एक साल बाद भी जारी है मन-मुटाव का माहौल
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कठुआ रेप और मर्डर मामले के एक साल बाद भी जारी है मन-मुटाव का माहौल
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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

कैमरा: ऐश्वर्या एस अय्यर

“सांझी राम ने कुछ नहीं किया, हमारे गांव वालों ने कुछ नहीं किया. जो दूसरे गांव वाले पकड़े गए हैं, उन्होंने भी कुछ नहीं किया. 8 साल की बच्ची के रेप और हत्या के पीछे ये इनका (गुर्जर बकरवाल समुदाय) ही काम है.”

कठुआ के रसाना गांव की रहने वाली 60 साल की कांता कुमार पूरे दावे के साथ ये कहती हैं.

वो एक आठ वर्षीय गुर्जर बकरवाल लड़की के रेप और हत्या का जिक्र कर रही हैं, जिसका शव 17 जनवरी 2018 को रसाना के जंगलों में मिला था. 10 जनवरी को उसका अपहरण कर लिया गया था. उसके बाद एक हिंदू धर्मस्थल में रखकर उसे नशे की दवाइयां दी गईं और उसके साथ कई बार रेप किया गया, और आखिर में उसे मौत के घाट उतार दिया गया. पुलिस की चार्जशीट में मुख्य साजिशकर्ता सांझी राम का नाम है. कांता उसका बचाव करती हैं.

गुर्जर बकरवाल समुदाय मुस्लिम चरवाहे हैं, जो गर्मियों के मौसम में अपने पशुओं को लेकर कश्मीर में रहने चले जाते हैं. और जम्मू में सर्दियों के मौसम में रहते हैं, जहां वे चारे, जमीन और पानी के लिए स्थानीय हिंदू किसानों पर निर्भर रहते हैं. लेकिन सालों से आते हुए उग्रवाद और धार्मिक तनाव,जिसके काफी जिम्मेदार राजनीतिक पार्टियां भी रहती हैं, उन्होंने इन दोनों के बीच का रिश्ता खराब कर दिया है. पिछले साल जम्मू के कठुआ में जब एक 8 साल की बच्ची का रेप और मर्डर हुआ, तब हमें ये तनाव दिखा. एक साल बाद हम बोल सकते हैं कि आज भी ये मन-मुटाव नहीं गया है.

जब बकरवाल जनजाति दक्षिण का सफर करते हैं, तो वे चारे, पानी और जमीन के लिए जम्मू के स्थानीय हिंदू किसानों पर निर्भर रहते हैं. दूसरी तरफ बकरवालों का कहना है कि वे अपने मवेशियों को चराने के लिए हिंदुओं की जमीन का उपयोग नहीं करते हैं. हिंदुओं का कहना है कि उन्होंने कई बार उनके मवेशियों को अपनी फसल बर्बाद करते हुए पकड़ा है. बकरवालों का कहना है कि जिन चीजों का इस्तेमाल करते हैं, उनके लिए पैसों का भुगतान करते हैं. किसान इस बात से इनकार करते हैं.

“उन्हें पैसे नहीं देने हैं. वो कहते हैं कि पैसे कल देंगे और फिर रात को ही गांव से चले जाते हैं.”
-कांता कुमार, निवासी, रसाना गांव, कठुआ

समय के साथ इन घटनाओं ने दोनों समुदायों के बीच संदेह और असहिष्णुता को बढ़ा दिया है, हिंदू साफ तौर पर बकरवाल जनजाति को 'चोर' और 'बेईमान' कहते हैं. बकरवाल जनजाति के लोगों का कहना है कि वे हिंदुओं के संपर्क में आने पर होने वाले उत्पीड़न से डरते हैं.

वहां पहुंचकर क्विंट को पता चला कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि राजनीतिक फायदा हासिल करने के लिए कैसे राजनीतिक दलों द्वारा अक्सर धार्मिक तनावों को उकसाया जाता है. “एक साल हो गया है, हम उनकी वजह से, डर में जी रहे हैं," कांता ने पुलिस की मौजूदगी का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस ने उन्हें परेशान करने और डराने का काम किया है.

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“हम लोग तो उन्हें इस गांव में डेरा डालने ही नहीं देते हैं. तभी तो ये कांड हुआ है. वो चोरी से अपने पशुओं को यहां चराते थे, ऐसे तो कोई नहीं चराने देता. चोरी से पानी पिलाते थे, पानी का नुकसान करते थे. गर्मियों में हमारे पशु कहां जाएंगे? पानी का कोई और सोर्स तो नहीं है यहां.”
-बिशन दास शर्मा, 77, निवासी, रसाना गांव, कठुआ

ग्राउंड रिपोर्ट में हमने ये समझा कि जो गुर्जर बकरवाल और जो हिंदू लोग यहां पर हैं, उनमें अनबन तो होती थी. लेकिन ये गांव के स्तर पर ही संभाल लिया जाता था. लेकिन जो पुलिस चार्जशीट में बोला गया कि इस केस का मुख्य आरोपी सांझी राम, उन्होंने पूरे रेप और मर्डर को प्लान किया, क्योंकि वो चाहते थे कि गुर्जर बकरवाल इस गांव से और इस जगह से चले जाएं. फिर हमें समझ आया कि ये मामूली अनबन नहीं रही. केस अभी पठानकोट में ट्रायल पर है. ऐसे में दोनों समुदाय के लोग कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं.

ये भी देखें- कठुआ रेप केस: हिंदू एकता मंच का उभार और अंत

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Published: 11 Feb 2019,05:27 PM IST

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