advertisement
(कारगिल वॉर के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल के पालमपुर में हुआ था. आज हम आपके साथ उनकी अनसुनी लव स्टोरी शेयर कर रहे हैं. पहली बार यह स्टोरी 10 सितंबर 2016 को पब्लिश की गई थी. इसे रीडर्स के लिए दोबारा शेयर किया जा रहा है)
कारगिल विजय के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की जांबाजी के किस्से तो आपने खूब सुने होंगे. हम सभी देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले उस हीरो की जिंदगी से जुड़े तमाम पहलुओं को जानना चाहते हैं. हम कैप्टन बत्रा की जिंदगी के उन खूबसूरत लम्हों से अबतक अनजान हैं, जिनके सहारे उनकी हमसफर अपना जीवन बिता रही है. कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन बत्रा की लव स्टोरी भी उतनी ही खूबसूरत है जितना की उनकी बहादुरी के किस्से.
मिलिए कारगिल वॉर में शहीद हुए कैप्टन विक्रम बत्रा की गर्लफ्रेंड- डिंपल चीमा से.
कैप्टन विक्रम बत्रा की जयंती के मौके पर डिंपल चीमा ने द क्विंट से बात की. इस दौरान उन्होंने 17 साल पुरानी उन खूबसूरत यादों को साझा किया, जिनके सहारे वह जिंदगी बिता रहीं हैं.
साल 1995 में डिंपल पहली बार विक्रम बत्रा से पंजाब यूनिवर्सिटी में मिली थीं. ये इस खूबसूरत प्रेम कहानी की शुरुआत थी. डिंपल बताती हैं कि विक्रम के साथ शुरुआती समय उन्होंने चंडीगढ़ में बिताया. साल 1996 में विक्रम का चयन इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून में हो गया था.
पंजाब यूनिवर्सिटी में शुरू हुई ये खूबसूरत लव स्टोरी विक्रम के देहरादून जाने के बाद और भी मजबूत हो गई.
डिंपल बताती हैं, ‘जब मेरे परिवारवाले मेरे लिए कोई रिश्ता लेकर आते...और मैं विक्रम को बताती तो वो बड़ा खूबसूरत जवाब देता था.’
इस खूबसूरत लवस्टोरी की उम्र भले ही चार साल हो लेकिन इसका अहसास अमर हो गया है. विक्रम कारगिल से लौटने के बाद डिंपल से शादी करना चाहते थे. लेकिन विक्रम जब कारगिल से लौटे तो तिरंगे में लिपटकर.
लेकिन फिर भी विक्रम के जाने के बाद भी यह लव स्टोरी खत्म नहीं हुई. डिंपल, कैप्टन बत्रा की खूबसूरत यादों के सहारे अपनी जिंदगी बिता रहीं हैं.
डिंपल चीमा की द क्विंट के साथ पूरी बातचीत यहां पढ़िएः
मैं साल 1995 में चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी में पहली बार विक्रम से मिली थी. हम दोनों ने एमए इंग्लिश में एडमिशन लिया था. लेकिन न मैं पास हुई और न ही वो. मुझे लगता है कि वही हमारा नसीब था जो हमें करीब लाया.इंडियन मिलिट्री एकेडमी में सिलेक्शन होने के बाद विक्रम ने जब मुझे फोन किया था, उस आवाज की खनक मुझे अभी भी हूबहू याद है. उस खबर ने हमारे रिलेशन को मजबूत कर दिया था.
मेरे परिवारवाले जब मेरे लिए कोई रिश्ता लेकर आते और मैं उस बारे में विक्रम को बताती तो वो कहता, ‘जिसे प्यार करती हो, उसे हासिल करने की कोशिश करो...वरना लोग तुम्हें उससे प्यार करने को कहेंगे, जो तुम्हें मिलेगा’ उसकी इस बात को मैं आज भी फॉलो करती हूं.
हम अक्सर मंसा देवी मंदिर और गुरुद्वारा श्री नाडा साहिब जाते थे. एक बार हम मंदिर में परिक्रमा कर रहे थे और वह मेरे पीछे चल रहा था.
वह हमेशा आगे बढ़ते रहने वाला शख्स था, कभी न थकने वाला. वह हमेशा कुछ न कुछ करता रहता था, वह कभी दो पल के लिए भी शांत नहीं बैठता नहीं था. एक बार हम एक रेस्तरां में अपने ऑर्डर का इंतजार कर रहे थे. इतने में वह टेबल बजाने लगा. जब मैंने रोका तो अपने पैर हिलाने लगा. आखिर मैं जब मैंने उसे आंखें दिखाई तो वो पानी पीने लगा. उसे देखकर कारगिल वॉर में जाने की बेकरारी साफ देखी जा सकती थी. मैं जब भी सोचती हूं तो मुझे महसूस होता है कि वो कारगिल में जाने के लिए उन दिनों कितना उत्सुक होगा.
4 साल के रिलेशन में बनाई उन यादों को चंद लफ्जों में बयां करना तो नामुमकिन है. 17 साल में एक दिन ऐसा नहीं गुजरा, जब मैंने खुद को तुमसे अलग पाया हो. मुझे हमेशा लगता है, किसी पोस्टिंग पर तुम मुझसे दूर गए हो. मुझे गर्व होता है, जब लोग तुम्हारी उपलब्धियों पर बात करते हैं. लेकिन दिल के किसी कोने में एक अफसोस जरूर है. कि काश तुम यहीं होते और अपनी बहादुरी की कहानियां सुन रहे होते...तो अच्छा होता. मुझे भरोसा है कि वो वक्त आएगा, जब हम फिर मिलेंगे. एक होंगे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)