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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
कैमरा: मानसी सिंह
"सेंसिटिव आदमी थे. गांव के लोगों को जीव जंतु से ही प्यार होता है. उनका टट्टू मर गया तो एक दिन खाना नहीं खाया था. कबूतर मर गया तो उसको देखकर रोने लगे थे."
सिताब दियारा गांव के आलोक सिंह ने ये बातें उस शख्स के बारे में बताईं, जिसके एक आह्वान पर देश में इमर्जेंसी के खिलाफ बड़ा संघर्ष छिड़ गया और इंदिरा गांधी को सत्ता गंवानी पड़ी, यानी कि जयप्रकाश नारायण.
लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) को एक नेता के रूप में तो सभी जानते हैं, लेकिन आम जीवन में उनका व्यक्तित्व कैसा था हम उसके बारे में बात करने जा रहे हैं.
उनके गांव के ही निवासी अरुण सिंह बताते हैं कि बचपन में जेपी को बॉल जी कहा जाता था, क्योंकि उनके दांत नहीं निकल रहे थे. गांव से उनका बहुत लगाव था और जैसे ही गांव आते थे, लोगों का हुजूम उन्हें लेने पहुंच जाता था. जितने दिन भी वह गांव में रहते थे, काफी हलचल रहती थी.
दोनों ही जगह के उनके घर सुरक्षित संजोकर रखे गए हैं. जयप्रकाशनगर में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने उनके निवास स्थान को संग्रहालय बनवा दिया था.
सारण के हिस्से वाले में भी एक ट्रस्ट है और केंद्र सरकार ने घर के आगे ही एक भव्य भवन का निर्माण कराया है, जिसमें जेपी की विरासत को संभालकर रखने की योजना है.
संपूर्ण क्रांति (राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक और आध्यात्मिक) के प्रणेता जयप्रकाश नारायण के बारे में बात करते हुए लाला टोला ट्रस्ट के सचिव बताते हैं कि
1974 में संपूर्ण क्रांति आंदोलन के अलावा जेपी ने जातिवाद के खिलाफ जनेऊ तोड़ो आंदोलन भी चलाया था. यहां लगभग 10 हजार लोगों ने अपना जनेऊ तोड़कर जाति प्रथा न मानने का संकल्प लिया था. क्रांति मैदान में हुए इस आंदोलन को याद करते हुए आलोक सिंह बताते हैं कि ये ‘सवर्ण’ बहुल इलाका है, यहां के लिए जनेऊ तोड़ना बहुत बड़ी बात थी, सम्पन्न घर के थे इसलिए विरोध नहीं हुआ था. जब आंदोलन हुआ था उस वक्त वो तोड़े गए जनेऊ को इकट्ठा कर रहे थे.
लेकिन जिस जातिवाद के खिलाफ उन्होंने आंदोलन चलाया, वो जातिवाद अभी भी उनके गांव के साथ ही पूरे राज्य में मौजूद है. गांव वाले भी इस बात को मानते हैं कि जेपी के नाम पर सब इकट्ठे तो हो जाते हैं, लेकिन गांव में जातिवाद की जड़ें अभी भी मजबूत हैं.
जयप्रकाशनगर ट्रस्ट के मैनेजर अशोक सिंह बताते हैं कि जब जयप्रकाश नारायण अंतिम बार गांव आए तो 2-3 दिन रुके थे. जब जाने लगे तो पायलट से कहा कि मेरे गांव का एक चक्कर लगा लो. जैसे ही पायलट ने चक्कर लगाना शुरू किया उनकी आंखों में आंसू भर आए.
गांव वाले बताते हैं कि जयप्रकाशनगर में हर साल सर्वोदय मेले का आयोजन होता था. पटना के कंकड़बाग से हर साल जेपी मेले में शामिल होने जरूर आते थे.
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