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सुनो न संगेमरमर, माना कि हम यार नहीं, मैं परेशां-परेशां....हाल ही में आए बॉलीवुड के कुछ सबसे खूबसूरत गानों को लिखने वाली कौसर मुनीर की ताजा कविता कुछ यूं शुरू होती है- ये कविता अभी शुरू नहीं हुई. कभी तंज, कभी हंसी, कभी उदासी में डूबी उनकी ये कविता आज के राजनीतिक दौर में काफी कुछ बयां कर जाती है.
ये कविता एक महिला के बारे में भी है, एक ऐसी महिला कवि जिसकी ओर जमाना अलग नजरों से देखता है.
कैमरा: संजॉय देब
एडिटर: वीरू कृष्ण मोहन
प्रोड्यूसर: मेघा माथुर
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